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दिलीप तिर्की पर भारी पड़ीं सुनीता बिस्वाल

राज्य की सत्तासीन बीजू जनता दल(बीजद) ने सोमवार को सुंदरगढ़ संसद

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 11:10 PM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2019 11:10 PM (IST)
दिलीप तिर्की पर भारी पड़ीं सुनीता बिस्वाल
दिलीप तिर्की पर भारी पड़ीं सुनीता बिस्वाल

जागरण संवाददाता, राउरकेला: राज्य की सत्तासीन बीजू जनता दल(बीजद) ने सोमवार को सुंदरगढ़ संसदीय सीट के लिए नवांगतुक सुनीता बिश्वाल के नाम पर आधिकारिक मुहर लगाते हुए उन्हें टिकट दे दिया है। उनके साथ ही जिले के सात में छह विधानसभा सीट के लिए भी अपने उम्मीदवारों के नाम की सूची जारी कर दी। इनमें राउरकेला से शारदा प्रसाद नायक पर लगातार चौथी बार अपना भरोसा जताया है। इसी तरह रघुनाथपल्ली के विधायक सुब्रत तरई के उपर लगातार तीसरी बार अपना भरोसा जताया है। वे इस सीट से मौजूदा विधायक हैं। जबकि राजगांगपुर के विधायक मंगला किसान पर लगातार दूसरी बार बीजद ने भरोसा जताते हुए टिकट दिया है। तलसरा की बात करें तो यहां पर एक नए चेहरे स्टीफन सोरेन को बीजद ने मौका दिया है। सुंदरगढ़ विधानसभा सीट के लिए बीजद ने पार्टी के अंदर प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद जोगेश सिंह को उम्मीदवार बनाते हुए टिकट दिया है। जोगेश हाल में कांग्रेस छोड़कर बीजद में शामिल हुए थे। जिसके बाद से वहां पार्टी में खींचतान जारी थी। बीजद की कुसूम टेटे को डैमेज कंट्रोल के लिए सुंदरगढ़ विशेष

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विकास परिषद का अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन टिकट घोषणा से दो दिन पहले ही उन्होंने इस पद से इस्तीफा देकर पार्टी पर दबाव बनाने की कोशिश की। लेकिन यह काम नहीं आया। जिन छह उम्मीदवारों को टिकट दिया गया उनमें शारदा, सुब्रत व मंगला पूर्व मंत्री रह चुके हैं। बहरहाल

अब टिकटों की घोषणा के

बाद इसकी प्रतिक्रिया पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।

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सुनीता बिश्वाल: पूर्व मुख्यमंत्री हेमानंद बिश्वाल की बेटी सुनीता अचानक सुर्खियों में आयी और एक राजनीतिक घटनाक्रम के तहत बीजद में शामिल हो गयी। जिसके बाद से ही सुंदरगढ़ लोकसभा सीट से उनके चुनाव लड़ने की संभावना जतायी जा रही थी। पिता के संपन्न राजनीतिक विरासत के बावजूद सुनीता को सक्रिय राजनीति में कभी नहीं देखा गया। सुनीता भुइयां जाति से आती हैं जिसके मतदाताओं की एक बड़ी संख्या जिले में है।

बीजद सुनीता के जरिये भुइयां वोट हासिल कर भाजपा का गढ़ रहे सुंदरगढ़ संसदीय सीट पर अपना कब्जा चाहती है।

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शारदा नायक: कांग्रेस से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने के बाद वर्ष 2000 में निर्दलीय चुनाव लड़कर ताकत का एहसास कराने वाले शारदा नायक ने वर्ष

2004 में अचानक बीजद का दामन थाम सभी को चौंका दिया था। उन्होंने 2004 में जीत हासिल करने के साथ ही 2009 में इसे दोहराकर अपनी

नेतृत्व शक्ति का एहसास करा दिया था। लगातार दो जीत हासिल करने पर शारदा नायक को वर्ष 2009 में खाद्य आपूर्ति मंत्री भी बनाया था। लेकिन अपने विजय रथा को 2014 में जारी नहीं रख पाए और लंबे अरसे के बाद राउरकेला की राजनीति में लौटे दिलीप राय से वे दस हजार वोटों से हार गए थे। इसके बाद से वे राउरकेला विकास प्राधिकरण(आरडीए) चेयरमैन के रूप में अपनी सेवा दे रहे थे। दिलीप राय के बीजद में घरवापसी के संकेत मिलने के बाद आशंका जतायी जा रही थी कि शारदा नायक को इस बार टिकट से वंचित किया जा सकता है लेकिन उन्होंने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए बीजद का टिकट हासिल कर लिया।

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सुब्रत तरई: सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आये सुब्रत तरइ पहली बार 2009 में बीजद के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत हासिल की थी। नवीन पटनायक की सरकार को बेदखल करने के लिए हुई चर्चित 29 मई मिडनाइट आपरेशन के नतीजे में शारदा नायक को जब मंत्रालय गंवाना पड़ा था वहीं सुब्रत तरई को परिवहन मंत्रालय दिया गया था। इसके बाद वर्ष 2014 में भी वे बीजद के टिकट पर चुनाव जीते थे। मोदी लहर में जहां शारदा नायक ने सीट गंवायी थी वहीं सुब्रत तरइ ने इस सीट को बचाने में कामयाबी हासिल की थी।

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मंगला किसान: बीजू बाबू के शार्गिद रहे मंगला किसान चार दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं। बीजू बाबू के साथ जनता दल से लेकर नवीन पटनायक के दौर में बीजद से वे लगातार जुड़े रहे हैं। 1985 से 2004 तक लगातार मंगला किसान राजगांगपुर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। 1990 से 1994 तक वे वन व पर्यावरण मंत्री रहे। 2004 में कांग्रेस के उम्मीदवार ग्रेगोरी मिज ने उन्हें हराया था। जिसके बाद बीजद ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया था। 2009 में मंगला किसान ने इस सीट से चुनाव नहीं लड़ा उनकी जगह बेंडिक्ट तिर्की को बीजद ने उम्मीदवार बनाया था। लेकिन वे मंगला किसान की भरपाई नहीं कर पाए और शिकस्त मिली। जिसके बाद 2014 में फिर से मंगला किसान को बीजज ने टिकट दिया और वे जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।

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रंजीत किसान: कांग्रेस से राजनीतिक सफर शुरु करनेवाले सुंदरगढ़ जिला परिषद के पूर्व चेयरमैन रंजीत किसान ने कांग्रेस के टिकट पर वर्ष 2009 में चुनाव हारने के बाद वर्ष 2014 में बीजद का दामन थाम लिया था। बीजद के टिकट पर बणई विधानसभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन इसमें भी उन्हें शिकस्त मिली थी। इसके बाद 2019 में बीजद ने फिर से उनपर भरोसा जताया है।

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स्टीफन सोरेंग: बीजद के एससी-एसटी मोर्चा के प्रदेश सचिव स्टीफन विल्सन सोरेंग को इस बार दल तलसरा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बना रही है। स्टीफन एकदम नया व युवा चेहरा हैं। इससे पहले उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा है। बीजद से ही उन्होंने राजनीतिक सफर की शुरुआत की है। बैचलर आफ इंजीनियरिग व एमबीए पास आउट स्टीफन सभी उम्मीदवारों में सबसे युवा चेहरा हैं।

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जोगेश सिंह: अनुसूचित जनजाति के लिए सीट आरक्षित होने के बाद सुंदरगढ़ विधानसभा सीट से 2009 से लगातार कांग्रेस की टिकट पर जीतते आ रहे जोगेश सिंह ने 2019 में चुनावी माहौल बनते ही दल से व विधायकी से इस्तीफा देकर बीजद का दामन थाम लिया। उनके साथ विवाद भी जुड़ गया जब 2014 चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार सहदेव खाखा ने उनपर गैर आदिवासी होने का आरोप लगाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय से जोगेश को राहत मिली। जोगेश के बीजद में आते ही सुंदरगढ़ बीजद में विवाद शुरू हो गया है। उनके खिलाफ कुसूम टेटे ने मोर्चा खोल रखा है।


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