मशरूम के सहारे अपने पैरों पर खड़ी हुई महिलाएं
इच्छाशक्ति होने पर अपने आप कमाई का रास्ता खुल जाता है। इस बात को सही तरह से समझ सकी है सुंदरगढ़ जिले की टांगरपाली प्रखंड के फुलधूडी गांव की महिला निरुपमा पृषेठ।
जागरण संवाददाता, राउरकेला : इच्छाशक्ति होने पर अपने आप कमाई का रास्ता खुल जाता है। इस बात को सही तरह से समझ सकी है सुंदरगढ़ जिले की टांगरपाली प्रखंड के फुलधूडी गांव की महिला निरुपमा पृषेठ। उन्होंने घर पर ही मशरूम की खेती कर खुद को स्वावलंबी बनाने का प्रयास शुरू किया है। खास बात यह है कि महिला सशक्तीकरण योजना के तहत सरकार महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए करोड़ों रुपये सहायता के तौर पर उपलब्ध करा रही है। लेकिन निरुपमा इसके पीछे न दौड़कर अपने पैरों पर खुद खड़े होने का प्रयास कर रही है। उनका कहना है कि मशरूम की खेती के लिए ज्यादा पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती। बाहर से पुआल व मशरूम का बीज खरीदकर लाना पड़ता है। पुआल को डेढ़ फुट के हिसाब से काट कर उसे पानी में भिगोकर रखना पड़ता है। बाद में उसे निकालकर खेती के लिए बनाए गए रैक में सजाना पड़ता है। उसके ऊपर मशरूम का बीज छिड़का जाता है।
14 दिनों में आ जाता है फसल : एक स्थान पर चार रैक तक में इसकी खेती की जा सकती है। इस रैक को प्लास्टिक से ढ़क कर 12 दिनों तक रखा जाता है। 12 से 14 दिनों बाद इसे खोल दिया जाता है। तब तक मशरूम पैदा होना शुरू हो जाता है। रोजाना 4 से 5 किलो तक मशरूम निकलता है। जिसे वे प्रति किलो 250 रुपए के हिसाब से बेचती हैं।
निरुपमा बताती है कि मशरूम की बाजार में काफी मांग है। इस कारण इसे बेचने में समस्या नहीं आती है। एक बार की फसल में वह 30 हजार रुपये तक की कमाई कर लेती है। मशरूम की खेती उसने किसी से सीखी थी। घर में रहकर घर का काम करने के साथ-साथ मशरूम की खेती आसान होने के कारण निरुपमा को देखकर गांव की भारती पृषेठ व बाद में दूसरी महिलाओं ने भी मशरूम की खेती के प्रति रुचि दिखाई है। कोई भी सरकारी सहायता की बाट न जोहकर अपने पैसे से पुआल व मशरूम का बीज खरीदकर इसकी खेती शुरू की है।
60 परिवार वाले गांव के सभी घरों में शुरू हुई मशरूम की खेती : निरुपमा को देखकर 60 परिवार वाले इस गांव की लगभग सभी महिलाएं मशरूम की खेती से जुड़ गई है। सभी के घरों में मशरूम की एक क्यारी है। महिलाओं को काफी समय घर में बिताना पड़ता है। ऐसे में मशरूम की खेती ने उनके समक्ष स्वावलंबी बनकर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए मार्ग खोलने की बात भारती पृषेठ ने कही है। क्षेत्र में रोजगार न होने की बात कहकर कई महिला व पुरुष गांव छोड़कर राज्य के बाहर मजदूरी करने के लिए चले जाते है, ऐसे में फुलधूड़ी की महिलाएं उनके लिए एक नजीर हैं।