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तृणमूल कांग्रेस के सांसद तापस पाल को हाईकोर्ट से मिली सशर्त जमानत

स्वास्थ्य अवस्था ठीक न होने की बात को दर्शाकर तापस पाल ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए इससे पहले भी गुहार लगाई थी।

By BabitaEdited By: Published: Thu, 01 Feb 2018 12:45 PM (IST)Updated: Thu, 01 Feb 2018 04:02 PM (IST)
तृणमूल कांग्रेस के सांसद तापस पाल को हाईकोर्ट से मिली सशर्त जमानत
तृणमूल कांग्रेस के सांसद तापस पाल को हाईकोर्ट से मिली सशर्त जमानत

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v>कटक, जेएनएन। रोजवैली चिटफण्ड घोटाले में बुरी तरह से उलझकर पिछले एक साल से जेल में रहने वाले तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद तापस पाल को राहत मिली है। ओडि़शा हाईकोर्ट उनकी जमानत याचिका पर राय घोषित करते हुए उन्हें सशर्त जमानत दिया है। 1 करोड़ रुपया बैंक जमा, दो लाख रुपये के दो जमानतदार के बदले वह जमानत पर जा सकेंगे। यह शर्त में स्पष्ट किया गया है। इसके अलावा वह अपने पासपोर्ट को सीबीआई के समक्ष जमा करेंगे। तापसपाल की जमानत याचिका की संपूर्ण सुनवाई कर ओडि़शा हाईकोर्ट ने राय को सुरक्षित रखा था और गुरुवार को राय घोषित करते हुए तापस पाल को सशर्त जमानत दिया है।

गौरतलब है कि बहुचर्चित रोजवैली चिटफंड घोटाले में टीएमसी सांसद तापस पाल की संपति के बारे में पता लगने के पश्चात सीबीआइ की टीम कोलकाता से 30 दिसम्बर 2016 को उन्हें गिरफ्तार कर भुवनेश्वर लायी थी। पूछताछ के बाद उन्हें स्पेशल सेजेएम सीबीआई की अदालत में हाजिर किया। यहां पर उनकी जमानत याचिका खारिज होने के बाद उन्हें झारपड़ा जेल भेज दिया गया था। सीबीआइ की छानबीन के बाद पता चला था कि तापस पाल जो कि टीएमसी के सांसद हैं रोजवैली चिटफण्ड संस्थान से काफी मात्रा में आर्थिक मुनाफा लिए थे। टीएमसी के अन्य एक सांसद सुदीप बंदोपाध्याय का तार रोजवैली से जुडऩे के बारे में सीबीआई  को पता चलने के बाद सुदीप को लेकर छानबीन की और उसी दौरान तापसपाल का भी लिंक रोजवैली के साथ होने के बारे में सीबीआई को पता चला था।

स्वास्थ्य अवस्था ठीक न होने की बात को दर्शाकर तापस पाल ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए इससे पहले भी गुहार लगाई थी, जिसकी सुनवाई कर 12 अप्रैल 2017 को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। बाद में फिर से तापस की ओर से जमानत याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई थी, जिसमें उनके वकील अदालत को दर्शाए थे कि उनके खिलाफ जो चार्जसीट दाखिल हुई है, उस पर जमानत देने में कोई समस्या नहीं है। सीबीआई के वकील ने इसका विरोध किया। दोनों पक्ष की बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने सुनवाई को खत्म कर राय को सुरक्षित रखा था।

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