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गर्मी आते ही याद आती है, मिट्टी की हंडी व सुराही

हर साल जैसे ही गर्मी बढ़ती है। लोगों को याद आती है मिट्टी की हांडी व सुराही। प्रचंड गर्मी में जब गला सूखता है तो उसकी प्यास केवल मिट्टी के हंडी या फिर सुराही के पानी से बुझती है। कुछ वर्षो से शिल्प समृद्ध झारसुगुड़ा जिले में लोगों के जीवन शैली में व्यापक परिवर्तन आ गया है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Apr 2021 07:51 PM (IST)Updated: Thu, 15 Apr 2021 07:51 PM (IST)
गर्मी आते ही याद आती है, मिट्टी की हंडी व सुराही
गर्मी आते ही याद आती है, मिट्टी की हंडी व सुराही

संसू, झारसुगुड़ा : हर साल जैसे ही गर्मी बढ़ती है। लोगों को याद आती है मिट्टी की हांडी व सुराही। प्रचंड गर्मी में जब गला सूखता है तो उसकी प्यास केवल मिट्टी के हंडी या फिर सुराही के पानी से बुझती है। कुछ वर्षो से शिल्प समृद्ध झारसुगुड़ा जिले में लोगों के जीवन शैली में व्यापक परिवर्तन आ गया है। मगर आज भी मिट्टी के हांडी व सुराही का पानी लोगों की प्राथमिकता है। और इसीलिए आज भी जिले में मिट्टी के हांडी व सुराही के चाहने वाले बहुत ज्यादा है। जिले में लोगों के जीवन में बहुत परिर्वतन आ गया है। लोग आधुनिकता कि दौड़ में ठंडे पानी के लिए फ्रीज व दूसरे आधुनिक उपकरण पर आश्रित हैं। फिर भी अपने परंपरागत कार्य को कुछ लोग बचाए हुए हैं। मगर इन सभी के बावजूद मिट्टी के मटके व सुराही के पानी का स्वाद इन सब से निराला है। मिट्टी के बने मटका व सुराही के लिए बाजार में बेचने की उपयुक्त व्यवस्था नहीं होने से इसका निर्माण करने वालों को किसी भी प्रकार का कोई भी प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। जिसके कारण मिट्टी के बर्तन निर्माण का काम धीरे-धीरे कम होते जा रहा है। मिट्टी से विभिन्न प्रकार के बर्तन निर्माण करने वाले कुम्हार फिर भी किसी तरह अपने पूर्वजों की कला को बचाए रखे हैं। वहीं तेज गति से हुए शिल्पायन ने कुम्हारों की जीवन शैली पर भी सीधा प्रभाव डाला है। उनके निर्मित मिट्टी के सामान की बिक्री भी काफी कम हो गई है। जिससे निराश होकर कुम्हार धीरे-धीरे इस काम को छोड़कर अन्य काम-धंधा में लगने को बाध्य हो रहे हैं। झारसुगुड़ा शहर के सराहल कुम्हारपाड़ा में पहले बड़ी संख्या में कुम्हारों का परिवार रहता था, और मिट्टी के बर्तन का निर्माण करते थे। मगर वर्तमान में यहां नाम मात्र के ही कुम्हार परिवार इस काम में लगे हैं। पहले मिट्टी के हंडी में ही घरों में खाना बनाया जाता था। मगर आधुनिकता कि अंधी दौड़ में अब घरों में मिट्टी के बर्तन नजर ही नहीं आते हैं। इसी कारण इसका निर्माण कार्य भी धीरे-धीरे बंद होता जा रहा है। अब स्थिति यह है कि कुम्हार केवल दीपावली में दीप व गर्मी में माटी कि हंडी व सुराही बनाते हैं।

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