जानिए, ओडिशा में क्यों खिसक रहा है कांग्रेस का जनाधार
odisha congress. ओडिशा में पिछले एक माह के अंदर दर्जनों भर से अधिक कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने हाथ का साथ छोड़ कमल एवं शंख का दामन थामा है।
भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। देश के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को मिली जीत के टॉनिक का असर ओडिशा में कमल की खुशबू एवं शंख की ध्वनि के सामने बेअसर दिख रहा है। आलम यह है कि पिछले एक महीने के अंदर दर्जनों भर से अधिक पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने हाथ का साथ छोड़ कमल एवं शंख का दामन थाम लिया है। गौरतलब है कि कमल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का और शंख बीजू जनता दल (बीजद) का चुनाव चिन्ह है।
जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2019 में ही एक दो नहीं बल्कि कई दिग्गज नेता एवं उनके समर्थक हाथ का साथ छोड़ चुके हैं। झारसुगुड़ा के विधायक नव किशोर दास, सुंदरगढ़ के विधायक योगेश सिंह, पिछले बीजेपुर उप चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे प्रणय साहू, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीकांत जेना व कोरापुट के निर्वतमान विधायक कृष्ण सागरिया, महिला कांग्रेस की उपाध्यक्ष जयश्री पटनायक जैसे दिग्गज नेता अपने समर्थकों के साथ हाथ का साथ छोड़ दिया है। इससे पहले भी हाल ही के दिनों कई वरिष्ठ नेता हाथ से अपना नाता तोड़ते हुए अन्य पार्टियों में जा चुके हैं और कुछ जाने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में राज्य कांग्रेस में नियमित अंतराल पर हो रही पतझड़ का खासा असर पार्टी के जनाधार पड़ा है और कभी दूसरे नंबर की पार्टी रहने वाली कांग्रेस अब तीसरे नंबर आ गई है। आम चुनाव को अब महज कुछ समय ही बचा है और लगातार बड़े नेताओं का इस कदर पार्टी से मुंह मोड़ना हाईकमान को चिंतन करने को मजबूर कर दिया है।
2014 आम चुनाव में कांग्रेस को जहां एक भी लोकसभा की सीट नहीं मिली थी। वहीं, विधानसभा में 16 विधायक पहुंचे थे, जिसमें से बिजेपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक सुबल साहू के निधन के बाद हुए उपचुनाव के बाद इस सीट पर भी बीजद ने कब्जा कर लिया और कांग्रेस उम्मीदवार प्रणय साहू तीसरे नंबर पर रहे, वह भी अब कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजद में शामिल हो गए हैं। इसके अलावा हाल ही में दो विधायक पार्टी से नाता तोड़ चुके हैं।
2009 के आम चुनाव में कांग्रेस को 29.10 फीसद वोट मिले थे, जबकि बीजद को 38.86 फीसद व भाजपा को 15.05 फीसद वोट मिले थे। वहीं, 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस को 25.7 फीसद वोट मिले थे, जबकि बीजद को 43.4 एवं भाजपा को 18 फीसद वोट मिले थे। हालांकि 2014 के बाद से भाजपा अपने मत प्रतिशत को बढ़ाने के लिए जहां लगातार जमीनी स्तर पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति पर काम कर रही है और उसके जनाधार में भी तेजी से इजाफा हुआ है। वहीं, कांग्रेस से 2014 के बाद से कई नेताओं का पार्टी छोड़कर अपने समर्थकों के साथ दूसरी पार्टी में जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
ऐसे में कांग्रेस का जनाधार बढ़ना तो दूर लगातार गिरते जा रहा है। जनाधार को बढ़ाने एवं पार्टी नेताओं के पतझड़ को कम करने के लिए हाईकमान ने निरंजन पटनायक को जिम्मेदारी सौंपी, लेकिन इसका भी कुछ फायदा नहीं हुआ और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। देर से ही सही कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को ओड़िशा का दौरा कर निराश हो चुके कांग्रेस के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में बुद्धिजीवी सम्मेलन एवं जनसभा कर पुन: जान फूंकने का प्रयास किया है, मगर वह कितना कारगर होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।