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हाथियों से खौफजदा परिवार ने पेड़ पर बसाया आशियाना

जंगली हाथियों के उपद्रव से न केवल फसल बर्बाद हो रही है, बल्कि जानमाल की क्षति भी हो रही है।

By BabitaEdited By: Published: Mon, 09 Apr 2018 10:50 AM (IST)Updated: Mon, 09 Apr 2018 02:49 PM (IST)
हाथियों से खौफजदा परिवार ने पेड़ पर बसाया आशियाना
हाथियों से खौफजदा परिवार ने पेड़ पर बसाया आशियाना

संबलपुर, राधेश्याम वर्मा। हाथियों के आतंक से खौफजदा ओडिशा के सोनपुर जिले के गुड़ामालिया गांव में एक परिवार के पांच लोग पिछले तीन माह से पेड़ पर ही आशियाना बनाकर रहने को मजबूर हैं। वहीं सातमुंडा व पर्डियापाली गांव के लोग अपनी रात घरों की बजाय छतों पर गुजार रहे हैं। 

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यह तीनों गांव उलुंडा प्रखंड क्षेत्र में आते हैं। यहां जंगली हाथियों के झुंड ने आतंक मचा रखा है। गुड़ामालिया गांव के निवासी महेंद्र मुंडा के अनुसार, जंगली हाथियों के उपद्रव से न केवल फसल बर्बाद हो रही है, बल्कि जानमाल की क्षति भी हो रही है। इसकी शिकायत के बावजूद प्रशासन की ओर से कोई समाधान नहीं किया जा रहा। गांव में अपना टूटा फूटा घर होने के बावजूद मुंडा परिवार के पांच सदस्य पिछले तीन माह से अपनी रात पेड़ पर गुजार रहे हैं। अब यह परेशानी और बढऩे लगी है, क्योंकि गर्मी में लगातार तापमान बढ़ रहा है। ओडिशा के सबसे अधिक तपते जिलों में सोनपुर का नाम भी शामिल है। यहां वर्तमान में तापमान करीब 41 डिग्री है। 

गांव में हाथी, पेड़ पर परिवार

महेंद्र मुंडा के अनुसार, खरीफ फसल की कटाई के बाद हाथियों का यह उपद्रव शुरू हुआ, जो अबतक जारी है। तीन माह पहले महेंद्र मुंडा खेत से धान काटकर घर लाए। चंद रोज बाद ही जंगली हाथियों का एक झुंड गुड़ामालिया गांव में घुस आया। हाथियों ने महेंद्र मुंडा समेत गांव के अन्य लोगों का घर तोड़ दिया। वहां रखे धान व चावल खा गए। तभी से डरे-सहमे महेंद्र मुंडा के परिवार ने पास के ही एक पेड़ के ऊपर अपना बसेरा बना लिया। शाम ढलने से पहले महेंद्र मुंडा, उसकी पत्नी सविता मुंडा समेत परिवार के गणेश मुंडा, प्रसन्न मुंडा, सीता मुंडा, दीन मुंडा, सजना मुंडा, गुरुवारी मुंडा पेड़ पर बने मचान पर चढ़ जाते हैं। मचान पर ही सोते हैं। सुबह होने पर नीचे उतरते हैं। वे कहते हैं, परिवार की दिनचर्या बिगड़ गई है।

वन विभाग ने गांव में हाथियों के उप्रदव से हुए नुकसान का आकलन तो कर लिया है, पर किसी भी पीडि़त को मुआवजा नहीं दिया गया है।

- महेंद्र मुंडा, ग्रामीण।


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