15 लगातार गोल्ड मेडल जीतने वाला मुक्केबाज 450 रुपये की दिहाड़ी पर काम करने को मजबूर
संगरूर के रहने वाले 27 साल के मुक्केबाज मनोज कुमार अब 450 रुपये में पल्लेदारी का काम कर रहे हैं।
मनदीप कुमार। संगरूर ये कहानी है एक ऐसे खिलाड़ी की जिसने बॉक्सिंग रिंग में तो विरोधियों को पटखनी दी लेकिन जिंदगी के रिंग में गरीबी को नहीं हरा पाया। संगरूर के रहने वाले 27 साल के मुक्केबाज मनोज कुमार अब 450 रुपये में पल्लेदारी का काम कर रहे हैं। जिन हाथों में मुक्केबाजी के दस्ताने होने चाहिए थे वह अब गेहूं व चावल की बोरियां ढो रहे हैं।
गुमनामी में जी रहे इस बॉक्सर की कहानी महज 11 साल की उम्र में ही शुरू हो गई थी। मनोज ने राज्य स्तर पर ही 23 पदक अपने नाम कर डाले। उन्होंने लगातार 15 स्वर्ण पदक जीते। देखते ही देखते पहले जूनियर बॉक्सिंग, सीनियर बॉक्सिंग और यूथ बॉक्सिंग के बाद आमंत्रण टूर्नामेंट के लिए भारतीय दल में भी जगह बनाई।
राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक और पांच कांस्य पदक अपने नाम करने वाले मनोज ने दैनिक जागरण से कहा कि छठी कक्षा में पहली बार बनासर बाग में पीटी शो करने गया। वहां स्टेडियम में बॉक्सिंग रिंग व गलव्स देख खेलने का जुनून चढ़ गया। घर पर ही अभ्यास शुरू किया और कोच पुष्पिंदर से कोचिंग ली।
मस्तुआना साहिब के बाक्सिंग सेंटर में खुद को तराशा और पंजाब पुलिस, रेलवे विभाग के कई खिलाड़ियों को रिंग में मात दी। पता ही नहीं चला कि कब राष्ट्रीय स्तर पर खेलने लगा लेकिन शायद गरीबी और किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
मनोज ने कहा कि 2009 में क्यूबा में होने वाले अंतरराष्ट्रीय जूनियर आमंत्रण मुक्केबाजी में जाने का मौका मिला लेकिन मेरे पास पासपोर्ट नहीं था। तीन दिन पहले ही मुझे फोन आया। उस समय मेरे कोच जी. मनोरम थे जिनकी वजह से ही मैं राष्ट्रीय स्तर तक दस्तक दे सका था। पिता रेहड़ी लगाते थे इसलिए जब भी खेलने जाना होता था तो साथी खिलाड़ियों से सहयोग लेता था या दोस्तों से उधार मांगता था।