Bajrang Punia Interview: कांस्य पदक विजेता ने कहा- कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना
Tokyo Olympics 2020 में कांस्य पदक जीतने के बाद कहा जा रहा है कि बजरंग पूनिया गोल्ड मेडल नहीं जीत पाए। इस पर उन्होंने दैनिक जागरण को दिए इंटरव्यू में कहा है कि कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना।
एक पहलवान को देश के खेल प्रेमियों की आशाओं पर खड़ा उतरने के लिए वर्षो की मेहनत व त्याग के बाद ओलिंपिक में कुछ ही मिनट मिलते हैं जिसमें वह देश का नाम रोशन करे। टोक्यो में देश के कई अच्छे पहलवान व मुक्केबाज पदक से चूक गए, लेकिन चोटिल होने के बाद भी भारत का पहलवान 65 किग्रा में देश का नाम रोशन करने में कामयाब रहा। ओलिंपिक में मुकाबलों और पदक जीतने के सफर को लेकर पहलवान बजरंग पूनिया से अनिल भारद्वाज ने खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश :
- टोक्यो में देश को बजरंग से स्वर्ण पदक की आस थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया?
- मैं देशवासियों से वायदा करता हूं कि पेरिस में आपका सपना जरूर पूरा करुंगा। टोक्यो में चोट के कारण स्वर्ण पदक से चूक गया हूं।
- टोक्यो में बजरंग पर देशवासियों की आस का दबाव था या कोई ओर कारण थे?
- जब एक खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाबले में उतरता है तो उसे पता होता है कि देश को उनसे आस है। मेरे पर दबाव नहीं था, लेकिन मैं चोटिल जरूर था। मुझे तो स्वयं देश के लोगों की आस को पूरा करने का जनून था।
- क्या बजरंग की चोट मुकाबले शुरू होने से पहले उभर गई थी जिस कारण दुनिया के नंबर एक पहलवान की टोक्यो में शुरुआत बहुत हल्की रही थी?
- टोक्यो जाने से डेढ़ माह पहले रूस में चोट लग गई थी, लेकिन डाक्टरों का कहना था कि गंभीर नहीं है। प्री-क्वार्टर फाइनल में किíगस्तान के पहलवान के साथ घुटने में दर्द था, लेकिन मैंने अच्छा मुकाबला किया। जब स्कोर तीन-तीन की बराबरी पर था तो मुझे पता था कि नियम में मैं जीत रहा हूं। इसी कारण किíगस्तानी पहलवान को किसी तरह का मौका नहीं दिया।
-कांस्य पदक के मुकाबले में आपका प्रदर्शन शानदार रहा। आपकों नहीं लगता ऐसा प्रदर्शन सेमीफाइनल में होता तो पदक का रंग बदला हुआ होता?
- मेरा प्लान था कि चोट को फाइनल मुकाबले तक गंभीर नहीं होने देना है। इसी कारण हर मुकाबला संभलकर लड़ रहा था। अगर मैं चोटिल नहीं होता तो आक्रामक मुकाबले लड़ता। सेमीफाइनल मुकाबले में अजरबैजान का पहलवान फायदा उठाने में कामयाब रहा। यही सही है कि अगर मैं आक्रामक कुश्ती लड़ता तो वह कहीं नहीं ठहरता। जब मैं हारा तो मुझे पता था कि मेरे परिवार व देश के लोगों को कितना दुख हुआ होगा। देश के लोगों को मेरे से बहुत आस है यह टोक्यो जाने से पहले मुझे पता था। जब मैं कांस्य पदक के मुकाबले में उतरा तो किसी तरह की चूक नहीं करना चाहता था। मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। मैं यही सोचकर मुकाबले में उतरा की अगर अब चोट गंभीर होती है तो होने दे, लेकिन कांस्य हर हाल में जीतना है। यही कारण है कि मैं कजाखस्तान पहलवान को हराने में कामयाब रहा।
-अगर बजरंग सेमीफाइनल मुकाबले यह सोच लेते कि चोट गंभीर होती है तो होने दो, यह मुकाबला जीतना है तो क्या आज उन के पास रजत पदक होता?
- जब मैंने फाइनल मुकाबला बेहतर लड़ने का प्लान बनाया है तो सेमीफाइनल में हारने की बात ही नहीं थी, लेकिन सच यह है कि मैं मुकाबला हार गया। अब जब सेमीफाइनल हार गया तो यह विचार सभी को आते हैं कि सेमीफाइनल मुकाबला जीत लेते।
- बजरंग कांस्य पदक से स्वयं कितना खुश है?
- मेरी स्वयं की तैयारी स्वर्ण पदक की थी, लेकिन हालात बदले और मुझे कांस्य पदक पर संतोष करना पड़ा। मुझे खुशी है कि मैं देश के लिए पदक जीतने में कामयाब रहा। आशा है पदक से देशवासी भी खुश होंगे।
- आप सेमीफाइनल मुकाबले में हारे, तो आपके पिता जी भावुक हो गए थे और देश के लोग हार से परेशान थे। उस समय कैसे संभाला अपने को?
- मेरे परिवार को पता था कि मैं चोटिल हूं। हार के बाद मैंने अपने पिता से बात की और उन्होंने हर हाल में देश के लिए पदक लाने को कहा। तभी मैंने अपने पिता से कांस्य पदक लाने का वायदा किया। मेरे पिता व प्रशिक्षकों ने यही कहा था कि देश के लिए पदक जीतना अहम है। पदक का रंग मत देखों। तभी मैंने सोच लिया था कि अब कांस्य पदक भारत का है।
- कुछ लोग कह रहे हैं कि हारने के कारण चोट का नाम लिया जा रहा है?
- ऐसे लोगों को कुछ कहने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है। खेल प्रेमी स्वयं उनका जवाब देंगे। यहां इतना ही कहना चाहूंगा कि मैं बेहतर लड़ता हूं ओर देश के लिए पहले भी पदक जीते हैं तभी तो लोग मुझ से स्वर्ण पदक की आस लगाए हुए थे। मुझे उन लोगों की परवाह रहती है जो मेरे पर विश्वास रखते हैं।
- क्या घुटने की सर्जरी करानी होगी?
- अब डाक्टर को दिखाना है। उसके बाद डाक्टर ही कुछ तय करेगा। मुझे नहीं लगता कि सर्जरी करानी होगी। क्योंकि टोक्यो से पहले डाक्टर ने आराम करने की सलाह दी थी लेकिन आराम करने का समय नहीं मिला। मैं टोक्यो को किसी भी हाल में छोड़ना नहीं चाहता था। क्योंकि ओलिंपिक में पदक जीतने का सपना हर खिलाड़ी को होता है। मुझे लगता है डाक्टर की सलाह पर आराम करने से चोट ठीक हो जाएगी।
- टोक्यो ओलिंपिक एक वर्ष देरी से होने का कितना नुकसान रहा?
- अगर समय पर आयोजन होता तो उस समय तैयारी अच्छी की हुई थी और तैयारी अब भी अच्छी हुई। कोरोना महामारी के कारण एक वर्ष की देरी हुई और इससे मेरा कोई नुकसान नहीं हुआ। अगर टोक्यो से ठीक पहले चोट नहीं लगती तो आप यह सवाल नहीं पूछते।
- अगले वर्ष 2022 में कामनवेल्थ व एशियन गेम्स हैं। क्या बजरंग उनके लिए तैयार है?
- मेरे पास चोट सही करने और बेहतर तैयारी करने का समय है। मेरा लक्ष्य कामनवेल्थ व एशियन गेम्स में देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने का है और दोनों मुकाबलों से पहले हर हाल में फिट हो जाऊंगा।
- तीन साल बाद पेरिस ओलिंपिक 2024 होने है, क्या प्लान है?
- मैं देशवासियों को यही कहना चाहूंगा कि टोक्यो में फाइनल खेलने की प्लानिंग व बेहतर तैयारी थी, लेकिन अब पेरिस में देश के लिए स्वर्ण जीतने की तैयारी की जाएगी। तीन साल इंतजार किजिए। अब मैं अगले वर्ष कामनवेल्थ व एशियन गेम्स की तैयारी करूंगा और फिर पेरिस की तैयारी शुरू होगी।