युग प्रहरी-युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण : मुनि श्री जिनेश कुमार
युग प्रहरी-युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण मुनि श्री जिनेश कुमार
युग प्रहरी-युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण : मुनि श्री जिनेश कुमार
जासं, भुवनेश्वर: युग प्रधान शब्द के सामान्य अर्थ में युग शब्द समय का वाचक है और प्रधान शब्द मुख्यता का वाचक है। यह शब्द मुख्यतया प्रभावशाली जैनाचार्यों के नाम के पहले प्रयुक्त किया जाता है, वह भी कब जब उन्हें शासन प्रभावना के किसी कार्य विशेष के निष्पादित हो जाने की स्थिति में चतुर्विध धर्मसंघ द्वारा अलंकृत, अभिषिक्त कर युगप्रधान के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता हो। यह बात मुनि श्री जिनेश कुमार ने यहां आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही। मुनिश्री जिनेश कुमार ने कहा कि वैसे तो यह महान आचार्यों द्वारा समाज देश दुनिया के हितार्थ किये गए कार्यों के प्रति उनके कर्तृत्व के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति का संसूचक है। गुरु के महान उपकार का शिष्यों पर, समाज पर ऋण रहता है। इस ऋण को चुकाया नहीं जा सकता किंतु अभ्यर्थना, स्तवना, गुणोत्कीर्तना के माध्यम से उपकारी के प्रति अहोभाव प्रकट कर कुछ आत्मतोष तो प्राप्त किया ही जा सकता है। उसी आत्मतोष की प्राप्ति का ही एक उपक्रम है-युगप्रधान सम्मान। वस्तुत: महापुरुषों को कोई सम्मान की आकांक्षा नहीं होती है वे तो इन सम्मानों, रीति - रश्मों से ऊपर उठे हुए होते हैं किंतु वे धर्मसंघ के आत्मतोष के लिए उनके द्वारा प्रदत्त सम्मान को ससम्मान ग्रहण कर अपने दायित्व के प्रति और अधिक सजग बन जाते हैं।
तेरापंथ और युगप्रधान
तेरापंथ की पुनीत आचार्य पट्टावली में संघ संस्थापक क्रांतिकारी प्रथम आचार्य आचार्य भिक्षु हुए हैं। चतुर्थ आचार्य जयाचार्य धर्मसंघ की आन्तरिक व्यवस्था परिवर्तन क्रांति के सूत्रधार थे। उन्होंने तेरापंथ धर्मसंघ को भगवान महावीर की आचार पद्धति में ढा़लते हुए अनेक युगान्त कारी परिवर्तन किये उनकी अद्भुत मेधाने युगप्रधान की साक्षात अनुभूति धर्म संघ को करवाई थी।बीसवीं शताब्दी में तेरापंथ के नवमें आचार्य आचार्य श्री तुलसी व आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी युगप्रधान अलंकरणों से अलंकृत हुए।
युगप्रधान : आचार्य श्री महाश्रमण
युगप्रधान की अनेक कसौटियां हो सकती हैं मैंने आचार्य श्री महाश्रमण जी को अनेक दृष्टिकोणों से देखने का प्रयास किया। पर वे हर दृष्टिकोण में युगप्रधान ही दिखाई दिए। जिस प्रकार लड्डु को कहीं से भी चखने पर वह मीठा ही लगता है उसी प्रकार आचार्य श्री के जीवन की पुस्तक कहीं से भी पढ़ने पर वह ज्ञानवर्धक व प्रेरक ही लगती है। आचार्य श्री महाश्रमण अगणित विशेषताओं के पुंज हैं। जिस प्रकार लक्षपाक तैल एक लाख औषधियों के सम्मिश्रण से तैयार होता है उसी प्रकार अगणित विशेषताओं के समवाय से आचार्य प्रवर का व्यक्तित्व निर्मित हुआ है।