भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। कोई भी उप चुनाव का परिणाम कुछ दिनों के लिए राजनीतिक माहौल जरूर बनाता है मगर इससे राज्य की राजनीति इसका कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ता है। खासकर जिस राज्य में विधानसभा में सत्ता में बैठी पार्टी एक चौथाई बहुमत के साथ सत्ता में हो। हालांकि ओडिशा में पद्मपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उप चुनाव की चर्चा ना सिर्फ पद्मपुर विधानसभा सीट या बरगढ़ जिले तक सीमित है बल्कि इस सीट की चर्चा पूरे प्रदेश में एवं यहां तक दिल्ली दरबार तक हो रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओडिशा में हो रहा यह उप चुनाव का परिणाम आगामी दिनों में पूरे प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने वाला होगा।
भुवनेश्वर से लेकर दिल्ली दरबार की है पद्मपुर उप-चुनाव पर नजर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पद्मपुर उप चुनाव में यदि बीजद को हार मिलती है तो यह बीजद के लिए सिर्फ एक उप चुनाव की हार नहीं होगी बल्कि बीजद के अपराजेय रहने की जो धारणा बनी हुई है वह बदल जाएगी। विपक्षी खेमे को टानिक तो मिलेगा ही पिछले दो उप चुनाव से बीजद के अंदरखाने चल रही खींचतान भी खुलकर सामने आ जाएगी। यही कारण है कि बीजद थिंक टैंक को पार्टी के सुप्रीमो तथा लोकप्रिय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को चुनाव प्रचार मैदान में उतारने को मजबूर होना पड़ा है।

वहीं भाजपा के थिंकटैंक इस बात को अच्छी तरह जानते हैं और यही कारण ही कि पद्मपुर विधानसभा सीट को जीतने के लिए वे चुनाव प्रचार के आखिरी दिन अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। ऐसा नहीं है कि इसका अंदेशा शासक दल को नहीं है। शासक दल भी जानता है कि इस उप चुनाव की हार-जीत से उसकी सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, मगर अगले आम चुनाव के लिए यह संदेश जरूर दे देगा कि बीजद को हराया जा सकता है। खासकर पश्चिम ओडिशा में जहां बीजद की ही तरह भाजपा का भी संगठन मजबूत है। हाल ही में सम्पन्न हुआ धामनगर उप चुनाव शासक दल के लिए एक धक्का जरूर था मगर वह भाजपा की सीटिंग सीट थी।
2019 से भाजपा राज्य में प्रमुख विरोधी दल
2019 से भाजपा राज्य में प्रमुख विरोधी दल है मगर एक भी उप चुनाव या फिर पंचायत चुनाव में बीजद से वह मुकाबला नहीं कर पा रही थी। खासकर भाजपा की सीटिंग सीट बालेश्वर उपचुनाव में भी उसे हार का सामना करना पड़ा और इसके बाद सभी धामनगर को छोड़ दें तो सभी उप चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। पंचायत एवं नगर निगम व निकाय चुनाव में भी बीजद को एक तरफा जीत मिली। वर्ष 2017 में भाजपा राज्य में मुख्य विरोधी दल के तौर पर उभरने का राजनीतिक विश्लेषक अंदाजा लगा रहे थे, उस हिसाब से भाजपा को सफलता नहीं मिली। हालांकि धामनगर उप चुनाव में भाजपा की विजय एवं बीजद का 2019 आम चुनाव तथा पंचायत चुनाव में खिसकते जनाधार ने प्रमाणित करने का काम किया है कि शासक दल के प्रति अब असंतोष का माहौल बनने लगा है।
वहीं अब पद्मपुर उप चुनाव हो रहा है और यह बीजद की सीटिंग सीट है, ऐसे में इस सीट पर जो भी परिणाम आएगा वह अगले आम चुनाव की दिशा एवं दशा दोनों निर्धारित करने की बात कही जा रही है। यदि बीजद अपनी इस सीटिंग सीट को बचाने में सफल रहती है तो फिर धामनगर उप चुनाव में उसकी हार को लेकर जो आलोचना हो रही है, उस पर विराम लगेगा। इसके साथ ही शासक दल के अन्दर जो असंतोष की बात धामनगर उप चुनाव में जो सामने आयी है, उस पर भी लगाम लग जाएगी।
बीजद को लेकर राज्य में अपराजेय रहने की धारणा
हालांकि यदि ठीक उसी तरह बीजद की हार हो जाती है तो फिर पार्टी के अन्दरखाने जो असंतोष है, उसे सम्भलना मुश्किल हो जाएगा। इससे भी बड़ी बात है कि बीजद को लेकर राज्य में जो अपराजेय रहने की धारणा बनी है, वह भी पूरी तरह से बदल जाएगी। 22 साल से सत्ता में रहने वाली बीजद के खिलाफ असंतोष का माहौल पनप रहा यह भी स्पष्ट हो जाएगा। नवीन पटनायक की उम्र एवं स्वास्थ्य समस्या के बीच बीजद क्या करेगी उस पर भी सवाल उठेंगे। सम्भवत: इसी कारण से अन्य उप चुनाव में वर्चुअल प्रचार करने वाले मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इस बार पद्मपुर में प्रचार करने के लिए जाने को मजबूर हुए हैं। केवल इतना ही नहीं पद्मपुर विधानसभा क्षेत्र की विभिन्न जाति, संप्रदाय को अपनी तरफ लाने के लिए कुलता समाज के लिए पुरी में जमीन की व्यवस्था, गंड समाज के लिए आश्वासन के जरिए विभिन्न समाज को अपनी तरफ लाने का प्रयास किया गया है।
पद्मपुर विधानसभा क्षेत्र में केन्दु पत्र तोड़ने वालों की संख्या अधिक है। ऐसे में उनके लिए बोनस की घोषणा एवं केन्दु पत्र के ऊपर केन्द्र सरकार 18 प्रतिशत जीएसटी लगाने के प्रसंग को खुद मुख्यमंत्री ने उठाया। कुल मुलाकर किसी भी तरह से पद्मपुर उप चुनाव जीतने के लिए बीजद की पहली प्राथमिकता है।
गौरतलब है कि पद्मपुर विधानसभा सीट पर बीजद के विधायक विजय रंजन सिंह बरिहा के निधन के बाद 5 दिसम्बर को उप चुनाव होने जा रहा है। यह सीट 2014 में भाजपा के पास थी जबकि 2019 में इस सीट पर बीजद ने कब्जा कर लिया था।
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