ब्राह्माणी ब्रिज पर बस राजनीतिक ड्रामा जारी
ब्राह्माणी नदी पर बने सड़क पुल की मौजूदा हालत किसी से छिपी नह
जागरण संवाददाता, राउरकेला: ब्राह्माणी नदी पर बने सड़क पुल की मौजूदा हालत किसी से छिपी नहीं है। पुल की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। जिसमें आए दिन मरम्मत का काम चलने से वहां पर जाम लग जाता है। इस पुल की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यहां पर नया पुल बनाने की मांग विगत दो दशकों से होती रही है। केंद्र में कांग्रेस नीत संप्रग तथा भाजपा नीत राजग सरकार, दोनों ही सरकारें यहां पर दूसरा पुल बनाने के लिए हरी झंडी दिखा चुकी हैं। लेकिन इसके बाद भी द्वितीय ब्रिज के निर्माण का काम केवल राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तक में सीमित रह गया है।
कांग्रेस नीत संप्रग सरकार की द्वितीय पारी में ब्राह्माणी नदी पर दूसरा पुल बनाने के लिए टेंडर जारी करने के बाद गेमन इंडिया नामक संस्था को कार्यादेश मिला था। लेकिन जमीन अधिग्रहण का काम न हो पाने से यह कंपनी दो साल तक इंतजार करने के बाद बोरिया बिस्तर लपेटकर चली गई। आम चुनाव-2014 में भाजपा नीत राजग की सरकार आने के बाद यहां दूसरा पुल बनाने का ठेका हैदराबाद की जीकेसी कंपनी को मिला। पुल निर्माण के लिए गत जुलाई-2017 में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने शिलान्यास किया था। उस दौरान उन्होंने 15 दिनों में काम शुरू करने का दावा किया था। लेकिन पुल का निर्माण कार्य शुरू न होने का आरोप विपक्षी दल लगाते रहे हैं। पुल निर्माण में विलंब पर नाराजगी जताते हुए भाजपा के नेता व नगर विधायक दिलीप राय विधायक पद समेत भाजपा से इस्तीफा दे चुके है। हालांकि भाजपा के अन्य नेता इससे इतफाक नहीं रखते है तथा पुल निर्माण का काम शुरू होने का दावा करते रहे है।
इन दावों और आरोप-प्रत्यारोप के बीच अब भाजयुमो ने पुल निर्माण के लिए राज्य सरकार पर जमीन अधिग्रहण में सहयोग न करने के नाम पर तिरंगा यात्रा निकाली है। आश्चर्य की बात यह है कि यह पुल सुंदरगढ़ जिले का लाइफ लाइन होने के बाद भी सामुदायिक हित के प्रोजेक्ट में भाजपा, बीजद व कांग्रेस के नेताओं की ओर से मिलजुलकर पुल निर्माण का काम त्वरित करने का प्रयास करने के बजाय महज श्रेय लेने की होड़ में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर ही जारी है।
सामूहिक प्रयास की जरूरत :
इस मसले पर स्थानीय बुद्धिजीवियों का मानना है कि सामूहिक हित के इस काम को पूरा करने में सामूहिक प्रयास की जरूरत है। अन्यथा दूसरा पुल बनाने का श्रेय लेने की होड़ में यदि यहां दशकों पुराना पुल धराशाई हो गया तो इन राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे को पुल टूटने का दोष देने के लिए नए-नए आरोप खोजते हुए नजर आएंगे। वहीं इन दलों के नेताओं पर यह कहावत भी चरितार्थ होती नजर आएगी कि अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गई खेत।