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पर्यावरण सुरक्षा : युवा समाज व विद्यार्थियों का दायित्व

मनुष्य के दैनिक जीवन आचार व्यवहार एवं समाज पर प्रभाव डाल रहे वाह्य शक्ति पर्यावरण एवं अनुषांगिक प्रभाव समूह ही परिवेश के रूप में जाना जाता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Oct 2021 09:49 PM (IST)Updated: Wed, 20 Oct 2021 09:49 PM (IST)
पर्यावरण सुरक्षा : युवा समाज व विद्यार्थियों का दायित्व
पर्यावरण सुरक्षा : युवा समाज व विद्यार्थियों का दायित्व

मनुष्य के दैनिक जीवन, आचार व्यवहार एवं समाज पर प्रभाव डाल रहे वाह्य शक्ति, पर्यावरण एवं अनुषांगिक प्रभाव समूह ही परिवेश के रूप में जाना जाता है। पृथ्वी के जल, थल एवं वायुमंडल को लेकर पर्यावरण गठित होता है। फिर प्रदूषण की बात मन में आने पर पहले जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण आता है। प्रदूषण के प्रमुख कारणों में कल कारखानों की स्थापना, जलचर प्राणी एवं पेड़ पौधों की कटाई, आणविक परीक्षण, वन संपदा का अवक्षय, वैज्ञानिक शोध आदि हैं। आज का युग आधुनिक युग है। इस युग में विद्यार्थियों एवं युवा समूह के हाथों में पर्यावरण सुरक्षा का अस्त्र है। वे ही हरित एवं स्वच्छ पर्यावरण का गठन कर सकते हैं। पौधारोपण करने के साथ साथ वाहनों के उपयोग को सीमित रखने, धुआं विहीन जलावन का उपयोग, पटाखा के उपयोग को रोकने, माइक का उपयोग बजाने से दूर रखने के लिए वे ही जन जागरण ला सकते हैं। अपने अपने घरों एवं स्कूल के आसपास को स्वच्छ रखने से ही पर्यावरण सुरक्षित रह सकता है। यह बात उन्हें आंतरिक रूप से समझना होगा। पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में अपने आप को भी जागरूक होना पड़ेगा। विकासशील राष्ट्र की प्रगति के लिए उद्योग धंधे की स्थापना जरूरी है पर कल-कारखानों से निकलने वाला धुआं एवं व‌र्ज्य वस्तु पर्यावरण को दूषित करता है। इससे ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है एवं कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। कल-कारखानों से निकलने वाले व‌र्ज्य तरल पदार्थ के तालाब व नदी में मिलने से जल प्रदूषण होता है एवं इसका इस्तेमाल करने पर मनुष्य तरह तरह के रोगों से पीड़ित होता है।

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तेजी हो रहे परिवहन व्यवस्था प्रगतिशील सभ्यता के दृष्टिकोण को बदलता है। यान वाहन से निकलने वाले धुएं एवं धूल से वायुमंडल में कार्बन डाई-ऑक्साइड एवं कार्बन मोनो-आक्साइड की मात्रा बढ़ती है। वैज्ञानिक सर्वे से पता चला है कि यान वाहन के चलते करीब दो हजार टन कार्बन डाई आक्साइड वायुमंडल में हर दिन मिल रहा है। कभी कभी नदी व तालाब का पानी अधिक गर्म और रसायनिक पदार्थ के मिश्रण से दूषित होता है एवं जल जीवों की मौत होती है। जल जीवों के मरने से भी पानी दूषित होता है। जनसंख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है एवं लोगों की जरूरत को पूरा करने के लिए जंगल काट कर कल कारखाने एवं खेती के लिए जमीन तैयार की जा रही है। एक ओर कृषि सभ्यता का अवक्षय हो रहा है, दूसरी ओर शहरी सभ्यता बढ़ रही है एवं विज्ञान जय यात्रा हर जगह जारी है। वायुयान से निकलने वाले वाष्प व गैस से ओजोन परत प्रभावित हो रही है। मृदा एवं जल के प्रदूषित होने से जन जीवन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। रासायनिक खाद के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जंगल की सुरक्षा से ही प्रकृति एवं परिवेश की सुरक्षा संभव है। वन संपदा के नष्ट होने से प्रकृति में विकृति आ रही है। मात्र एक टन कागज बनाने के लिए 17 बड़े पेड़ काटने पड़ रहे हैं। परिवेश सुरक्षा के क्षेत्र में पेड़ पौधों के महत्व को बतलाते हुए अग्नि पुराण में उल्लेख है कि एक कुंआ खोदना एक तालाब खोदने के समान है। दस तालाब खोदना एक जलाशय के समान है। दस जलाशय खनन एक सुपुत्र को जन्म देने का पुण्य फल के बराबर होता है। फिर दस सुपुत्र के जन्म एक पौधारोपण का महापुण्य प्राप्त होता है। अत: वृक्ष ही जल, जल ही रोटी और रोटी ही जीवन है। खनिज, वायु, उद्विद, मृतका, जल और वन्य जंतु के संरक्षण के लिए प्रति वर्ष 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। मनुष्य प्रकृति का श्रेष्ठ जीव है। इसके विवेकहीन विलास से परिवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। विवाह, व्रत, सामाजिक पर्व त्योहार में माइक बजाने से भी ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है। चुनाव के समय राजनीतिक प्रचार व शोभायात्रा में पटाखा, डीजे से भी ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है एवं जन जीवन प्रभावित होता है। अस्पताल के रोगियों का इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सुरक्षित देश गठन वर्तमान परिस्थिति में एक तरह की चुनौती है। परिवेश को सुरक्षित, स्वच्छ व निर्मल रखने के क्षेत्र में हमारा बड़ा कर्तव्य है। देश सुरक्षित रहने से ही हम सुरक्षित रह सकते हैं। विद्यार्थी भविष्य के नागरिक हैं। वे प्रकृति को सुरक्षा दे सकते हैं। वे नव भारत के वंशधर एवं सुरक्षित परिवेश के कर्णधार हैं। मातृरूपी प्रकृति को हरा-भरा बनाने के लिए तन, मन, वचन से प्रयास करने की जरूरत है। भौतिक विज्ञान के यांत्रिक माया से आशक्त न होकर आज के युवा समाज को प्रकृति की उपासना करनी चाहिए। परिवेश को सुरक्षित रखने के साथ खुद बचें और पूरे विश्व को जीने का सुगम मार्ग दिखाएं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि मानव की प्रत्येक आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्रकृति पर्याप्त सामग्री उपलब्ध कराती है, पर उनका अत्यधिक लोभ को चरितार्थ करने के नहीं है। इसलिए देश से हम हैं एवं हमारे द्वारा ही समृद्ध राष्ट्र का गठन हो सकता है। परिवेश की सुरक्षा हर नागरिक का महत्वपूर्ण कर्तव्य है।

- प्रफुल्ल चंद्र बारिक, प्रधानाध्यापक, व्यास देव उच्च विद्यालय, वेदव्यास।


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