कोई मरने वाले का मुंह देखने को आतुर तो कोई शव छोड़..
महामारी कोरोना ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है। इस बीच न केवल इंसान मौत के डर से कांप रहे हैं बल्कि वे मानवता को भूल रहे है।
जागरण संवाददाता, राउरकेला : महामारी कोरोना ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है। इस बीच, न केवल इंसान मौत के डर से कांप रहे हैं, बल्कि वे मानवता को भूल रहे है। कहीं-कही तो खून के रिश्ते को भी दरकिनार कर दिया जा रहा है। हालांकि इन सब निराशा के बीच कुछ लोग अपने जीवन को जोखिम में डालकर मानवता का कार्य जारी रखे हुए है। कोरोना काल के दौरान सुंदरगढ़ शहर के रानीबागीचा स्थित श्मशान घाट से कई अलग-अलग चित्र उभर कर सामने आए। जो सभी को आश्चर्यचकित कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले सुंदरगढ़ एनटीपीसी कोविड स्वास्थ्य केंद्र से उक्त श्मशान घाट में एक महिला का शव आया था। भेड़ाबहाल की उक्त महिला की कोरोना से मृत्यु हुई थी। एंबुलेंस में शव आने के बाद महिला का पति और बेटी भी पीछे-पीछे पहुंचे थे। शव को आग के हवाले करने से पहले अचानक पति सामने आया था ताकि अंतिम बार अपनी पत्नी का चेहरा देख ले तथा हिदू रिवाज के तहत मांग में सिदूर भरकर उसे अंतिम विदाई दे। लेकिन कोरोना गाइडलाइन के तहत इन सभी रस्मों को निभाने की मनाही थी। इस कारण दूर से पति ने फूलमाला अपनी पत्नी के शव पर अर्पित कर उसे नम आंखों से विदाई दी तथा शोक की स्थिति में लौट गया। वहीं, सात मई को इसकी विपरीत घटना देखने को मिली। रात में चार शव एनटीपीसी कोविड केंद्र से एक एंबुलेंस में पहुंचे। तेज बारिश के कारण तीन घंटे तक पार्थिव शरीर के लिए अर्थी नहीं सज पाई थी। हालांकि रात 9 बजे बारिश थम गई। लेकिन तब तक तीन मृतकों के स्वजन नहीं पहुंचे थे। एक शव का अंतिम संस्कार करने के बाद, श्मशान बंधुओं ने अन्य तीन मृतकों के रिश्तेदारों का इंतजार किया। लेकिन रात होने के बाद भी कोई नजर नहीं आया। अंत में, एंबुलेंस चालक ने बताया कि सभी मृतकों के रिश्तेदार अस्पताल से घर लौट गए थे। परिवार वालों का कहना था कि शवों को तो श्मशान बंधु जला देंगे तथा इस बारिश में उनका क्या काम है। जिसके बाद श्मशान बंधुओं ने शवों का दाह संस्कार कर दिया। हालांकि, मृत शरीर को उनके रिश्तेदारों द्वारा यूं ही छोड़ दिया जाना सभी को स्तब्ध कर दिया। कोरोना काल में यह दोनों विपरीत चित्र जितना चिताजनक है, उतना ही श्मशान बंधुओं की मानवता आश्वस्त करने वाली है।