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खाट की डोली में प्रसूता को लेकर 10 किमी पैदल चल पहुंचे अस्पताल

ट्राइबल एरिया में महिला के उपचार के लिए पहुंचे डॉक्टर ने जब उसे अस्पताल लाना चाहा तो ग्रामीणों ने प्रसूता को छूने से इन्कार कर दिया।

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 06 Nov 2017 11:27 AM (IST)Updated: Mon, 06 Nov 2017 04:43 PM (IST)
खाट की डोली में प्रसूता को लेकर 10 किमी पैदल चल पहुंचे अस्पताल
खाट की डोली में प्रसूता को लेकर 10 किमी पैदल चल पहुंचे अस्पताल

नईदुनिया, मलकानगिरी (ओडिशा)। ओडिशा के सर्वाधिक पिछड़े और नक्सल प्रभावित जिले मलकानगिरी के मैदानी इलाके में पदस्थ एक डॉक्टर ने ऐसा काम किया कि सोशल मीडिया पर वायरल फोटो के बाद उन्हें जमकर सराहना मिल रही है। डिलीवरी के बाद महिला को लगातार ब्लीडिंग हो रही थी। तत्काल अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाता तो उसकी जान भी जा सकती थी। 

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ट्राइबल एरिया में महिला के उपचार के लिए पहुंचे डॉक्टर ने जब उसे अस्पताल लाना चाहा तो ग्रामीणों ने प्रसूता को छूने से इन्कार कर दिया। तब डॉक्टर उसे उसके पति के साथ डोली में लाद कर 10 किमी पैदल चलकर अपने पीएचसी पहुंचे। 18 घंटे की गहन चिकित्सा के बाद महिला व उसके बच्चे की स्थिति खतरे से बाहर आ पाई।

चित्रकोंडा सीएचसी के अंतर्गत पापुलूर पीएचसी जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर स्थित है। यहां पिछले मार्च माह में डॉ. ओंकार होता की पोस्टिंग की गई। 31 अक्टूबर को दोपहर करीब एक उनके मोबाइल पर पीएचसी से 10 किमी दूर सारगेटा गांव से कॉल आयी, जिस पर उन्हें घर पर डिलीवरी के बाद प्रसूता सुभम मारसे की गंभीर स्थिति की सूचना दी गई। सूचना मिलते ही डॉ. होता सहकर्मी रामा पांगी के साथ बाइक से सारगेटा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि प्रसव के बाद सुभम को काफी ब्लीडिंग हो रही थी और उसे तत्काल अस्पताल ले जाना जरूरी था। पहाड़ी इलाके में बसे गांव से सीएचसी पापलूर पहुंचने तक सड़क नहीं होने से महिला को खाट की डोली में लिटाकर ही अस्पताल पहुंचाया जा सकता था। इसके लिए डॉ. होता ने ग्रामीणों से मदद मांगी पर कोई आगे नहीं आया। 

ग्रामीणों ने परंपरा का हवाला देकर महिला को छूने से इन्कार कर दिया। तब डॉ. होता ने यह जिम्मेदारी खुद उठाने की ठानी और महिला के पति सुंदराय मारसे के साथ उसे खाट की डोली में लिटाकर पैदल 10 किमी दूर पीएचसी पहुंचे। उनके साथ गांव की आशा कार्यकर्ता नवजात को लेकर आईं। 

अस्पताल में 18 घंटे की गहन चिकित्सा के बाद आदिवासी महिला व उसके बच्चे की स्थिति खतरे से बाहर आ पाई। गौरतलब है कि 31 वर्षीय डॉक्टर की नियुक्ति के बाद पापलूर पीएचसी में 25 सुरक्षित प्रसव हुए हैं, जिसकी वजह से उन्हें स्वतंत्रता दिवस समारोह में जिले के बेस्ट डॉक्टर का सम्मान भी इसी साल मिला है।

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