Rath Yatra 2019 जय जगन्नाथ से गूंजी पुरी, रथ पर सवार होकर मौसी के घर के रवाना हुए जग के नाथ श्री जगन्नाथ
Rath Yatra 2019 गुरुवार को महाप्रभु श्री जगन्नाथजी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा जय जगन्नाथ के उदघोष के साथ निकाली गयी बारिश के बावजूद बड़ी संख्या में भक्तों ने भगवान के दर्शन किए।
भुवनेश्वर/ पुरी, जेएनएन। Rath Yatra 2019 महाप्रभु श्री जगन्नाथजी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा जय जगन्नाथ के उदघोष के साथ गुरुवार को पुरी धाम में शुरू हुई। इस दौरान बारिश के बावजूद बड़ी संख्या में भक्तों का जमावड़ा श्रीक्षेत्र धाम में लगा रहा। महाप्रभु सहित चतुर्धा मूर्तियाें के रथ पर विराजमान होने के बाद जगतगुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने तीनों रथ पर जाकर महाप्रभु के साथ श्री विग्रहों के दर्शन किया। इसके बाद गजपति महाराज दिव्र्यंसहदेव ने रथ पर पहुंचकर छेरा पंहरा किया अर्थात सोने के झाड़ू से रथ की सफाई की। गजपति महाराज के छेरा पंहरा संपन्न करने के बाद रथ खींचने की प्रक्रिया शुरू हुई।
इस अवसर पर पुरी शहर में चारों तरफ सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। खासकर बड़दांड में परिंदा भी पर न मार सके इसके लिए प्रशासन की तरफ से त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था को अपनाया गया था। जमीन से लेकर आकाश एवं समुद्र मार्ग पर पुलिस प्रशासन की तरफ से पैनी नजर रखी गई थी।
जानकारी के मुताबिक सुबह 8:30 बजे महाप्रभु समेत सभी चतुर्धा मूर्तियों पहंडी बिजे (रथ पर सवार कराने की प्रक्रिया) शुरू हुई। सबसे पहले सुदर्शन जी को पहंडी बिजे नीति के साथ लाकर रथ पर विराजमान किया गया। इसके बाद महाप्रभु के बड़े भाई बलभद्र जी एवं बहन सुभद्रा जी की पहंडी बिजे संपन्न की गई। सबसे अंत में महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी को पहंडी बिजे में लाकर रथ पर विराजमान किया गया। इससे पहले गुरुवार को सुबह तीनों ही रथों की प्रतिष्ठा करने के बाद निर्धारित समय से एक घंटे पहले ही पहंडी बिजे शुरू कर दी गई। बाद में तीनों रथों पर गजपति महाराज दिव्र्य सिंहदेव के छेरा पंहरा के बाद रथ में चारीमाल अर्थात घोड़ा लगाए गए। इसके बाद रथ खींचने की प्रक्रिया शुरू की गई।
लाखों भक्तों ने खींचा महाप्रभु का रथ
देश के प्रमुख चार धाम में से एक श्रीक्षेत्र धाम पुरी में महाप्रभु श्री जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा गुरुवार से शुरू हुई। धार्मिक रूप से अति महत्वपूर्ण इस रथयात्रा में भाग लेने देश-दुनिया से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पुरी पहुंचे और भगवान श्री जगन्नाथ का दर्शन-पूजन कर उनका रथ खींचा। इस दौरान श्रीमंदिर प्रशासन एवं जिला प्रशासन की ओर से सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की गई थी। शहर में जगह जगह पुलिस बल के साथ सीसीटीवी कैमरों के जरिये हर गतिविधि पर नजर रखी जा थी।
मौसम अनुकूल होने से भक्तों का भारी जमावड़ा रथयात्रा में हुआ। भगवान श्री जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर भव्य यात्रा में निकलकर अपनी मौसी के घर के लिए रवाना हो गए हैं। महाप्रभु की मौसी का घर गुंडिचा देवी का मंदिर है, जहां भगवान हर साल एक सप्ताह रहने के लिए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि महाप्रभु की रथयात्रा की तैयारी सुबह से ही शुरू हो जाती है और कई रीति-नीति संपादित करने के बाद रथ खींचने का पावन कार्य अपराह्न 3 बजे से शुरू होता है।
हर साल आयोजित होने वाली इस रथयात्रा के लिए तीन विशाल रथ तैयार किए जाते हैं। इनमें महाप्रभु का रथ नंदीघोष, बड़े भाई बलभद्र का रथ तालध्वज और देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन शामिल है। ये सभी रथ हर साल नए बनाए जाते हैं और इन्हें बनाने की प्रक्रिया बसंत पंचमी से शुरू हो जाती है।
राजधानी में रथयात्रा को लेकर दिखा उत्साह
महाप्रभु श्री जगन्नाथ की पवित्र रथयात्रा के मौके पर राजधानी भुवनेश्वर में भी भक्तों जबर्दस्त उत्साह देखा गया। इस्कॉन मंदिर, वाणी श्रीक्षेत्र, पटियागड़, आरसीएम, वाणीविहार, चंद्रशेखरपुर, पुराना भुवनेश्वर, यूनिट-8, जागमरा आदि इलाके में आयोजित होने वाली रथयात्रा देखने लोग बड़ी संख्या में जुटे। मौसम अनुकूल होने के कारण रथयात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। इस्कॉन मंदिर में भोर 4 बजे मंगल आरती के उपरांत अन्य नीतियां संपादित की गई।
सुबह 8.30 बजे रथ प्रतिष्ठा कार्य संपन्न होने के बाद पहंडी बिजे कार्यक्रम किया गया। इसी तरह कीट-कीस परिसर के वाणी श्रीक्षेत्र में रथयात्रा को लेकर जबर्दस्त उत्साह दिखा। सुबह 8 बजे महाप्रभु को खिचड़ी भोग लगाया गया। 9 बजे रथ प्रतिष्ठा का कार्य पूरा होने के बाद पुरी की तरह नीति रीतिपूर्वक रथयात्रा निकाली गई।
हेरा पंचमी 8 को
हेरा पंचमी का दिन मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ की पत्नी हैं। जब भगवान अपने निवास स्थान नहीं लौटते तो माता परेशान हो जाती हैं और गुंडिचा मंदिर जाकर उनसे मिलती हैं। इस दौरान मंदिर से वह पालकी में विराजमान निकलती हैं।
बहुड़ा यात्रा 12 को
इस दिन भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर से लौटकर वापस अपने निवास स्थान आते हैं। इस दिन भी यह यात्रा शाम 4 बजे शुरू होगी।
सोना वेश 13 को
इस दिन भगवान के विग्रह का नया शृंगार किया जाता है और दिन भर भजन-कीर्तन के साथ पूजा-पाठ होता है। इस पर्व की शुरुआत राजा कपिलेंद्र देव के शासन काल के दौरान 1430 ईसवी में की गई थी। इसके मुख्य रिवाज का संभावित समय शाम 5 बजे से रात 11 बजे बताया जाता है।
नीलाद्रि बिजे 15 को
इस दिन भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन और पत्नी के विग्रह को वापस श्रीमंदिर में विराजमान किया जाएगा। इससे पहले जो भी रस्म और रिवाज निभाए जाएंगे वे सभी जगन्नाथ मंदिर के गर्भ ग्रह से बाहर ही संपादित होंगे।