Move to Jagran APP

रथयात्रा के बाद अब महाप्रभु के नागार्जुन वेश से वंचित रह सकते हैं भक्त, 26 साल में होता है एक बार

कोरोना लॉकडाउन के कारण रथयात्रा में हिस्‍सा न ले पाने के बाद अब भक्‍त महाप्रभु के नागार्जुन वेश से भी वंचित रह सकते हैं ये वेश अब 26 साल के बाद होगा।

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 30 Jul 2020 07:25 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2020 07:25 AM (IST)
रथयात्रा के बाद अब महाप्रभु के नागार्जुन वेश से वंचित रह सकते हैं भक्त, 26 साल में होता है एक बार
रथयात्रा के बाद अब महाप्रभु के नागार्जुन वेश से वंचित रह सकते हैं भक्त, 26 साल में होता है एक बार

पुरी, जागरण संवाददाता। रथयात्रा की ही तरह महाप्रभु का दुर्लभ नागार्जुन वेश भी बिना भक्तों के करने के लिए श्रीमंदिर संचालन कमेटी तैयारी कर रही है। महाप्रभु का नागार्जुन वेश इस साल 27 नवम्बर को है। 26 साल के बाद यह वेश होगा। महाप्रभु के इस वेश को देखने के लिए रथयात्रा से भी ज्यादा भक्तों का जमावड़ा श्रीक्षेत्र धाम होता है।  

loksabha election banner

कोरोना संक्रमण के कारण महाप्रभु के इस विरल वेश को देखने से भी भक्तों को वंचित रहना पड़ सकता है। हालांकि इस वेश को लेकर राज्य सरकार ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है और ना ही सरकार एव श्रीमंदिर प्रशासन के बीच कोई चर्चा हुई है। हालांकि श्रीमंदिर संचालन कमेटी रथयात्रा की ही तरह महाप्रभु का नागार्जुन वेश करने पर चर्चा कर रही है। चर्चा से पता चला है कि दिसम्बर महीने तक कोरोना की स्थिति सुधरती नहीं दिख रही है, ऐसे में श्रीमंदिर भी बंद रहेगा। परिस्थिति को देखकर आगे का निर्णय लिया जाएगा। 

महाप्रभु के इस वीर वेश को देखने के लिए चाहने वाले भक्तों को निराशा ही हाथ लगी है। नागार्जुन वेश देखने के लिए 60 लाख से अधिक भक्तों के समागम होने की सम्भावना थी। मगर इस साल इस दुर्लभ वेश के दर्शन से लाखों भक्तों को वंचित रहना पड़ सकता है। इससे पहले 1994 में महाप्रभु का नागार्जुन वेश हुआ था। तब व्यवस्थागत गलती के कारण मची भगदड़ में 6 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों भक्त घायल हुए थे। 

अन्य वेश से विरल होता है नागार्जुन वेश

 

अन्य वेश से यह वेश विरल एवं आकर्षणीय होता है। महाप्रभु के नागार्जुन वेश का दर्शन करने के लिए देश भर से हजारों की संख्या में साधु संत पुरी आते हैं। खासकर हजारों की संख्या में नागा साधु आतेहैं। तथ्य के मुताबिक 1966, 1983, 1993 एवं 1994 में यह वेश हुआ था। इसके बाद से यह तिथि नहीं आयी थी। इसे महाप्रभु का परशुराम वेश भी कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश के एक सनात ब्राह्मण ने इस वेश का प्रचलन करने की बात कही जाती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.