सरकारी अस्पताल में भर्ती होना है तो अटेंडेंट साथ लेकर आएं
सीमेंटनगरी राजगांगपुर में आप घायल हुए और अपना कोई सगा संबंधी नहीं है तो यहां के सरकारी अस्पताल में एडमिट होकर इलाज कराने की उम्मीद न रखें क्योंकि यदि यहां एडमिट होना है तो आपको अपने साथ अपना अटैडेंट भी लेकर आना पड़ेगा। अन्यथा घायल हालत में रोजाना अस्पताल आएं मरहम पट्टी करायें व यहां से चलते बनें। पिछले दिनों यहां पर एक ऐसा ही मामला सामने आया है। जिसमें घायल होने के बाद दर्द से कराहते एक गरीब ठेला चालक को इसलिये एडमिट करने से मना कर दिया गया क्योंकि उसका कोई अटैडेंट नहीं था। हालांकि इसके तीन दिनों बाद उसके साथियों व अंचल के सहृदय व्यक्तियों की मदद से इस घायल ठेला चालक को इलाज के लिये बुर्ला मेडिकल भेजा गया है।
संवाद सूत्र, राजगांगपुर : अगर आप किसी कारणवश घायल हुए है और अपना कोई सगा संबंधी नहीं है तो इस सीमेंटनगरी के सरकारी अस्पताल में भर्ती होकर इलाज कराने की उम्मीद कतई न रखें। क्योंकि यदि यहां भर्ती होने के आपको अपने साथ एक अटेडेंट साथ लेकर आना जरूरी है। वरना घायल होने पर यहां अस्पताल आएं जरूर और मरहम पट्टी करा कर यहां से चलते बनें।
इतनी लंबी चौड़ी भूमिका सिर्फ इस लिए कि पिछले दिनों यहां पर एक ऐसा ही मामला सामने आ चुका है। किसी हादसे में घायल होने के बाद दर्द से कराहते एक गरीब ठेला चालक को सिर्फ इसलिए एडमिट करने से मना कर दिया गया क्योंकि उसका कोई अटेंडेंट नहीं था। हालांकि इसके तीन दिन बाद उसके साथियों व अंचल के सहृदय व्यक्तियों की मदद से उक्त ठेला चालक को इलाज के लिए बुर्ला मेडिकल रेफर करा दिया गया।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बामड़ा का मूल निवासी छोटू राजगांगपुर बस स्टैंड में विगत दस साल से ठेला चलाकर अपनी जीविका चलाता था। वह सुबह से शाम तक वहां आने वाली बसों से सामान उतारकर दुकानों तक पहुंचाने का काम करता था। करीब एक महीने पहले बस से सामान उतारने के क्रम में उसके पांव में चोट लग गयी थी। लेकिन एक महीने तक इलाज में ध्यान न देने से उसका घाव पक गया था। तीन दिन पहले वह चलने-फिरने से भी लाचार हो गया। इसका पता चला तो उसके साथी ठेला चालक उसका इलाज कराने के लिये उसे राजगांगपुर सरकारी अस्पताल लेकर पहुंचे। जहां डॉक्टरों ने कहा कि इलाज के लिए उसे भर्ती करना पड़ेगा, लेकिन यह तभी संभव होगा जब उसका कोई अटेंडेंट भी साथ में रहे। लेकिन छोटू का अपना यहां कोई नहीं होने से यह संभव नहीं था। जिससे उसके साथी उसे वापस लेकर आ गए और लगातार तीन दिन तक रोज उसे लेकर अस्पताल जाते, मरहम पट्टी कराते रहे। लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ। यह देखकर अंचल के सहृदय व्यक्तियों की मदद से उसे इलाज के लिये मंगलवार को बुर्ला मेडिकल भेजा गया। उसके इलाज में रुपयों की भी जरूरत है। जिसके लिए उसके साथियों मदद की गुहार लगायी है।
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अस्पताल में स्टाफ की कमी है। जिससे मरीजों के लिए अस्पताल की ओर से अटेडेंट प्रदान करना संभव नहीं है। जिस कारण एडमिट होने वाले मरीजों को अपना अटैडेंट लाने के लिये कहा जाता है।
- डा. जे. टोप्पो, प्रभारी, सरकारी अस्पताल, राजगांगपुर।