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बुलंद हौसले के आगे उम्र पड़ी बौनी, वृद्धावस्था में परिवार का हाथ बंटा रहे दैतारी

84 की उम्र में भी मेहनत की बदौल्‍त न सिर्फ अपना बल्कि परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं दैतारी राउत।

By BabitaEdited By: Published: Fri, 05 Oct 2018 11:55 AM (IST)Updated: Fri, 05 Oct 2018 04:12 PM (IST)
बुलंद हौसले के आगे उम्र पड़ी बौनी, वृद्धावस्था में परिवार का हाथ बंटा रहे दैतारी
बुलंद हौसले के आगे उम्र पड़ी बौनी, वृद्धावस्था में परिवार का हाथ बंटा रहे दैतारी

झारसुगुड़ा, भुवन किशोर तिवारी। प्राय: देखा गया है कि बढ़ती उम्र के साथ मनुष्य की आत्मनिर्भरता कम हो जाती है। वृद्धावस्था तक पहुंचते ही शारीरिक क्षमता कमजोर पड़ जाने से वह परिवार पर बोझ बन जाता है। शहर हो या देहात हर जगह ऐसी परिस्थिति नजर आती है। हालत यह है कि पढ़े लिखे परिवार में भी बुजुर्गों के प्रति सम्मानजनक व सकारात्मक व्यवहार का दायरा कमजोर पड़ जाने से वे या तो रोगग्रस्त होकर असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं या फिर वृद्धाश्रम में घुट घुट कर बाकी जीवन काटने को मजबूर हो जाते हैं।

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लेकिन, इन्हीं में कुछ एक लोग ऐसे भी हैं जो अपने बुलंद हौसले और कठिन श्रम की बदौलत बुढ़ापे को पास भी नहीं फटकने देते। ऐसे ही कुछ लोगों में शामिल है झारसुगुड़ा के दैतारी राउत। जीवन के 84 बसंत देख चुके राउत अपने ऐसे ही जज्बे और मेहनत की बदौलत न सिर्फ अपना ख्याल रखते हैं बल्कि परिवार के भरण-पोषण में अपना हाथ भी बटाते हैं। 

शहर के एकाताली निवासी दैतारी राउत पहले भास्कर टेक्सटाइल मिल (बीटीएम) में श्रमिक के रूप में काम करते थे। सूत मिल बंद हो जाने के बाद वह भी अन्य श्रमिकों की तरह बेरोजगार हो गए। मिल प्रबंधन ने उनका बकाया तक नहीं दिया। वह आज भी बाकी ही है। ऐसे में उनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हुआ तो परिवार में पहले से बनने वाले मुड़कू (बेसन की मसालेदार जलेबी के आकार की नमकीन) को उन्होंने अपनी जीविका का साधन बना लिया। उनका मुड़कू छोटा बड़ा हर कोई बड़े चाव से खाता है। आज दैतारी इसी की बदौलत अपनी पत्नी, चार पुत्र व चार पुत्री के भरे पूरे परिवार के साथ आत्मनिर्भर होकर जीवन यापन कर रहे हैं।

1970 से बेच रहे मुड़कू, करते है 50 से 60 किमी सफर

 दैतारी ने वर्ष 1970 में मिल बंद होने के बाद से ही मुड़कू बेचने का काम शुरू कर दिया था। आज भी वह इस उम्र में हर रोज साइकिल पर सवार होकर गांव शहर घूम घूम कर अपना मुड़कू बेचने निकल पड़ते हैं।

बेलपहाड़, कोलाबीर, पड़लोई व सुंदरगढ़ आदि जगहों पर उनका मुड़कू काफी पसंद किया जाता है। वह बताते हैं कि मुड़कू बेचने के लिए हर दिन 50 से 60 किलोमीटर तक साइकिल से सफर करते हैं। उनका कहना है कि जब तक शरीर में सांस रहेगी व हाथ-पैर ठीक ठाक रहेगा तब वह यह व्यवसाय करते रहेंगे। 


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