जिनकी कोई नहीं सुनेगा, उन्हें राजभवन के दरवाजे 24 घंटे खुले मिलेंगे: गणेशीलाल
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक रह चुके प्रोफेसर गणेशी लाल शनिवार देर रात ओडिशा जाने से पूर्व नई दिल्ली स्थित ओडिशा भवन पहुंचे।
भुवनेश्वर, जेएनएन । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भारतीय जनता पार्टी की अनुशासन समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे प्रोफेसर गणेशी लाल को ओडिशा का राज्यपाल नियुक्त किया है। वह हरियाणा भाजपा के पूर्व अध्यक्ष व 1996 में चौधरी बंसीलाल की हविपा-भाजपा गठबंधन सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रह चुके हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक रह चुके प्रोफेसर गणेशी लाल शनिवार देर रात ओडिशा जाने से पूर्व नई दिल्ली स्थित ओडिशा भवन पहुंचे। यहां उनसे दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता बिजेंद्र बंसल ने विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश:
अनुशासन समिति के अध्यक्ष से आपको मर्यादा का पर्याय राज्यपाल बना दिया, आपको नहीं लगता राजनीति में रहते हुए भी आप स्वयं अनुशासन और मर्यादा के पर्याय बन गए हैं?
-निश्चित तौर पर एक शिक्षक होने के नाते मेरा जीवन सादगी और अनुशासन में बीता है। राज्यपाल के रूप में में भी संवैधानिक मर्यादाओं का ध्यान रखना अहम होता है। इसके लिए मैं महामहिम राष्ट्रपति महोदय के प्रति आभार व्यक्त करता हूं। साथ ही यह भी कहना चाहूंगा कि बतौर राज्यपाल मेरे से जो अपेक्षाएं की गई हैं, उन पर खरा उतरने का प्रयास करूंगा।
बतौर राज्यपाल आपकी क्या प्राथमिकताएं रहेंगी?
-ओडिशा के विश्वविद्यालयों में बतौर पदेन कुलाधिपति शैक्षणिक स्तर में इतना सुधार करवाना कि वहां के युवा देश ही नहीं विश्व में ओडिशावासियों के रूप में जाने जाएं। शिक्षा के साथ-साथ मेरा वहां स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर भी ध्यान केंद्रित होगा। मैं चाहता हूं कि समाज के अंतिम छोर पर रहने वाले परिवार तक शिक्षा-स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं पहुंचे। सरकार चाहे जिस भी दल की हो, लेकिन वह ओडिशा में पारदर्शी और स्वच्छ शासन दे।
एक पिछड़े राज्य का राज्यपाल बनाया जाना क्या आपके लिए एक बड़ी चुनौती है? आपने वहां के विकास के लिए क्या खाका तैयार किया है?
-ओडिशा क्या मैं भारत वर्ष के किसी भी राज्य को पिछड़ा नहीं मानता। हमारे देश के कोने-कोने में अपार प्राकृतिक संपदा है, सिर्फ इनका उपयोग करना आना चाहिए। ओडिशा की प्राकृतिक संपदाओं के बूते मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि आने वाले समय में ओडिशा को कोई पिछड़ा राज्य नहीं कहेगा। वैसे भी देश के मौजूदा नेतृत्व ने कई जनकल्याणकारी केंद्रीय योजनाओं के बूते ओडिशा के समग्र विकास का खाका खींचा हुआ है।
कई बार ऐसी मांग भी उठी हैं कि राज्यपाल पद पर रिटायर्ड नेताओं और अफसरशाहों को नियुक्त किया जाता है, इस पद को ही समाप्त कर देना चाहिए?
-(मुस्कुराते हुए) देखिए, पहले तो यह समझ लिजिए कि मैं न तो रिटायर्ड और न ही टायर्ड। रही बात राज्यपाल के कामकाज पर सवाल उठाने की तो जो संवैधानिक मर्यादाएं राज्यपाल के लिए हैं वही अन्य नेताओं के लिए भी हैं। कोई अब इन्हें न माने तो यह अलग बात है। हम सबको संविधान के दायरे में काम करना चाहिए।
क्या आप राजभवन में आम लोगों की शिकायतें सुनने के लिए दरबार लगाएंगे?
-राजभवन की कुछ संवैधानिक मर्यादाएं हैं, मैं इन्हें तोड़ना नहीं चाहूंगा। मगर जिनकी कोई नहीं सुनेगा, उन्हें राजभवन के दरवाजे 24 घंटे खुले मिलेंगे। मैं ओडिशावासियों के और ज्यादा नजदीक जाने के लिए उड़िया भाषा भी सीखूंगा। उड़िया चूंकि संस्कृत और हिन्दी का मिश्रण है इसलिए मुझे नहीं लगता कि इसे सीखने में मुझे ज्यादा समय लगेगा।
राज्यपाल के रूप में भी संघ से नाता रहेगा?
-निश्चित रूप से संघ से अटूट नाता बना रहेगा। मैं राज्यपाल से पहले संघ का स्वयंसेवक कहलाना पसंद करूंगा।
आखिरी सवाल : पदभार संभालने से पूर्व आपने श्री श्याम खाटू जाकर दर्शन किए हैं, क्या पदभार संभालने के बाद जगन्नाथ पुरी भी जाएंगे?
-धर्म और धार्मिक स्थलों के प्रति मेरी अटूट आस्था है। मैं निश्चित तौर पर भगवान जगन्नाथ धाम जाऊंगा।