परिचर्चा तक सीमित होते जा रहे गांधीजी : दास
गांधीजी का दर्शन आज भी प्रासंगिक हैं। संबलपुर विश्वविद्यालय परिसर में गांधी दर्शन एवं हिंदी साहित्य पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उदघाटन करते हुए कुलपति दीपक कुमार बेहरा यह बात कही।
संसू, संबलपुर : गांधीजी का दर्शन आज भी प्रासंगिक हैं। संबलपुर विश्वविद्यालय परिसर में गांधी दर्शन और हिदी साहित्य पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कुलपति प्रो. दीपक कुमार बेहरा ने यह बात कही। बेहरा ने कहा कि गांधीजी ने विपरीत परिस्थितियों में काम किया और विश्व में मानवता के प्रति लोगों का ध्यानाकर्षित किया। कुलपति ने गांधी जयंती के 150 साल मनाए जाने के तहत हिदी विभाग के इस आयोजन की सराहना करते हुए संगोष्ठी के मंथन के बाद इसमें निकले परिणाम को लिपिबद्ध करने का आह्वान किया। साथ ही शोध एवं सृजन को बढ़ावा देने इस कार्यक्रम की स्मारिका प्रस्तुत करने में हरसंभव सहयोग का भी आश्वासन दिया। सम्मानित अतिथि प्रो. अशोक कुमार दास ने कहा कि गांधीजी की मृत्यु के साथ ही गांधी विचारधारा की मृत्यु हो गई। देश गांधीजी को धीरे-धीरे भूलता जा रहा है। वे केवल परिचर्चा में ही सीमित होकर रह गए हैं। आजादी के बाद गांधीजी ने जिस रामराज्य की कल्पना की थी। वह गणतंत्र में उसके विपरीत होता जा रहा है। हिंदी साहित्य ही उनके विचारों को जीवित रखे हुए है। शासकीय माधव विज्ञान महाविद्यालय के ंिहंदी के प्रोफेसर डॉ. रोहिताश्व कुमार शर्मा ने मोहनदास करमचंद गांधी से उनके महात्मा बनने की यात्रा पर प्रकाश डाला। कहा कि हिदी साहित्य में गांधीजी की विचारधारा को मुंशी प्रेमचंद से लेकर कई लेखकों की लेखनी में यह देखने को मिलता है।
मुख्यवक्ता ओडिशा राज्य मुक्त विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. जयंत कर शर्मा ने कहा कि गांधी जी विश्व नायक हैं। गांधजी का दर्शन चार स्तंभ पर खड़े हैं जिसमें अहिसा, सत्य, सत्याग्रह, नैतिकता है। इसी वजह वह पूरे विश्व में लोगों के ध्यानाकर्षण का केंद्र बने। गांधी से गांधीगिरी तक की जो यात्रा है वह दो तरह से है। एक गांधी पर प्रभाव और गांधी जी का प्रभाव। उन पर साहित्य का जो प्रभाव रहा है उसमें नरसी मेहता, मीरा, कबीर, तुलसीदास प्रमुख हैं। नरसी से वैष्णव जन, मीरा से सत्याग्रह, कबीर से चरखा चलाना, तुलसी से रामराज्य की कल्पना रही है। गांधी जी ने इन्हें हथियार समझकर आगे बढ़ाया। ंिहंदी विभाग के संयोजक डॉ. मुरारीलाल शर्मा द्वारा विषय प्रवेश के साथ शुरू हुई इस संगोष्ठी में मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ सहित ओड़िशा के कई विद्वानों ने अपने विचार रखे।