पांचवीं शाम श्रीराम विवाह प्रसंग सुन भावविभोर हुए श्रोता
नगर के तुलसीपुर स्थित बीजू पटनायक चौक के समीप स्थापित गीताज्ञान मंदिर
जागरण संवाददाता, कटक : नगर के तुलसीपुर स्थित बीजू पटनायक चौक के समीप स्थापित गीताज्ञान मंदिर में मंदिर सेवा समिति द्वारा आयोजित आठ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन विदुषी व्यास रेखा खंडेलवाल ने भारतीय सनातनी परंपरा के समस्त देवी-देवताओं के मान-सम्मान सहित सनातन धर्म की प्रशंसा आदि की नेक सलाह दी। उन्होंने बताया कि जितने भी धर्म हैं उनमें केवल सनातन धर्म ही ऐसा है जिसमें देवी-देवताओं समेत गुरुओं आदि के सम्मान की कमी आज के समय में देखने को मिल रही है। उन्होंने कहा कि वह जहां जाती हैं, अपनी कथा के क्रम में सनातनी मंदिरों के निर्माण से पहले उनका जीर्णोद्धार करने की सलाह अवश्य देती हैं। ऐसे में श्रीपुरी धाम का गुंडिचा मंदिर जो सतयुग का बना है उसके जीर्णोद्धार की आज नितांत आवश्यकता है। इसी प्रकार काशी विश्वनाथजी मंदिर का भी जीर्णोद्धार जरूरी है। कहा कि हम सब को हर कीमत पर अपने सनातनी देवी-देवताओं और उनके गुरुओं आदि का सम्मान करना चाहिए। अपने प्रवचन के क्रम में उन्होंने राजा जनक की पुत्री सीता के बाल्यकाल का वर्णन करते हुए बताया कि एकबार राजा जनक को किसी कार्यवश तीन दिनों के लिए बाहर जाना पड़ा और यह जिम्मेदारी उन्होंने अपनी नन्हीं पुत्री सीता को दे दी। सीता ने देखा कि भगवान शिव के धनुष की जिस स्थल पर पूजा होती है वहां पर काफी फूल आदि पड़ा हुआ है, उसने अपने कोमल हाथों से उसे उठाकर उस स्थल को साफ किया और उसकी विधिवत पूजा की। जब राजा जनक तीन दिनों के बाद लौटे तो पूछे कि भगवान शिव के धनुष की सीता ने पूजा की या नहीं। जब उनको पता चला कि सीता भगवान शिव के धनुष को एक ही हाथ से उठाकर उस स्थल की सफाई कर दी है और तीन दिनों तक विधिवत पूजा भी की है, तो उन्होंने तत्काल यह प्रतिज्ञा की कि जो भी भगवान शिव के धनुष को उठाकर तोड़ेगा उसी से सीता का विवाह होगा। धनुष यज्ञ का आयोजन किया गया। भगवान राम को एकबार सीता पुष्प वाटिका में देखीं थी जो फूल तोड़ते वक्त भी पसीने से भरे हुए थे। वह भगवान शिव के धनुष से कुल 14 प्रार्थनाएं कीं, जिससे कि राम उस धनुष को उठाकर तोड़ सकें। भगवान शिव के धनुष ने सीता की शर्त मानकर एकदम रूई जैसा मुलायम और हल्का हो गया और राम कब उस धनुष को उठाये और तोड़कर सामने रख दिए। राम के साथ उनके चारों भाइयों का विवाह हुआ। पूरी बारात छह महीने तक जनकपुर में रही। सभी बारातियों का अलौकिक आतिथ्य सत्कार हुआ। विदुषी रेखा ने राम और सीता के वरमाला की चर्चा करते हुए बताया कि सीता कद में बहुत छोटी थी और रघुवंशी कभी झुकते नहीं इसीलिए राम के गले में वह वरमाला कैसे डालती? उन्होंने लक्ष्मण से निवेदन किया कि वह पृथ्वी को थोड़ा ऊपर कर दें। लक्ष्मण ने बताया कि ऐसा करने से कुछ भी लाभ नहीं होगा। लक्ष्मण ने माता सीता से निवेदन किया कि आप बड़े भइया श्रीराम के बायें पांव की सेवा आजीवन करना और दाहिने पांव की सेवा का हक मुझे देना। लक्ष्मण अपने बड़े भाई को झुककर चरण स्पर्श किए उसी वक्त सीता ने उनके गले में वरमाला डाल दी। सीता राम का विवाह हुआ संग में सभी भाइयों का। इस अवसर पर राम-सीता विवाह संग सभी चारों भाइयों के विवाह की झांकी अनुपम रही। आयोजन को सफल बनाने में मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष विजय खंडेलवाल, महासचिव संपत्ति मोड़ा, कोषाध्यक्ष स्वदेश अग्रवाल, ज्योति अग्रवाल, रीतू अग्रवाल, सुनीता मोदी, विमलेश खंडेलवाल, संतोषी चौधरी, पूनम साहनी, नीलम शाह आदि उपस्थित थे।