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संबलपुरी साडिय़ां: आ‍ेडिशा की शान, इंदिरा-ऐश्वर्या समेत कई हस्तियों ने इसे बनाया खास

ओडिशा के संबलपुर में बुनकरों द़वारा तैयार की जाने वाली संबलपुरी साडिय़ों की देश-विदेश में लोकप्रियता को देखते हुए इसे जीआई टैग दिये जाने की मांग की जा रही है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 19 Dec 2019 03:04 PM (IST)Updated: Thu, 19 Dec 2019 03:04 PM (IST)
संबलपुरी साडिय़ां: आ‍ेडिशा की शान, इंदिरा-ऐश्वर्या समेत कई हस्तियों ने इसे बनाया खास
संबलपुरी साडिय़ां: आ‍ेडिशा की शान, इंदिरा-ऐश्वर्या समेत कई हस्तियों ने इसे बनाया खास

संबलपुर, राधेश्याम वर्मा। यह कला न केवल जीविकोपार्जन का साधन है बल्कि एक पूरे इलाके की अलग पहचान भी है। जी हां, बात हो रही है संबलपुरी साड़ी की। पश्चिम ओडिशा के बुनकर कई दशकों से लोकप्रिय संबलपुरी साड़ी समेत अन्य वस्त्रों को बनाकर बेचते रहें हैं। ये साड़ियां ओडिशा की शान कही जाती हैं। अपने जमाने की मशहूर सिने अभिनेत्री नसीम बानो (अभिनेत्री सायरा बानो की मां) ने इन साड़ियों को पहनकर चालीस के दशक में मशहूर कर दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उनकी बहू सोनिया गांधी, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, वर्तमान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, बॉलीवुड स्टार विद्या बालन। इन साड़ियों के कद्रदानों की लिस्ट काफी लंबी है।

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हाल के दिनों में ये साड़ियां चर्चा में आई जब लोकसभा में सांसद नितेश गंगदेव ने केंद्र सरकार से संबलपुरी साड़ियों के जीआइ (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) टैग की मांग की। उन्होंने लोकसभा में कहा कि देश-विदेश में संबलपुरी साड़ियों की लोकप्रियता और मांग को देखते हुए इसे जीआई टैग दिया जाना चाहिए। इससे संबलपुरी साड़ियों को एक नया परिचय मिल सकेगा और बुनकरों की आर्थिक बदहाली दूर हो सकेगी।

 भुलिया समुदाय का पुश्तैनी कारोबार संबलपुरी साड़ी तैयार करना भुलिया समुदाय के लोगों का यह पुश्तैनी कारोबार है। वर्ष 1926 में संबलपुर भुलिया समुदाय के जाने-माने नेता व बुनकर राधाश्याम मेहेर ने बुनकरों को एकजुट करने का प्रयास किया। बुनकरों की दक्षता विकास और संबलपुरी वस्त्रों की गुणवत्ता के लिए सहकारी समिति गठित की। संबलपुरी साड़ियों के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने उत्कल पर्दा एजेंसी

के बैनर तले देश के विभिन्न स्थानों का दौरा किया।

संसद में उठी जीआइ टैग की मांग क्षेत्रीय सांसद नितेश गंगदेव ने केंद्र सरकार से जीआ (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) टैग की मांग करते हुए सदन में कहा कि पश्चिम ओडिशा के संबलपुर समेत कई अन्य जिलों के बुनकरों का यह पुश्तैनी कारोबार है। बाजार में कच्चे माल के अभाव और नकली साड़ियों की

वजह से बुनकरों की समस्या बढ़ने लगी है। ऐसे में उन्हें सरकारी सहायता की सख्त आवश्यकता है। उन्होंने बुनकरों के इस पुश्तैनी कारोबार को बचाने और संबलपुरी हथकरघा उद्योग को सुरक्षित रखे जाने के लिए सरकार की ओर से चलित वित्तवर्ष में पैकेज घोषित किये जाने का प्रस्ताव भी दिया। संबलपुरी साड़ी के लिए सांसद की मांग से बुनकरों में खुशी देखी जा रही है।

किसे मिल सकता है जीआइ टैग

किसी भी वस्तु को जीआइ टैग देने से पहले उसकी गुणवत्ता, पैदावार आदि की गहन जांच की जाती है। सुनिश्चित किया जाता है कि संबधित खास वस्तु की सबसे अधिक और वास्तविक उत्पादन संबंधित राज्य का ही है। कई बार ऐसा भी होता है कि एक से अधिक राज्यों में पाई जाने वाली फसल या किसी प्राकृतिक वस्तु को उन सभी राज्यों का मिला-जुला जीआइ टैग दिया जाए। यह बासमती चावल के साथ हुआ है।

बासमती चावल पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों का अधिकार है।

ऐश्वर्या राय ने शादी में पहनी थी तीन लाख की संबलपुरी साड़ी

संबलपुरी साड़ियों की कलात्मकता ने वैसे तो हर किसी को लुभाया। हिंदी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन की पत्नी व सांसद जया बच्चन को भी संबलपुरी साड़ी की कलात्मकता ने खासी छाप छोड़ी। उन्होंने जब ऐश्वर्या राय के साथ अपने पुत्र अभिषेक बच्चन की शादी तय होने के बाद अपनी बहू को देने के लिए संबलपुरी साड़ी को पसंद किया। सोनपुर के जाने-माने बुनकर चतुर्भुज मेहेर ने संबलपुरी साड़ी बुनकर तैयार की जिसकी कीमत तीन लाख रुपये से अधिक की बताई गयी। ऐश्वर्या राय ने अपनी शादी के एक समारोह में इसे पहना भी था।

पश्चिमी ओडिशा के छह जिले संबलपुरी साड़ियों के गढ़

संबलपुरी साड़ियों का गढ़ है पूरा पश्चिमी ओडिशा। इस इलाके के छह जिलों सम्बलपुर, सोनपुर, बारगढ़,

ब्रह्मापुर, बालांगीर और बौध संबलपुरी साड़ियां तैयार की जाती हैं। बौध जिले में महानदी के बीचोबीच

मरजाकुद नाम का एक टापू है। इस टापू पर बसे गांव के तकरीबन हर घर में संबलपुरी साड़ी तैयार की जाती है। यहां इस कला को देखने पर्यटक भी आते रहते हैं।

इस तरह होती है तैयार संबलपुरी साड़ी

इन साड़ियों को बुनने से पहले धागों को टाई डाई किया जाता है। धागों को रंग वाले गर्म पानी में डाई किया जाता है। पूरी तरह से रंग जाने के बाद धागों को पानी से निकाल कर सुखाया जाता है। सूखने के बाद अलग-अलग रंगों के धागों को एक एक करके साड़ियों में पिरोया जाता है। रेशम और सूती, दोनों ही धागों से यह साड़ियां बनती हैं।

  • 1926 में इस कला से जुड़े भुलिया समुदाय के कारीगरों को संगठित करने की हुई थी पहली कोशिश
  • 06 जिले हैं पश्चिमी ओडिशा क्षेत्र में जहां संबलपुरी साड़ियों के निर्माण का होता है व्यापक स्तर पर कारोबार
  • 40 के दशक में सायरा बानो की अभिनेत्री मां नसीम बानो ने इन साड़ियों को पहन की थी मॉडलिंग  


क्या होता है जीआइ (ज्योग्राफिकल इंडीकेशन) टैग

संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स लागू किया था। इसमें भारत के किसी भी क्षेत्र की विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है। बनारसी साड़ी, मैसूर सिल्क इसी के तहत संरक्षित हैं। जीआइ टैग का काम उस भौगोलिक परिस्थिति में पाई जाने वाली वस्तुओं का प्रयोग दूसरे स्थानों पर गैरकानूनी तरीके से करने से रोकना है।

 साड़ी की विशेषता

  • पुरानी होने पर संबलपुरी साड़ी का निखरता है रंग, हर्बल रंगों के उपयोग से रंग फीका नहीं पड़ता
  • समय के साथ ताल देकर बदलते डिजाइन से महिलाओं में बढ़ रही इसकी लोकप्रियता

  

विशिष्ट सम्मान से नवाजे गए कई कारीगर

संबलपुरी साड़ी के जानेमाने बुनकर स्थानीय झाडुआपाड़ा निवासी यदुमणि सूपकार को पद्मश्री पुरस्कार।

  • बरगढ़ के डॉ.कृतार्थ आचार्य को मिल चुका है पद्मश्री पुरस्कार
  • पद्मश्री सम्मान से नवाजे जा चुके हैं सोनपुर के चतुर्भुज मेहेर
  • बरगढ़ के कृतिवास मेहेर को भी विशेषज्ञता के लिए मिल चुका सम्मान

इन खासियत ने बनाया विशेष

संबलपुरी साड़ियों में ज्यादातर पारम्परिक जैसे शंख, चक्र, पुष्प, पुरी के जगन्नाथ भगवान की डिजाइन होती हैं। अब नए प्रयोग भी होने लगे हैं। ज्यामितीय आलेखन, पशु-पक्षी, किसी कविता की पंक्तियां भी इस्तेमाल की जा रही हैं।  

कद्रदानों में इंदिरा-सोनिया गांधी सहित कई मशहूर हस्तियां 

इन साड़ियों को ओडिशा के बाहर पहली बार तब राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली, जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन्हें पहनना शुरू किया।इन खासियत ने बनाया विशेष संबलपुरी साड़ियों में ज्यादातर पारम्परिक जैसे शंख, चक्र, पुष्प, पुरी के जगन्नाथ भगवान की डिजाइन होती हैं। अब नए प्रयोग भी होने लगे हैं। ज्यामितीय आलेखन, पशु-पक्षी, किसी कविता की पंक्तियां भी इस्तेमाल की जा रही हैं।

 

सायरा बानो की मां नसीम बानो ने चालीस के दशक में पहनी थी संबलपुरी साड़ी

चालीस के दशक में राधाश्याम मेहेर मुंबई (तत्कालीन बंबई) भी गए। उस समय नसीम बानो का जमाना था। बॉलीवुड में उन्हें ब्यूटी क्वीन माना जाता था। राधाश्याम उनसे भी मिले और संबलपुरी साड़ी के साथ उनकी मॉडलिंग कराने में सफल रहे। नसीम बानो की अभिनेत्री पुत्री सायरा बानो से बॉलीवुड के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार ने विवाह किया था।


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