जलियांवाला बाग की तरह ओडिशा में भी हुआ था जघन्य हत्याकांड, 80 साल बाद भी नहीं मिला न्याय
पंजाब के जलियांवाला बाग कांड की घटना की तरह ही सुंदरगढ के आमको सिमको गांव में 25 अप्रैल 1939 को ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों की अंधाधुंध फायरिंग में 49 आदिवासियों की जान चली गई थी।
राउरकेला, महेंद्र महतो। सुंदरगढ जिले के रायबोगा थाना अंतर्गत आमको सिमको गांव में 25 अप्रैल 1939 को ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों की अंधाधुंध फायरिंग में 49 आदिवासियों की जान चली गई तथा 90 से अधिक लोग जख्मी हुए थे। यह घटना पंजाब के जलियांवाला बाग कांड जैसी थी, इसके बावजूद घटना के 80 साल बाद भी यहां जान गंवाने वालों को न तो उचित सम्मान मिला और न ही स्वाधीनता सेनानी का दर्जा ही मिल पाया है।
अलबत्ता सन् 2017 में राज्य सरकार की ओर से एक पहल करते हुए शहीद स्थल को पर्यटन स्थल में तब्दील की घोषणा की गई तथा इसके विकास के लिए एक करोड़ रुपये का अनुदान भी मिला। केंद्रीय जनजातीय कार्यमंत्री जुएल ओराम ने भी चार करोड़ रुपये की स्वीकृति दी है। आदिवासियों की जमीन पर मालगुजारी लगाने के विरोध में खुटकटी आंदोलन के पुरोधा स्वाधीनता सेनानी निर्मल मुंडा की अगुवाई में 25 अप्रैल 1939 को आमको सिमको गांव में बैठक हुई थी। जिले भर से तीन हजार से अधिक आदिवासी जुटे थे।
तत्कालीन गांगपुर इस्टेट की महारानी जानकी रत्ना एवं अंग्रेज जनरल मार्जर सैनिकों के साथ पहुंचे थे। सभा स्थल के कुछ दूरी पर एक खपरैल के घर में निर्मल मुंडा के साथ उनकी बातचीत चल रही थी तभी अचानक खड़े होने पर अंग्रेज जनरल मार्जर के सिर में चोट लग गई और उसने गुस्से में निरीह आदिवासियों पर फायरिंग का आदेश दे दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों ने अंधाधुंध फायरिंग की जिसमें 49 लोगों की जान चली गयी थी और 90 से अधिक लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए। इसके बाद अंग्रेजों ने सभी लाशों को ले जाकर ब्राह्मण मारा के चूना भट्टा में डाल दिया। जिस कारण उनका कोई निशान नहीं मिला।
प्रोफेसर विजय टोप्पो, धनंजय महंती, प्रो. दयानार्थ सिंह आदि के प्रयास से आमको सिमको स्मारक कमेटी के गठन तथा यहां श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किए जाने के बाद सरकार की नींद खुली। दो दशक से यहां विधिवत कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसमें कमेटी के सदस्यों के साथ प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल होते हैं। दो साल पहले राज्य सरकार की ओर से यहां जलियांवाला बाग के तर्ज पर सफेद संगमरमर का 36 फीट ऊंचा स्मृति स्तंभ बनने के साथ आसपास के इलाके का सौंदर्यीकरण काम शुरू किया गया। इसके लिए करीब एक करोड़ का अनुदान मिला है। करीब पांच एकड़ जमीन पर चहारदीवारी का निर्माण करने के साथ साथ रायबोगा से 11 किलोमीटर दूरी तक सोलर लाइट लगाने, ट्रांसफार्मर, बिजली कनेक्शन, हाईमास्ट लाइट, वाटर फाउंटेन, डीप बोरवेल, शौचालय, संस्कृति भवन का निर्माण, प्रतीक्षालय, पुस्तकालय, महिलाओं के लिए प्रशिक्षण केंद्र आदि का काम किया जा रहा है।
फायरिंग में गई थी जिनकी जान
मानिया मुंडा, फुलमनि गुनानी, लावडेन मुंडा, हरून मुंडा, नाथनियल मुंडा, मार्टिन मुंडा, क्रिस्टोसिस मुंडा, जोहन मुंडा, सुदन मुंडा, अंसारी मुंडा, धनमसी मुंडा, फानुएल ओराम, कुयाम मुंडा, भुरन ओराम, अलाहत ओराम, भोदोरो ओराम, बुचकू ओराम, जीतू ओराम, कुलू ओराम, ख्रीस्ट विश्वास ओराम, धनमसी ओराम, मानसिद ओराम, दाउद ओराम, फ्रांसिस केरकेटा, पानो खड़िया, क्रिस्टोटेम जोजो, क्रीस्टोधन मुंडा, पाउलुस ओराम, हातिम मुंडा, हुकराम मुंडा, हरि खड़िया, सुखलू खड़िया, धूरन ओराम, मनमसी मुंडा, निचोदिन मुंडा, पुना खड़िया, झंकड़ भेंगरा, पोहास मुंडा, दाउद मुंडा, गजो ओराम, सामुएल ओराम, हौवा ओराम, कुजर्जु़स ओराम, क्रिस्टोचांद मुंडा, सुलेमान मुंडा, जयमसी मुंडा, जाक्रियास मुंडा, एतवा ओराम एवं नाथनियल मुंडा।