कांग्रेस की अंदरूनी कलह का परिणाम है कर्नाटक का नाटक, पढ़ें कैसे
कर्नाटक का राजनीतिक संकट वास्तव में कांग्रेस की अंदरूनी कलह का परिणाम है। इस राजनीतिक संकट में बड़ी भूमिका पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दरामैया की बताई जा रही है।
नई दिल्ली [ओमप्रकाश तिवारी]। कर्नाटक का राजनीतिक संकट वास्तव में कांग्रेस की अंदरूनी कलह का परिणाम है। यही कारण है कि कांग्रेस से बिदक कर मुंबई में डेरा डाले अपने पद से इस्तीफा दे चुके विधायक चंद दिनों पहले तक अपने साथी रहे डी.के.शिवकुमार से मिलना तक पसंद नहीं कर रहे हैं।
इस राजनीतिक संकट में बड़ी भूमिका पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दरामैया की बताई जा रही है। क्योंकि अपने इस्तीफे देकर मुंबई पहुंचे 11 कांग्रेसी विधायकों में आधे से ज्यादा उनके ही करीबी बताए जाते हैं। उन्हें टिकट देकर विधानसभा में पहुंचाने में बड़ी भूमिका सिद्दरामैया की रही है।
हालांकि सिद्दरामैया अब स्वयं भी एक बार इन विधायकों से इस्तीफा वापस लेने का आग्रह कर चुके हैं। लेकिन तीर निकल चुका है और विधायक वापसी को तैयार नहीं हैं। वह भी कर्नाटक सरकार में मंत्री डी.के.शिवकुमार के मनाने से तो बिल्कुल नहीं। इसमें भी बड़ा कारण डी.के.शिवकुमार और सिद्दरामैया की आपसी अनबन का ही माना जा रहा है। क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में डी.के.शिवकुमार जिस तरह से कर्नाटक कांग्रेस में संकटमोचक की भूमिका में उभरे हैं, वह सिद्दरामैया को बिल्कुल रास नहीं आ रहा है।
पिछले वर्ष मई में जनतादल(सेक्युलर) की सीटें कांग्रेस से कम आने बावजूद भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाकर एच.डी.कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय सिद्दरामैया को बिल्कुल रास नहीं आया था। क्योंकि देवेगौड़ा परिवार उन्हें फूटी आंखों नहीं सुहाता। दूसरी ओर देवेगौड़ा परिवार भी सिद्दरामैया को कतई पसंद नहीं करता। क्योंकि 2004 में कांग्रेस-जद(स) की साझा सरकार के दौरान देवेगौड़ा ने सिद्दरामैया को उपमुख्यमंत्री बनाने के बजाय अपने पुत्र कुमारस्वामी को मौका दिया। जिसके बाद सिद्दरामैया वित्तमंत्री रहते हुए अपना 'अहिंद' नामक संगठन बनाकर खुद को देवेगौड़ा परिवार के समानांतर खड़ा करने की कोशिश में जुट गए थे। कुमारस्वामी का वर्चस्व उन्हें तभी से रास नहीं आता। लेकिन पिछले वर्ष मई में कांग्रेस आलाकमान के दबाव में कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के निर्णय का वह विरोध नहीं कर सके थे।
सिद्दरामैया को उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव के बाद समीकरण बदलेंगे। इसी उम्मीद में कांग्रेस-जद(स) ने लोकसभा सीटों का भी समझौता किया है। कांग्रेस 18 और जद(स) को 10 सीटों पर चुनाव लड़ीं। चूंकि लोकसभा चुनाव कर्नाटक में सिद्दरामैया के नेतृत्व में ही लड़ा गया था, इसलिए उन्हें उम्मीद थी कि अच्छी सफलता मिलने पर कर्नाटक की राज्य सरकार में कुछ बदलाव होगा और आलाकमान उन्हें इनाम देगा। लेकिन लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस और जद(स) का सूपड़ा ही साफ हो गया। उधर कांग्रेस और जद(स) के विधायकों का असंतोष भी उबल रहा था। क्योंकि कुमारस्वामी सरकार में जद(स) के मंत्री कांग्रेस के विधायकों का काम नहीं कर रहे हैं, और कांग्रेस के मंत्री जद(स) के विधायकों का। इससे इस सरकार में दोनों दलों के विधायकों को अपने क्षेत्र में जवाब देना मुश्किल हो रहा है।
दूसरी ओर कर्नाटक में मंत्री डी.के.शिवकुमार की कांग्रेस में बढ़ती हैसियत सिद्दरामैया को बिल्कुल नहीं सुहा रही है। चाहे मौका गुजरात में राज्यसभा चुनाव के समय बेंगलूरू में कांग्रेस विधायकों की खातिरदारी का हो चाहे अब मुंबई जाकर विधायकों को मनाने का, डी.के.शिवकुमार आगे बढ़कर सक्रिय रहे हैं। उनकी यही सक्रियता सिद्दरामैया को कचोटती रही है। उन्हें सिद्दरामैया के रूप में अपना तगड़ा प्रतिद्वंद्वी नजर आता है। माना जा रहा है कि इस समय कांग्रेस में किसी आलाकमान का न होना भी कर्नाटक कांग्रेस में अनुशासनहीनता को बढ़ावा दे रहा है। जिसका खामयाजा कांग्रेस को एक राज्य की साझा सरकार गंवा कर चुकाना पड़ सकता है।