चरवाहे के बेटे ने भरी ऊंची उड़ान, जर्मनी की यूनिवर्सिटी में बना रिसर्च एसोसिएट
बलसिंहा गांव में चरवाहे के घर पैदा हुए 24 वर्षीय शेषदेव अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास से दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए।
संबलपुर, जेएनएन। कोई भी आदमी अगर कड़ी मेहनत की बदौलत सच्चे मन से चाह ले तो मंजिल उससे दूर नहीं रह सकती। जिले के नाकटीदेउल ब्लॉक के बलसिंहा गांव में चरवाहे के घर पैदा हुए 24 वर्षीय शेषदेव किसान ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास से न सिर्फ इस बात को हकीकत बना दिया है बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन गए। शेषदेव वर्तमान में जर्मनी के जार्ज अगस्ट यूनिवर्सिटी में रिसर्च एसोसिएट के रूप में कार्यरत हैं।
जिले के इस होनहार युवक को सोमवार शाम जिलाधीश समर्थ वर्मा ने सम्मानित किया। इस अवसर पर उन्होंने शेषदेव को अन्य युवाओं के लिए रोल मॉडल भी बताया। प्रशासन ने बलसिंहा गांव स्थित झोपड़ी में रह रही शेषदेव की बहन को बीजू पक्का घर योजना के तहत आवास प्रदान किया है और वहां जाने वाली सड़क की मरम्मत करने का निर्देश दिया है।
गरीबी और संघर्ष के बीच बढ़ा आगे
वर्ष 1994 जन्मे केमिकल साइंटिस्ट शेषदेव का जीवन गरीबी और संघर्ष की लंबी दास्तान है। जब वह केवल एक वर्ष के था तभी बीमारी से मां दुखी किसान की मौत हो गई। पिता विपीन किसान ने खेतों में काम करने के अलावा जानवरों को चराकर उसका व बहन का लालन पालन किया। शेषदेव ने छह वर्ष की उम्र में गांव के प्राथमिक स्कूल में दाखिला लिया। जहां किसान भाषी होने के कारण ओड़िआ समझने व बोलने में दिक्कत होती थी। लेकिन पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनने और पिता के सपनों पूरा करने की चाहत में उसने ओड़िआ सीखा। इसके बाद तो जैसे उसे पंख निकल आएं हो।
वह लगातार पांच बार अपने स्कूल का श्रेष्ठ छात्र रहा। वर्ष 2006 में उसे संबलपुर के जवाहर नवोदय विद्यालय में दाखिला मिला। जहां से उसने 92 फीसद अंक के साथ मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद कॉलेज में दाखिला लेकर आधी रात को मोमबत्ती जलाकर सहपाठियों की किताबें पढ़ता। 12वीं की परीक्षा के दौरान ही उसके बीमार पिता की मौत हो गई और बहन भी बीमार रहने लगी। ऐसे में स्कूल प्रबंधन और कुछ शुभ चिंतकों की मदद से उसने आगे की पढ़ाई जारी रखी।
नाइसर की परीक्षा में किया टॉप
वर्ष 2012 में शेषदेव ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (नाइसर) की परीक्षा में देश भर में 60वां स्थान हासिल किया लेकिन तब पिता और बहन की बीमारी में लिया गया कर्ज चुकाने के चलते उसने दाखिला नहीं लिया। इसके बाद वर्ष 2013 में दोबारा नाइसर की परीक्षा में शमिल हुआ और देश का टॉपर बन गया। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी चला गया। मई में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी उसका अभिनंदन किया और एक लाख रुपया पुरस्कार देकर शेषदेव को ओडिशा माटी का गौरव बताया।