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खिलाड़ियों को अब नहीं आते बुरे सपने

नई दिल्ली। गगन नारंग को अब बुरे सपने नहीं आते, योगेश्वर दत्त के माथे पर नाकामयाब ओलंपियन का दाग लगने से बच गया, वहीं साइना को भी बीजिंग के भूत से छुटकारा मिल गया है। खेलों के महाकुंभ में पदक हासिल करने के बाद अब इन खिलाड़ियों के माथे से चिंता की लकीरें मिट गई हैं। दो ओलंपिक से खाली हाथ लौटने वाले पहलवान योगेश्वर दत्त जानते थे

By Edited By: Published: Fri, 17 Aug 2012 07:52 PM (IST)Updated: Sat, 18 Aug 2012 08:17 AM (IST)
खिलाड़ियों को अब नहीं आते बुरे सपने

नई दिल्ली। गगन नारंग को अब बुरे सपने नहीं आते, योगेश्वर दत्त के माथे पर नाकामयाब ओलंपियन का दाग लगने से बच गया, वहीं साइना को भी बीजिंग के भूत से छुटकारा मिल गया है। खेलों के महाकुंभ में पदक हासिल करने के बाद अब इन खिलाड़ियों के माथे से चिंता की लकीरें मिट गई हैं।

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दो ओलंपिक से खाली हाथ लौटने वाले पहलवान योगेश्वर दत्त जानते थे कि यदि वह लंदन में भी कुछ नहीं कर पाए तो फिर आगे उन्हें मौका मिल पाना आसान नहीं होगा। लंदन में भगवान ने उनकी कड़ी मेहनत और लगन का इनाम उन्हें दिया। एक सम्मान समारोह में भाग लेने पहुंचे योगेश्वर ने कहा, 'मुझ पर दबाव था। यह मेरा तीसरा ओलंपिक था। मैं भगवान का शुक्रिया अदा करूंगा जिसने आखिरकार मुझे एक ओलंपिक पदक दिला ही दिया।' लंदन में मुकाबले के दौरान योगेश्वर के आंख के ऊपर चोट भी लग गई थी, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह किए बगैर लड़ाई जारी रखी और पदक जीतकर ही माने। योगेश्वर ने कहा, 'मेरे लिए चोट मायने नहीं रखती। खेल के दौरान लगी चोट तो समय के साथ भर जाती है, लेकिन यदि मैं लंदन से खाली हाथ लौटता तो ओलंपिक में पदक नहीं जीत पाने की टीस के साथ मेरा जीना मुश्किल हो जाता।' 29 वर्षीय पहलवान ने कहा कि इस कांस्य पदक से मुझे और भी बेहतर करने की प्रेरणा मिली है।

लंदन में दस मीटर एयर राइफल में कांस्य जीतने से पहले निशानेबाज गगन नारंग ने अंतरराष्ट्रीय पटल पर कई बड़े मुकाबले जीते थे, लेकिन ओलंपिक पदक के बगैर उन्हें उनकी सारी उपलब्धियां बेमानी लगती थीं। उन्होंने कहा, 'मैं जहां जाता था लोग यही सवाल करते थे कि आप ओलंपिक पदक कब जीतेंगे। सवाल सुनकर मैं बहुत परेशान हो जाया करता था, क्योंकि मुझे खुद ओलंपिक पदक की कमी खलती थी लेकिन अब सबकुछ ठीक हो गया है। मैंने वह पा लिया जो मैंने चाहा था।' नारंग ने अपनी भविष्य की तैयारियों पर कहा, 'मैंने अब अपने लिए नए लक्ष्य तय कर लिए हैं। मैं अब राष्ट्रमंडल, एशियन और ओलंपिक तीनों ही खेलों में राष्ट्रगान सुनना चाहता हूं।'

लंदन ओलंपिक में पदक जीतने वाली सबसे युवा भारतीय खिलाड़ी साइना नेहवाल से देशवासियों ने बीजिंग ओलंपिक में ही पदक की उम्मीद की थी, लेकिन उनका सफर क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ सका। उनके अनुसार, क्वार्टर फाइनल में मिली उस हार ने उनका अगले चार सालों तक पीछा किया। उन्होंने कहा, 'वर्ष 2012 मेरे लिए सबसे बेहतरीन रहा है। इस वर्ष मैंने तीन खिताब के साथ ओलंपिक में कांस्य पदक जीता। मुझे नहीं मालूम था कि मैं ओलंपिक में पदक जीतने वाली भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी बनूंगी।' बीजिंग ओलंपिक की हार का जिक्र करते हुए साइना ने कहा, 'पिछले ओलंपिक में मिली हार मुझे आज भी याद है। मैं 11-3 से बढ़त बनाए हुई थी। उस हार के बाद मैं सारी रात सो नहीं पाई। ओलंपिक पदक जीतना मेरा सपना था और आज मेरा सपना पूरा हो गया। पिछले ओलंपिक में मुझे 18वीं रैंकिंग मिली थी, लेकिन इस बार सभी का ध्यान मुझ पर था। मुझे खुशी है कि मैं लोगों की उम्मीदों पर खरी उतरी।'

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