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84 गांव के लोग जंगल जमीन पर अधिकार से वंचित

आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ जिले के मूल वासियों को वनवासी का परिचय देने के साथ साथ जंगल जमीन पर अधिकार दिया जा रहा है। तीन साल पहले जिला कमेटी के अनुमोदन के बावजूद जीपीएस मैपिग नहीं होने के कारण जिले के 84 गांव को सामूहिक जंगल जमीन का पट्टा नहीं मिल पाया है एवं वे अपने अधिकार से वंचित हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Jul 2020 12:22 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 06:20 AM (IST)
84 गांव के लोग जंगल जमीन पर अधिकार से वंचित
84 गांव के लोग जंगल जमीन पर अधिकार से वंचित

जागरण संवाददाता, राउरकेला : आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ जिले के मूल वासियों को वनवासी का परिचय देने के साथ साथ जंगल जमीन पर अधिकार दिया जा रहा है। तीन साल पहले जिला कमेटी के अनुमोदन के बावजूद जीपीएस मैपिग नहीं होने के कारण जिले के 84 गांव को सामूहिक जंगल जमीन का पट्टा नहीं मिल पाया है एवं वे अपने अधिकार से वंचित हैं।

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सरकार की ओर से वनवासी का परिचय देने के साथ ही जंगल जमीन पर अधिकार कानून 2006 के अनुसार उनके अधिकार वाली जमीन का पट्टा भी दिया जा रहा है। विभागीय अधिकारियों की उदासीनता के कारण सुंदरगढ़ जिले के 84 गांवों के लोगों को उनका अधिकार नहीं मिल पाया है। 29 जून को आयोजित जिला स्तरीय कमेटी की बैठक में सात दिनों के भीतर जीपीएस मैपिग का फैसला लिए जाने के बावजूद इस दिशा में वन विभाग की ओर से एक भी कदम नहीं उठाया गया है। वर्तमान में जिले में पौधारोपण के कार्यक्रम में वन कर्मचारी नियोजित रहने के कारण जीपीएस मैपिग को महत्व नहीं दिए जाने का आरोप लग रहा है। पंचायत चुनाव से पूर्व जिले के दौरे पर आए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने सामूहिक जंगल जमीन अधिकार शिरोनाम प्रदान करने की योजना का शुभारंभ किए थे। उन्होंने अपने हाथों से बालीसंकरा ब्लॉक के पाटोडीह व ढाबाटोली गांव को पट्टा दिए थे। इसके अलावा हेमगिरि प्रखंड के बालिजोरी गांव को भी पट्टा मिला था। जिसके बाद जिले के 296 गांव से इसके लिए आवेदन आए थे। इनमें हेमगिर तहसील से 78 गांव, लेफ्रीपाड़ा तहसील से 25, टांगरपाली तहसील से 6, सुंदरगढ़ सदर से 63, सबडेगा से 4्र1, बालीशंकरा तहसील से 26, बड़गांव से 5, राजगांगपुर से 35, कुतरा से 17 गांवों से सर्वेक्षण के लिए आवेदन दिया गया था। इनमें से 84 गांवों को जिला स्तरीय कमेटी ने पट्टा के लिए अनुमोदन किया था। बाकी बचे 212 गांव के आवेदन को पुन: जांच के लिए भेजा गया। लेकिन इस बीच 84 गांव को पट्टे के लिए अनुमोदन मिले 3 साल बीत जाने के बावजूद जीपीएस मैपिग नहीं हो पाया है जिससे लोग अधिकार से वंचित हैं।


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