Odisha: रेलवे ने अपनाया खर्च से बचने का नया तरीका नई तकनीक
भारतीय रेलवे यात्रियों की आवश्यकता पूरी करने के साथ पर्यावरण के पर विशेष ध्यान केंद्रित कर रही है। इसे ध्यान रख कर हेड ऑन जनरेटर (एचओजी) प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
राउकेला, जागरण संवाददाता। भारतीय रेलवे यात्रियों की आवश्यकता पूरी करने के साथ पर्यावरण के पर विशेष ध्यान केंद्रित कर रही है। इसे ध्यान रख कर हेड ऑन जनरेटर (एचओजी) प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है। डिब्बे में लाइट फेन आदि के लिए अलग से पवार कार लगाने की जरूरत नहीं होगी। इस तकनीक से पर्यावरण संरक्षण और खचरें में बचत होगी। बंडामुंडा में इलेक्ट्रिक लोको शेड के 15 इंजनों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।
पहले भारतीय रेल भारतीय रेल विद्युत आपूर्ति के लिए पारंपरिक स्नोतों का इस्तेमाल करता था, इससे बिजली की बहुत ज्यादा खपत होती थी और पर्यावरण पर भी असर पड़ता था। पहले इंजन और गार्ड के बगल में जनरेटर का लगाया जाता था। एक से लाइट एसी की आपूर्ति होती थी तथा दूसरी को आपातकाल के लिए रखा जाता था। जिससे पर्यावरण का समस्या रहती थी। इससे वायु एवं ध्वनि प्रदूषण होता था।
भारतीय रेलवे की नई तकनीक से डिब्बा में वातानुकूलन तथा रोशनी के लिए जनरेटर की जरूरत नहीं है। नयी तकनीक में गार्ड बॉगी के पास का जनरेटर हटाया जा रहा है। इंजन के साथ जनरेटर अभी है उसे विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा। दक्षिण पूर्व रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी संजय घोष ने बताया कि हेड ऑन जनरेटर ऊर्जा बचाने का एक कुशल तकनीक है।
इस योजना के तहत भारतीय रेल 500 ट्रेन चलाई जा रही है। जिससे सालाना ग्यारह हजार करोड़ रुपये के डीजल की खपत में कमी आई है। इस तकनीक से प्रतिवर्ष एक ट्रेन में एक मिलियन डीजल की खपत की कमी आएगी। इसके तहत लोकोमोटिव के साथ बागी को कुछ कि बदलाव किया जाता है ताकि वह एचओजी की एचडी तकनीक इस्तेमाल किया जा सकता है। अप्रैल 2018 से नवंबर 2019 तक 436 ट्रेन में इस तकनीक को अपनाया गया है। इससे ध्वनि और वायु प्रदूषण की कमी आयी है। अभी बंडामुंडा में इलेक्ट्रिक शेड में 15 इंजन में एचओजी का इस्तेमाल हो रहा है। रेल इंजन में अब एचओजी का इस्तेमाल से पर्यावरण भी रहेगा सुरक्षित।