शीतलपाड़ा में तीन पीढि़यां शौचालय से वंचित
शीतलपाड़ा बस्ती मे लगभग 600 घर और चार हजार के करीब आबादी आज भी शौचालय के लिये तरस रहे है।
राउरकेला, जेएनएन। उदितनगर के शीतलपाड़ा बस्ती मे आजादी के 72 साल बाद भी यहां के लोग खुले में शौच जाने को विवश हैं। वैसे तो इस बस्ती में समस्याओं का अंबार है लेकिन बस्तीवासियों की खास मांग है कि उनके घरों सहित बस्ती में भी सामूहिक शौचालय का निर्माण किया जाए जिससे उनकी तीसरी पीढ़ी के महिला, युवतियों सहित पुरुषों को खुले में शौच को न जाना पड़े और उनके घर की इज्जत बनी रहे।
बस्तीवासियों का आरोप है कि वे लोग अपने दादा के जमाने से इस बस्ती में रहते आ रहे हैं। लगभग 600 घर और चार हजार के करीब आबादी वाली इस बस्ती में लोग आज भी शौचालय के लिये तरस रहे है। यहां के लोग डं¨पग के पहाड़ व आस पास के जंगल में शौच के लिए जाते हैं। डं¨पग सहित बाहर में कुली व मजदूरी कर घर चलाने वाले बस्तीवासी खुद से शौचालय बनवाने में असमर्थ हैं। बस्ती के महिला-पुरुषों ने इसके लिए कई बार आंदोलन कर नगरपालिका, राउरकेला महानगर निगम, अतिरिक्त जिलापाल सहित रघुनाथपाली विधायक सुब्रत तरई से भी बस्ती में सामूहिक शौचालय बनाने के लिए मांग पत्र सौपने के साथ अनुरोध किया। लेकिन, अब तक इस दिशा में किसी के ध्यान नहीं दिए जाने का आरोप है। बस्तीवासियों का आरोप है कि भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के तहत शहर के कई बस्तियों में घरों तथा सामूहिक शौचालय बनाया जा रहा है। लेकिन शीतलपाड़ा के प्रति प्रशासनिक उदासीनता उनकी समझ से परे है।
आरएसपी के रिकार्ड के हिसाब से शीतलपाड़ा बस्ती 74 साल से बसी है। लेकिन मेरे दादा, पिताजी तथा अब मै खुद 20 साल का हो चुका हूं। लेकिन इस बस्ती में नेता, प्रशासन क्या कोई भी अब तक यहां एक भी शौचालय नही बनवाया। इस कारण बस्ती के पुरुष सहित महिलाएं मजबूरी में डंपिंग के पहाड़ एवं जंगल में खुले में शौच करने जा रहे है। इस संबंध में राउरकेला महानगर निगम की उपायुक्त सुषमा बिलुंग, राउरकेला स्मार्ट सिटी की सीईओं रश्मिता पंडा तथा अतिरिक्त जिलापाल मोनीषा बनर्जी तक को शौचालय बनाने की मांग पर मांग पत्र देने के साथ अनुरोध कर चुके है। लेकिन हमेशा बनवा देंगे आश्वासन देकर वापस लौटा दिया जाता है। - सोनू साहू, बस्ती निवासी ।
जन्म से लेकर 25 साल को हो चुका हूं। घर में सभी लोग मजदूरी कर गुजारा करते है। इस वजह से निजी तौर पर घर में शौचालय बनाने में असमर्थ है। घर के पुरुष सहित मां-बहने खुले में शौच करने जाते है। खराब लगता है। लेकिन मजबूरी है कि जंगल में शौच करने जाना पडता है। चुनाव के दौरान नेता आते हैं, वादा करते है फिर भूल जाते है। गरीबों की कोई नही सुनता है। बस्ती में सामूहिक शौचालय बनना जरुरी है।
- राजू नाग, बस्ती निवासी।
सरकार एक ओर घर-घर में शौचालय बनवाने के लिए कहने के साथ इसका प्रसार-प्रचार कर रही है। लेकिन इस बस्ती में सरकारी अधिकारी घर-घर नही तो कम से कम सामूहिक शौचालय तो बनवा सकते हैं, की मांग की गई। कई बार मांग करने तथा रैली निकाल कर आंदोलन करने के बावजूद कोई भी अधिकारी बस्ती के प्रति ध्यान नही दे रहा है। जो सरासर गलत है। बाहर शौच जाने के दौरान शर्म तो आती है। लेकिन मजबूरी और विकल्प नहीं होने के कारण खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है।
- संयुक्ता नाग, बस्ती निवासी ।
रोज कमाने जाने के बाद घर में चूल्हा जलता है। इस कारण घर में अपने दम पर शौचालय बनाना संभव नहीं है। जन्म से ही घर पर शौचालय नही होने के कारण मेरे घर के ही नही पूरी बस्ती की महिलाएं व युवतियां खुले में शौच करने के लिए डंपिंग पहाड़ तथा उसके आस-पास के जंगल में जा रहे है। हमारे बच्चें खुले में शौच करने ना जाये इसके लिये प्रशासन से अनुरोध है कि वह बस्ती में कम से कम सामूहिक शौचालय बनवा दे। जिससे पूरी बस्ती उनकी आभारी रहेगी।
- सरस्वती लोहार, बस्ती निवासी।