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पिता की इच्छा पूरी करने जर्मनी से गांव लौटा बेटा

जर्मनी के यूनिवर्सिटी ऑ़फ गोटिनजेन में रिसर्च एसोसिएट के रुप में कार्यरत संबलपुर जिला के बलासिघा गांव के अनाथ शेष किसान को देख अब उसी के गांव के बुजुर्गों का मानना है कि बेटा हो तो शेष जैसा हो।

By JagranEdited By: Published: Wed, 11 Sep 2019 09:32 PM (IST)Updated: Wed, 11 Sep 2019 09:32 PM (IST)
पिता की इच्छा पूरी करने जर्मनी से गांव लौटा बेटा
पिता की इच्छा पूरी करने जर्मनी से गांव लौटा बेटा

संवाद सूत्र, संबलपुर : जर्मनी के यूनिवर्सिटी ऑफ गोटिनजेन में रिसर्च एसोसिएट के रूप में कार्यरत संबलपुर जिला के बलासिघा गांव के अनाथ शेष किसान को देख बुजुर्गों का मानना है कि बेटा हो तो शेष जैसा हो। शेष अपने दिवंगत पिता बिपिन किसान की इच्छा को पूरा करने के लिए ना केवल जर्मनी से अपने गांव लौटा बल्कि गांव के 70 बुजुर्गों को अपने खर्च पर महाप्रभु श्री जगन्नाथ के दर्शन कराने पुरी ले गया है।

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बलासिघा गांव से शेष किसान अपने पिता बिपिन किसान के सभी 70 साथियों को दो बस से पुरी धाम ले जाया गया। शेष के अनुसार उसके पिता की इच्छा थी कि पहला वेतन मिलने के बाद बेटा उन्हें और उसके साथियों को महाप्रभु श्री जगन्नाथ के दर्शन कराने ले जायेगा। पिता के जीवित रहने तक शेष को यह सौभाग्य नहीं मिला। लेकिन वर्षों बाद उसे अपने पिता की इच्छा पूरी करने का मौका मिला और उसने पिता के साथियों को महाप्रभु के दर्शन कराने पुरी ले गया।

पेट भरने स्कूल गया और बदल डाली किस्मत : करीब बीस वर्ष पहले तक वह अपने पिता बिपिन के साथ गांव में मवेशी चराता था। गरीबी की वजह से उसे आंगनबाड़ी या स्कूल जाने का मौका नहंी मिला। भला हो सरकार का जिसने गरीब बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए मिडडे मील की शुरुआत की। पिता बिपिन को जब इस बारे में पता चला तो उसने शेष को गांव के स्कूल में भेजना शुरू कर दिया ताकि बेटे का पेट भर सके, लेकिन शेष की किस्मत में कुछ और ही लिखा था। उसने इस मौके का लाभ उठाया और स्कूल में पढ़ाई करने लगा। बलासिघा गांव के स्कूल में वह लगातार पांच वर्षों तक अव्वल रहा। उसकी इसी काबिलियत की वजह से वर्ष 2006 में शेष को स्थानीय गोशाला स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय में दाखिला मिल गया। नवोदय विद्यालय में पढाई करने के दौरान ही शेष नेशनल स्क्रीनिग टेस्ट की तैयारी में जुटा रहा। छुट्टियों में जब वह गांव जाता तो पिता के साथ काम करने चला जाता।

पिता का सरमाया छिनने के बाद भी नहीं हारी हिम्मत : वर्ष 2006 में पिता बिपिन की मौत के बाद शेष पूरी तरह अनाथ हो गया। इस वजह से उसकी पढ़ाई बाधित हो गयी। किसी तरह वह अपने इस दु:ख से उबरा और नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च की परीक्षा पास की और उसे रिसर्च के लिए जर्मनी जाने का मौका मिला। रिसर्च एसोसिएट के रूप में उसे 2158 यूरो स्कालरशिप(भारतीय करेंसी के दो लाख रुपये) मिलने लगा। इसके बाद से शेष कई बार संबलपुर आ चुका है। बीते वर्ष भुवनेश्वर में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और संबलपुर में तत्कालीन जिलाधीश समर्थ वर्मा ने शेष किसान का सम्मान किया था।

संबलपुर जिला के नाकटीदेउल ब्लॉक अंतर्गत बलासिघा गांव में 4 मार्च 1994 को जन्मे शेष किसान की कहानी दूसरों के लिए प्रेरणा लायक है। जन्म के एक वर्ष बाद ही मां की मौत के बाद उसके पिता ही शेष के लिए सब कुछ थे। पिता की मौत के बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और सफलता की उस ऊंचाई को छूने लगा है, जो किसी किसी के नसीब में होती है। बावजूद इसके वह अपने गरीब पिता की इच्छा को याद रखा और पिता के साथियों को महाप्रभु के दर्शन भी करा दिया।


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