महाराज कंस के वध के साथ बरगढ़ धनुयात्रा का समापन
पिछले ग्यारह दिनों से मथुरानगरी यानी बरगढ़ शहर में चल रहे महाराज कंस के अत्याचार का अंत हो गया। पौष पूर्णिमा की रात गोपपुर से मथुरानगरी घूमने आए भगवान श्रीकृष्ण ने भाई बलराम के साथ मिलकर अपने मामा महाराज कंस का वध कर मथुरानगरी के लोगों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिला दी।
संवाद सूत्र, संबलपुर : पिछले ग्यारह दिनों से मथुरानगरी यानी बरगढ़ शहर में चल रहे महाराज कंस के अत्याचार का अंत हो गया। पौष पूर्णिमा की रात गोपपुर से मथुरानगरी घूमने आए भगवान श्रीकृष्ण ने भाई बलराम के साथ मिलकर अपने मामा महाराज कंस का वध कर मथुरानगरी के लोगों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिला दी।
भगवान श्रीकृष्ण की कथा पर आधारित बरगढ़ के इस खुले मंच के विश्व प्रसिद्ध पौराणिक नाटक को देखने के लिए पिछले ग्यारह दिनों से हजारों लोग पहुंचे। धनुयात्रा के दौरान बारिश के बावजूद आयोजकों और दर्शकों का उत्साह कम नहीं हुआ। शुक्रवार को पौष पूर्णिमा की रात महाराज कंस के वध के साथ धनुयात्रा के समापन को देखते हुए भारी भीड़ जुटी।
पौराणिक घटनाक्रम के अनुसार, श्रीकृष्ण और भाई बलराम गोपपुर से मथुरानगरी पहुंचे। उस समय महाराज कंस अपने राजदरबार में नृत्य-गीत देखने में व्यस्त था। तभी गुप्तचर ने श्रीकृष्ण और बलराम के मथुरा में होने की सूचना दी। श्रीकृष्ण की अलौकिक शक्ति के बारे में पता चलने के बाद महाराज कंस को अपनी मौत की आकाशवाणी की याद आ गई। अपनी मौत को याद कर कंस भयभीत हो गया। महामंत्री और सेनापति ने उसे आश्वासन देने की कोशिश की लेकिन वह श्रीकृष्ण के नाम से भयभीत रहा। उसने अपने मल्ल योद्धाओं से श्रीकृष्ण को देखते ही वध करने के लिए तैयार रहने को कहा। अपने भय को छिपाने की खातिर मदिरापान किया और नृत्य गीत में लिप्त हो गया।
श्रीकृष्ण और बलराम नगर परिक्रमा करने के बाद जब राजदरबार की ओर जा रहे थे तभी कुबलया हाथी ने उन्हें रोकने की कोशिश की और मरा गया। दोनों भाइयों ने मल्ल योद्धाओं का वध करते हुए राजदरबार पहुंचे और महाराज कंस के सामने शिव को धनुष तोड़कर मामा कंस तक पहुंचे और उसका वध कर दिया और उग्रसेन का दोबारा राज्याभिषेक हुआ।