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दीनी व बुनियादी तालीम देकर संवारा जा रहा मुस्लिम बच्चों का भविष्य

इबादतगाह में केवल दीनी तालीम देने के पुराने कांसेप्ट से निकलकर पानपोष की मस्जिद तैयबा ट्रस्ट एक छत के नीचे मस्जिद मदरसा व अंग्रेजी स्कूल तीनों का संचालन कर रहा है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 10:54 PM (IST)Updated: Thu, 17 Oct 2019 06:21 AM (IST)
दीनी व बुनियादी तालीम देकर संवारा जा रहा मुस्लिम बच्चों का भविष्य
दीनी व बुनियादी तालीम देकर संवारा जा रहा मुस्लिम बच्चों का भविष्य

मुकेश कुमार सिन्हा, राउरकेला

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इबादतगाह में केवल दीनी तालीम देने के पुराने कांसेप्ट से निकलकर मस्जिद तैयबा ट्रस्ट, पानपोष एक छत के नीचे मस्जिद, मदरसा व अंग्रेजी स्कूल तीनों का संचालन कर रहा है। मकसद है कि दीनी तालीम के साथ बच्चों को स्तरीय बुनियादी शिक्षा भी दी जाए। ताकि वे किसी भी प्रतियोगिता में सफल होकर अपना मुकाम हासिल कर सके। राउरकेला सहित आसपास के इलाकों में की गई यह अपने तरह की अनोखी पहल है। ट्रस्ट का दावा है कि ओडिशा में यह पहला ट्रस्ट है जो इस तरह से एक छत के नीचे दीनी व बुनियादी शिक्षा दे रहा है। इस पहल का असर भी दिख रहा है। आसपास के इलाके से लोग अपने बच्चों को यहां भेज रहे हैं। इनमें लड़कियां भी शामिल हैं। जुलेखा अंग्रेजी स्कूल के नाम से मस्जिद की बिल्डिग में संचालित इस स्कूल में अंग्रेजी, हिदी, ओडि़या की पढ़ाई करायी जाती है। अलग से अरबी भी पढ़ायी जाती है। स्कूल में पढ़नेवाले बच्चों की संख्या फिलहाल 62 है और ट्रस्ट को उम्मीद है कि इसमें बढ़ोत्तरी होगी।

करियर छोड़कर ट्रस्ट से जुड़ीं श्रीवैद्या राघवन : स्कूल की प्राचार्य श्रीवैद्या राघवन को जब इस पहल की जानकारी हुई तो उन्होंने यहां अपनी सेवा देने का निश्चय किया। पिछले छह महीने से वह यहां काम कर रही हैं और स्कूल में कई बदलाव किए हैं। श्रीवैद्या के इस स्कूल से जुड़ने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। वह बताती हैं कि उनकी बेटी और ट्रस्ट के महासचिव सरफराज तारिक की बेटी शहर के एक बड़े स्कूल में साथ पढ़ती हैं। बेटी के जरिये सरफराज ने श्रीवैद्या से संपर्क किया और कहा कि क्या वह अपनी सेवा इस स्कूल को दे सकती हैं। श्रीवैद्या बताती हैं कि जो पहला शब्द सरफराज ने उनसे कहा वह था 'दीदी' जो मेरे दिल को छू गया। इसके बाद जब मैं स्कूल पहुंची तो महसूस हुआ कि यहां मेरी जरूरत है। लिहाजा मैंने यहां अपनी सेवा देनी शुरू कर दी। सबकुछ पैसा नहीं होता। मैंने जब पति से कहा कि मैं यह करने जा रही हूं तो उन्होंने कहा कि तुम्हारा मंदिर स्कूल है वह चाहे कहीं भी हो। इसके बाद से मैं यहां जुड़ी हूं। इसी स्कूल में ढाई साल से पढ़ा रहीं शफा आफरीन बताती हैं कि यहां बच्चों को पढ़ाकर सुकून मिलता है। लगता है कि समाज के लिए कुछ कर रहीं हूं।

क्लासेस बढ़ाने का चल रहा प्रयास: ट्रस्ट के महासचिव सरफराज तारिक बताते हैं कि स्कूल में फिलहाल क्लास-3 तक की पढ़ाई हो रही है। इसमें इजाफा करने पर काम किया जा रहा है। बुनियादी संरचना भी विकसित करना है। बच्चों से केवल नाममात्र का शुल्क लिया जाता है ताकि अभिभावकों का जुड़ाव यहां से रहे। बाकी अनुदान से यहां विकास कार्य किये जा रहे हैं। ट्रस्ट से जुड़े अन्य लोगों में अध्यक्ष हाजी शकील, उपाध्यक्ष हाजी इशरत, सचिव शाहनवाज हुसैन सहित आफताब आलम उर्फ बबलू, शोएब आलम, मो. तौफीक, हाजी नईम, बाबू जान शामिल हैं। अध्यक्ष हाजी शकील का कहना है कि फिलहाल यहां पर अपनी सेवा दे रहे शिक्षकों को बहुत ज्यादा वेतन हम नहीं दे पा रहे हैं। वे अपने सेवाभाव के कारण यहां बच्चों को पढ़ा रहे हैं।


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