चार सप्ताह में धान खरीद पर निर्णय लें : हाई कोर्ट
सुंदरगढ़ जिले में खरीफ फसल की धान की खरीद बाधित होने के कारण बहुत से किसान धान बेचने से वंचित रह गए।
संवादसूत्र, सुंदरगढ़ : सुंदरगढ़ जिले में खरीफ फसल की धान की खरीद बाधित होने के कारण बहुत से किसान धान बेचने से वंचित रह गए। लॉक डाउन के चलते धान खरीद समय से पूर्व ही रोक दी गई, जिससे यह स्थिति उपजी। किसानों ने धान खरीदने को पुन: मंडी खोले जाने की गुहार लगाई, पर प्रशासन ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। समाजसेवी पुरुषोत्तम साहू ने इस सदर्भ में ओडिशा उच्च न्यायालय मे याचिका दाखिल की, जिसपर सुनवाई करते हुए 11 जून को न्यायालय ने सुंदरगढ़ जिलाधीश को 4 सप्ताह में निर्णय लेने का आदेश दिया है।
उल्लेखनीय है कि सुंदरगढ़ जिले में वर्ष 2019-20 के लिए खरीफ एवं रवि फसल मिलाकर 60 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इसमें से 50 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद विभिन्न समवाय संस्थानों द्वारा की जा चुकी है। राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने के उद्देश्य से धान उत्पादक किसानों को ऑनलाइन टोकन उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की थी। धान खरीदने की अंतिम तिथि 31 मार्च थी, पर कोविड-19 के मद्दे नजर जनता कर्फ्यू व बाद में लॉक डाउन के चलते धान खरीद रोक दिया गया था, हालांकि लॉक डाउन में धान खरीद पर रोक नहीं लगाई गई थी।
इस कारण जिले के 5 हजार 641 टोकन धारक किसान अपना लगभग 6 लाख 65 हजार क्विंटल धान नहीं बेच पाए थे। उन्होंने बाद में प्रशासन से पुन: धान की खरीद चालू करने का अनुरोध किया, पर इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इस पर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मो. रफीक व जस्टिस सावित्री रथ की खंडपीठ ने किसानों द्वारा सुंदरगढ़ जिलाधीश को धान खरीद के संदर्भ में सौंपे गए ज्ञापन पर 4 सप्ताह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है। इसे लेकर जिले के किसानों में राहत दिखाई दी है। हालांकि न्यायालय के आदेश को एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी इस दिशा में प्रशासन की ओर से कोई तत्परता दिखाई नहीं दी है। धान खरीद रोके जाने के पीछे किसी साजिश की भनक मिलती है, जब इस तथ्य पर नजर डालें कि लॉक डाउन के दौरान जब धान की खरीद पर बंदिश नहीं थी, तो सुंदरगढ़ जिले में क्यों धान की खरीद बंद करने को लेकर कई सवाल उठाये जा रहे हैं। मिलर्स को फायदा पहुंचाने के लिए धान की खरीद समय से पहले लॉक डाउन के बहाने बंद कर करने का आरोप भी लगाया जा रहा है। किसानों की मांगों को अनसुना कर उनमें निराशा फैलाई गई और फिर मिल मालिकों को प्रोत्साहित किया गया कि वह किसानों से सीधे न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत में धान खरीद लें। अब न्यायालय के आदेश आने के बाद सहकारिता व आपूर्ति विभाग में सन्नाटा पसरा है। अब किसानों की मांग और जिलाधीश के फैसले पर उनका भाग्य निर्भर करता है।