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देवदरह जलप्रपात को जोड़ने के लिए 4.82 करोड़ रुपये मंजूर

गुरुंडिया ब्लाक के बांकी वन क्षेत्र स्थित प्राकृतिक पर्यटन स्थल देवदरह जलप्रपात को जोड़ने वाली सड़क को कंक्रीट ढलाई कराने के लिए 4.82 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी गई है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Aug 2021 09:07 AM (IST)Updated: Tue, 03 Aug 2021 09:07 AM (IST)
देवदरह जलप्रपात को जोड़ने के लिए 4.82 करोड़ रुपये मंजूर
देवदरह जलप्रपात को जोड़ने के लिए 4.82 करोड़ रुपये मंजूर

जागरण संवाददाता, राउरकेला : गुरुंडिया ब्लाक के बांकी वन क्षेत्र स्थित प्राकृतिक पर्यटन स्थल देवदरह जलप्रपात को जोड़ने वाली सड़क को कंक्रीट ढलाई कराने के लिए 4.82 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी गई है। इसके पांच महीने बीत गए पर ठेकेदार की ओर से केवल खोदाई कर छोड़ दिया गया है। वन विभाग की ओर से पांच साल पहले दो किलोमीटर सड़क को कंक्रीट किया गया था एवं यह ठीक ठाक था। इसके बावजूद फिर से पूरी सड़क को कंक्रीट कराने के लिए राशि स्वीकृत की गई। करीब 25 लाख रुपये खर्च कर कंक्रीट सड़क की खोदाई कर दी गई। अब निर्माण के लिए पेड़ काटने की वन विभाग से अनुमति नहीं मिलने की बात कहकर काम रोका गया है। इससे इस रास्ते पर आने जाने वालों को परेशानी हो रही है।

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देवदरह प्राकृतिक पर्यटन स्थल पिकनिक के लिए काफी लोकप्रिय है। राष्ट्रीय राजपथ-143 से मधुपुर चौक से होकर अंकरपाड़ा गांव तक 4.4 किलोमीटर सड़क का निर्माण होना है। शुरुआत से ही दो किलोमीटर कंक्रीट सड़क का निर्माण पांच साल पहले 25 लाख रुपये की लागत पर वन विभाग की ओर से किया गया था। यह सड़क पूरी तरह से ठीक होने के बावजूद पूरी सड़क का निर्माण कार्य कराया जा रहा है। सरकार की योजना के अनुसार कंक्रीट सड़क की आयु कम से कम 10 साल की होती है पर इसे पांच साल पहले ही तोड़ कर फिर से नई सड़क बनाने का काम करने को लेकर सवाल उठ रहे हैं। सड़क के संप्रसारण के लिए पहाड़ी मोड़ को काटने के साथ-साथ पेड़ काटने की जरूरत है। पर वन विभाग की अनुमति नहीं मिलने के कारण यह काम रुका हुआ है। कंक्रीट सड़क के लिए खोदाई होने के कारण इस सड़क से लोगों को आने जाने में परेशानी हो रही है। बिना योजना के काम शुरू कराने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग स्थानीय लोगों की ओर से की गई है।

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यह कार्य वन विभाग का नहीं है बल्कि इको टूरिज्म एवं जिला प्रशासन की ओर से कराया जा रहा है। इसकी जिम्मेदारी प्रशासन की है।

-अजय खेस, वनांचल अधिकारी, बांकी।


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