ऑटो चालकों की आर्थिक स्थिति हुई डामाडोल
कोरोना संक्रमण काल में मजदूरों और कर्मचारियों की आवाज तो हर कोई उठा रहा है लेकिन लॉकडाउन में रोजगार गंवाने वाले ऑटो चालकों की ओर किसी का ध्यान नहीं है।
तन्मय सिंह राजगांगपुर
कोरोना संक्रमण काल में मजदूरों और कर्मचारियों की आवाज तो हर कोई उठा रहा है, लेकिन लॉकडाउन में रोजगार गंवाने वाले ऑटो चालकों की ओर किसी का ध्यान नहीं है। जबकि ऑटो वाले सालाना, इंश्योरेंस, रोड टैक्स, फिटनेस टैक्स का पैसा भरकर राजस्व बढ़ाते है। कोरोना काल में सरकार तक से इनकी उपेक्षा हो रही है। कोरोना से निपटने के लिए जारी लॉकडाउन व शटडाउन का दौर ऑटो रिक्शा वालों के लिए दुखद है। शहर में 50 से ज्यादा ऑटो रिक्शा हैं। इनमें से करीब बीस ऑटो वाले शहर के विभिन्न स्कूलों में विद्यार्थियों को पहुंचाने और लाने का काम करते थे। इसके अलावा सवारियां भी भरपूर मिलती थी। लॉकडाउन के कारण इसका सीधा असर रिक्शा चालकों की आय पर पड़ा है। कई साल से ऑटो चला कर परिवार चलाने वाले जगमोहन नाग ने बताया कि इस लॉकडाउन में घर से इसी उम्मीद में निकलते हैं कि शायद आज अच्छी कमाई हो लेकिन घर जाने के समय तक उत्साह जनक कमाई नहीं होती। इस लॉकडाउन में हम ऑटो चालकों की हालत दयनीय हो गई है। पहले लॉकडाउन से हम रिक्शा चालकों की हालत पस्त है, पिछले एक साल से अधिकतर ट्रेन बंद होने से हमारी आधी कमाई ऐसे ही बंद थी ज्यादातर ऑटो चालक ट्रेन से उतरने वाली सवारी पर निर्भर रहते थे। इस लॉकडाउन में तो ऑटो चालकों का धंधा पूरी तरह से लोप हो गया है आइए सुनते है शहर के ऑटो चालकों की जुबानी। हम ऑटो चालक सरकार की ओर से निर्धारित हर टैक्स को भरते है लेकिन वर्तमान कोरोना महामारी के दौर में हमारे खस्ता हाल की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। एक समय का राशन जुटाना मुश्किल हो गया है।
जगमोहन नाग, ऑटो चालक लॉकडाउन के कारण हमारे लिए घर चलाना बहुत मुश्किल हो गया है। हम ऑटो वालों के सिर पर मकान का किराया और ऑटो की मासिक किस्त 8500/ बोझ बन गया है। इस कारण हमारी हालत बहुत दयनीय है।
मधु साहू, ऑटो चालक हर दिन ऑटो चलाने से हमारा घर और गाड़ी की किश्त चल जाती है। लेकिन लॉकडाउन- 2 की मार ऐसी पड़ी की वाहन नहीं चलने से परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। सरकार को हम ऑटो वालों की दयनीय हालत पर ध्यान देना चाहिए।
रुद्रो गड़तिया, ऑटो चालक