Elephant Attack: जीवन के साथ जीविका खोते लोग, दिनोंदिन बढ़ रहा है गजराज का उपद्रव
Elephant AttackOdishaअप्रैल 2014 से मार्च 2020 तक 805 हाथी-मनुष्य के बीच हुई लड़ाई में 527 लोगों की मौत हुई है। 442 लोग घायल सैकड़ों घर तहस-नहस हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो चुकी है। गजराज का उपद्रव दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
भुवनेश्वर, जागरण संवाददाता। हाथी एवं मानव के बीच लड़ाई में जीवन के साथ लोग जीविका भी खो रहे हैं। आबादी क्षेत्र में हाथियों का झुंड पहुंचकर घर द्वार नष्ट करने के साथ ही फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लोगों के नुकसान की भरपाई भी सरकार नहीं कर पा रही है। जंगल के नष्ट होने से खाद्य की कमी के कारण हाथी जनबस्ती इलाकों में प्रवेश कर रही हैं और इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
खाद्य की तलाश में आने वाला हाथियों का झुंड घर द्वार तोड़ने के साथ ही धान, चावल खा जा रहा है और बचाव के लिए आने वाले लोगों को मार रहे हैं। खासकर प्रदेश के पहाड़ों से घिरे जाजपुर एवं केन्दुझर जिले के कुछ इलाकों में गजराज का उपद्रव दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहा है। कहीं पर लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ रहा है तो कहीं पर लोगों की जीविका नष्ट हो रही है, कहीं लोग हाथियों के भय से अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर हो रहे है। इन सबके बीच सबसे बड़ी बात यह है कि हाथी-मानव लड़ाई में जो नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई करना मुश्किल है।
जंगल संपदा का प्रयोग हाथी वंश के लिए विपदा
विशेषज्ञों के मुताबिक खदान, जंगलों के नष्ट होने, अवैध कब्जा, दांत के लिए हाथियों का शिकार एवं विकास के लिए जंगल संपदा का प्रयोग हाथी वंश के लिए विपदा बन गया है। हाथियों के दांत की तस्करी, हाथी मानव के बीच लड़ाई का मुख्य कारण बताया जा रहा है, खासकर केन्दुझर जिले में संकटापूर्ण स्थिति उत्पन्न हो गई है। शुष्क, ग्रीष्म मंडलीय एवं घने जंगल से परिपूर्ण केन्दुझर जिला विभिन्न विभिन्न वन्यजीवों के लिए उनुकुल परिवेश सृष्टि करता है। यहां जंगली द्रव्य, पेड़-लताएं, झरने का पानी वन्य जीवों के लिए काफी उपयोगी है। हालांकि जंगलों की कटाई एवं पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, अनियमित बारिश तथा खाद्य संकट आदि हाथी जैसे विशालकाय प्राणी को जनबस्ती क्षेत्र में जाने को मजबूर कर रहा है।
परिवार हाथियों के डर से घर छोड़ने को मजबूर
योजना एवं समन्वय विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केन्दुझर जिले में 2008 से 2012 साल तक 12.66 वर्ग किमी. शिल्प कारखाना के लिए चला गया है जबकि खदान के लिए 38.36 वर्ग किमी., ऊर्जा संचार के लिए 2.15 वर्ग किमी., रेलवे के लिए 1.02 वर्ग किमी., जल सिंचाई के लिए 12.36 वर्ग किमी, नदी बांध योजना में 8.15 किमी., पुनर्वास के लिए 6.65 वर्ग किमी तथा रास्ता के लिए 4.62 किमी. चला गाया है। अप्रैल 2014 से मार्च 2020 तक 805 हाथी-मनुष्य के बीच हुई लड़ाई में 527 लोगों की मौत हुई है। 442 लोग घायल हुए हैं। 2019-20 में केवल केन्दुझर जिले में 10 लोगों की मौत हाथी के हमले में हुई है। हाथियों के झुंड ने सैकड़ों घरों को उजाड़ दिया है, हजारों हेक्टर में फसल का बर्बाद कर दिया है। केन्दुझर जिले के बांशपाल इलाके में चार परिवार हाथियों के डर से अपना घर छोड़ने को मजबूर हो गया।
मिर्चा, अदरक, आलू, तिलहन की खेती करने की सलाह
वहीं दूसरी तरफ हाथियों के आक्रमण से लोगों को बचाने के लिए वन विभाग एवं विशेषज्ञ दल जो दिशा-निर्देश जारी करते हैं, वह केवल कागजों तक ही सीमित रह जाता है। हाथी से बचाने के लिए मिर्चा, अदरक, आलू, तिलहन जैसी फसल की खेती करने की सलाह दी गई है। हाथियों की पहली पसंद महुल एवं देशी बंद होने से इसकी खेती ना करने एवं खासकर घर के आस-पास तो बिल्कुल नहीं करने की सलाह दी गई है। सरकार के इस दिशा निर्देश का अनुपालन करने से लोगों क्या लाभ होगा उस संदर्भ में ना ही लोगों को जागरूक किया जा रहा है और ना ही लोग उसका अनुपालन कर रहे हैं। योजना केवल योजना बनकर रह जाती है और इसका लाभ लोगों को नहीं मिल पाता है। परिणामस्वरूप हाथी-मानव लड़ाई जारी रहती है लोगों को धन जीवन का नुकसान उठाना पड़ रहा है।