मानवता हुई शर्मसार, मृत शरीर को न मिले चार कंधे; साइकिल पर बांध बहनोई ले गया श्मशान घाट
ओडिशा में मृत शरीर को चार कंधे भी न मिले तो साइकिल पर बांधकर उसे श्मशान घाट तक पहुंचाया गया।
भुनेश्वर, जेएनएन। ओडिशा में मानवता एक बार फिर शर्मसार हुई है। मृत शरीर को कंधा देने के लिए चार आदमी नहीं मिले और शव को साइकिल में रस्सी से बांधकर श्मशान घाट ले जाना पड़ा। घटना ओडिशा के बौद्ध जिला की है। प्राप्त सूचना के मुताबिक दूसरी जाति में शादी करने के चलते गांव वालों ने इस तरह का दंड दिया है जो कि बौद्ध जिला के साथ पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गयी है।
बौद्ध जिला के ब्राह्मणी पाली पंचायत अंतर्गत कृष्ण पाली गांव के चतुर्भुज बांक की पहली पत्नी से कोई बच्चा नहीं था इससे बांक ने दूसरी जाति की लड़की से शादी कर। इसे गांव वालों ने बर्दाश्त नहीं किया और चतुर्भुज बांक को गांव से बहिष्कृत कर दिया। चतुर्भुज के घर कोई भी कार्यक्रम होने पर उसमें गांव वाले भाग नहीं लेते थे। सास ससुर की मौत के बाद चतुर्भुज की साली पांच महाकुड ( चतुर्भुज के पत्नि की छोटी बहन) चतुर्भुज के घर रहने लगी।
मंगलवार को उसकी अचानक तबीयत खराब हो गई उसे अस्पताल में भर्ती किया गया जहां उसकी बुधवार को मौत हो गई। शव को एंबुलेंस के जरिए घर लाया गय। चतुर्भुज ने साली के अंतिम संस्कार में आस-पड़ोस एवं गांव वालों को बुलाया, गांव वालों ने सीधे तौर पर चतुर्भुज को अंतिम संस्कार में भाग लेने से यह कह कर मना कर दिया कि तुमने दूसरी जाति में शादी की है इसलिए हम तुम्हारे किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लेंगे। अंत में कोई उपाय न देख चतुर्भुज शव को रस्सी से साइकिल में बांध श्मशान घाट ले गया और अंतिम संस्कार किया यह घटना आज पूरे राज्य में चर्चा का विषय है।
कालाहांडी की घटना
अगस्त 2016 में भी ओडिशा में इस तरह की अमानवीय घटना हुई थी जब पिछड़े जिले के कालाहांडी में एक आदिवासी को अपनी पत्नी के शव को अपने कंधे पर लेकर करीब 10 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा था। उसे अस्पताल से शव को घर तक ले जाने के लिए कोई वाहन नहीं मिला था। व्यक्ति के साथ उसकी 12 वर्षीय बेटी भी थी। 42 वर्षीय महिला की भवानीपटना में जिला मुख्यालय अस्पताल में टीबी से मौत हो गई थी।
जबकि नवीन पटनायक की सरकार ने ओडिशा में 'महापरायणÓ योजना की शुरुआत की थी जिसके तहत शव को सरकारी अस्तपताल से मृतक के घर तक पहुंचाने के लिए मुफ्त परिवहन की सुविधा दी जाती है।
बालासोर की घटना
ओडिशा के बालासोर में एक स्वास्थ्य केंद्र में स्वीपर एक लाश के ऊपर खड़ा होकर अपने पैरों से उसकी हड्डियां तोड़ता है ताकि लाश को छोटा करके उसकी गठरी बनाई जा सके। इसके बाद दो कर्मचारी इस सिमटी लाश को कपड़े और प्लास्टिक से लपेटकर बांस की लकड़ी पर लटकाते हैं और अपने कंधे पर उठा लेते हैं।
यह लाश 76 साल की विधवा सालामनी बारिक की है जिसकी बालासोर से 30 किमो दूर सोरो में ट्रेन की चपेट में आकर मौत हो गई थी बारिक की लाश को बालासोर तक लाने के लिए कोई एंबुलेंस उपलब्ध नहीं थी। दरअसल सोरो में कोई अस्पताल है ही नहीं, सिर्फ एक सामाजिक स्वास्थ्य केंद्र है और लाश को पोस्ट मॉर्टम के लिए ट्रेन से बालासोर तक लाना था। शव को स्टेशन तक ले जाने के लिए एक ऑटो करने के बारे में सोचा गया लेकिन वह बहुत मंहगा साबित हो रहा था इसलिए कर्मचारियों से कहा गया कि वह पैदल ही लाश को स्टेशन तक लेकर जाएं।