एशियन गेम्स 2018: सियाचिन ग्लेशियर से एशियाड तक अमित का मुश्किल सफर
2006 की एशियन चैंपियनशिप में मुजफ्फरनगर के अमित ने कांस्य पदक जीता था।
पालेमबैंग, प्रेट्र। हवलदार अमित कुमार के लिए एशियन गेम्स तक का सफर बेहद मुश्किलों भरा रहा। अमित कंधे की चोट से उबरकर, सियाचिन ग्लेशियर में लाइन ऑफ कंट्रोल पर दो साल के ना भुलाने वाले समय को काटकर और एक ट्रेन डकैती में अपने समाना खोने जैसी परिस्थितियों का सामना करके एशियन गेम्स तक पहुंचे हैं।
2006 की एशियन चैंपियनशिप में मुजफ्फरनगर के अमित ने कांस्य पदक जीता था, लेकिन वहां से उनकी जिंदगी ने एक अलग मोड़ लिया। दिल्ली से मऊ जा रही ट्रेन में उनके साथ डकैती की घटना हुई, जिसे वह आज भी याद करके कांप जाते हैं। एशियन गेम्स में 300 मीटर बिग बोर राइफल स्पर्धा में देश का प्रतिनिधित्व कर रहे अमित ने कहा कि मेरी राइफल को छोड़कर सभी सामान उस डकैती में लूट लिए गए थे जिनकी कीमत उस समय करीब ढाई लाख रुपये थी। मैं चिंतित था कि मऊ जाकर आर्मी यूनिट को मैं क्या बताऊंगा। मैं जांच से डर रहा था इसलिए जैसे-तैसे मैंने पैसों का बंदोबस्त किया और नया सामान खरीदकर यूनिट में जमा कराया।
इसके बाद 2008 में अमित को कंधे की चोट की वजह से दो-चार होना पड़ा। उनका बायां हाथ सुन्न पड़ चुका था और नहीं खेलने की वजह से उन्हें आर्मी मार्क्समैन यूनिट से हटा दिया गया था। अमित ने कहा कि वह तबाह करने वाली स्थिति थी। मैं शूटिंग यूनिट से बाहर कर दिया गया था और अपने नियमित पोस्टिंग पर आ गया था। अगले आठ वर्षो तक वह एक समान्य सैनिक की तरह मुंबई, जयपुर और सियाचिन ग्लेशियर में तैनात रहे। उन्होंने कहा कि सियाचिन में हमें 15000 रुपये का अतिरिक्त (सामान्य वेतन के अलावा) भुगतान किया गया था। उस ठंडे मौसम में पोस्ट को संभालना मेरे जीवन का सबसे चुनौतीपूर्ण समय था और मुझे उस पर गर्व है। मुझे ठीक से याद है कि मेरी पोस्ट पाकिस्तानी पोस्ट के बहुत करीब थी। ड्यूटी के बावजूद अमित अपने अभ्यास के लिए समय निकाल लेते थे। 2016 में उन्होंने राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती। पालेमबैंग में वह खुद से खरीदी गई साढ़े छह लाख रुपये की राइफल के साथ भाग ले रहे हैं।
तीरंदाजी कोच की निराशा
जकार्ता, प्रेट्र : देश में एक मान्यता प्राप्त तीरंदाजी संघ नहीं होने की वजह से भारतीय तीरंदाजों को एशियन गेम्स में परिस्थितियों के अनुकूल होने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल सका जिससे नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह मानना है भारतीय दल के रिकर्व कोच सावायन मांझी का। उन्होंने कहा कि भारतीय तीरंदाजों को यहां कम से कम एक महीने के लिए अभ्यास करना चाहिए था ताकि वह यहां कि परिस्थितियों से अवगत हो सके और उन्हें कुछ अभ्यास मुकाबले भी खेलने चाहिए थे। एशियन गेम्स से पहले भारत के कंपाउंड तीरंदाजों ने सोनीपत में अभ्यास किया जबकि रिकर्व तीरंदाजों ने जमशेदपुर और पुणे में अभ्यास किया। यहां और वहां के मौसम में बहुत फर्क है।