प्रोफेसर के घर खिला दुर्लभ ब्रह्माकमल
राजगांगपुर के मास्टर कॉलोनी निवासी सेवानिवृत प्रोफेसर गिरधारी मिश्र के बागीचा में सोमवार की रात दुलर्भ ब्रह्माकमल फूल खिला।
संवाद सूत्र, सुंदरगढ़ : राजगांगपुर के मास्टर कॉलोनी निवासी सेवानिवृत प्रोफेसर गिरधारी मिश्र के बागीचा में सोमवार की रात करीब नौ बजे दुर्लभ ब्रह्माकमल के दो फूल खिले। इसे देखने के लिए शहरवासियों का उनके घर तांता लगा रहा। उन्होंने इस पौधे को दो साल पहले केरल से लाकर गमले में लगाया था। नवरात्रि चलने के कारण दोनों फूलों को सोमवार की रात ही तालकीपाड़ा स्थित दुर्गा मंदिर में आदिशक्ति के चरणों में अर्पित किया गया। यह फूल पौधे में एक बार ही खिलता है, वो भी रात में तथा सुबह तक मुरझा जाता है। इसकी पंखुड़ियों से टपकता जल अमृत समान माना जाता है। इसे कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी के इलाज में उपयुक्त माना जाता है।
ब्रह्माकमल का इतिहास : आम कमल फूल की तरह यह पानी में नहीं वरन ऊंचाई वाले स्थानों पर पाए जाने वाला एक दुर्लभ पुष्प है। हिमालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तरी म्यांमार सहित उत्तरी-पश्चिम चीन के कुछ इलाकों में भी यह पाया जाता है। उत्तराखंड में इसे राज्यपुष्प का ओहदा दिया गया है। भारत के अन्य भागों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कश्मीर में गलगल, हिमाचल में दूधाफूल, उत्तर पश्चिम मे बरगनडटोगेस। इसका वैज्ञानिक नाम साऊसिव्युरिया ओबलावालाटा है।
धार्मिक मान्यता: धार्मिक एवं प्राचीन मान्यता के अनुसार, यह नाम इसे देवता ब्रह्मा के नाम से मिला है। माना जाता है कि ब्रह्माकमल के पौधे में साल में एक बार ही फूल खिलता है वो भी सिर्फ रात्रि के समय। दुर्लभता के कारण ही इसे शुभ माना जाता है। केदारनाथ तथा बद्रीनाथ के मंदिरों में ब्रह्माकमल के फूल ही प्रतिमा में चढ़ाए जाते हैं। ब्रह्माकमल को भगवान शिव का सबसे प्रिय पुष्प माना गया है। यह भी मान्यता है कि कोई इसे खिलते हुए देख ले तो उसकी कोई भी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। इस पुष्प का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। हिमालयी क्षेत्र में जब मानसून के वक्त ब्रह्माकमल खिलने लगता है तो नन्दा अष्टमी के दिन देवताओं पर चढाने के बाद इसे श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
ब्रह्माकमल में है औषधीय शक्ति
वैज्ञानिक भाषा में ब्रह्माकमल को साऊसिव्युरिया ओबलावालाटा कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम एपीथायलम ओक्सीपेटालम है। इसे सुखाकर कैंसर रोग के उपचार में दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस फूल का 50 मिली अर्क दिन में दो बार लेने से बुखार ठीक हो जाता है। यूरिन में संक्रमण होने पर इसका अर्क पीने से इन्फेक्शन दूर होता है तथा इसके अन्य औषधीय गुण भी है।