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Puri Jagannath Temple: ऐतिह्य कारिडर विकास की भेंट चढ़ गई, श्रीक्षेत्र धाम की कंसारीपटी परंपरा

श्रीमंदिर ऐतिह्य कारिडर के विकास के लिए चारों तरफ बनी कंसारीपटी परंपरा को मिट्टी में मिला दिया गया है। इसमें साड़ी पट्टी सोना आभूषण पट्टी कांसा बर्तन पट्टी प्रमुख थे। पुरी के लोग हो या फिर पर्यटक जरूरत के हिसाब से सामान खरीदने के लिए सीधे यहां आते थे।

By Babita KashyapEdited By: Published: Tue, 02 Mar 2021 11:46 AM (IST)Updated: Tue, 02 Mar 2021 11:46 AM (IST)
Puri Jagannath Temple: ऐतिह्य कारिडर विकास की भेंट चढ़ गई, श्रीक्षेत्र धाम की कंसारीपटी परंपरा
श्रीमंदिर ऐतिह्य कारिडर के विकास के लिए कंसारीपटी को मिट्टी में मिला दिया गया

भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। श्रीमंदिर ऐतिह्य कारिडर के विकास के लिए कंसारीपटी को मिट्टी में मिला दिया गया है। इसके साथ ही श्रीक्षेत्र धाम में चली आ रही पटी परंपरा अब हमेशा के लिए खत्म हो गई है। श्रीक्षेत्र धाम की पटी परंपरा एक विशेष परिचय वहन करती थी। सालों सालों से श्रीमंदिर के चारों तरफ यह पटी परंपरा चली आ रही थी। इसमें साड़ी पट्टी, सोना आभूषण पट्टी, कांसा बर्तन पट्टी प्रमुख थे। 

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साड़ी पट्टी में केवल साड़ी की ही दुकान थी। एक ही जगह पर एकाधिक साड़ी के दुकानदार अपना व्यवसाय कर रहे थे। उसी तरह से चुड़ा पट्टी में केवल चुड़ा ही मिलता था। इस पट्टी में एकाधिक चुड़ा दुकान थी। सोनापट्टी में सोना की दुकान थी एवं कांसा पट्टी में कासा बर्तन की दुकान थी। ऐसे में पुरी के लोग हो या फिर पर्यटक जरूरत के हिसाब से सामान खरीदने के लिए सीधे यहां आते थे। हालांकि अब यह पट्टी परंपरा ध्वंस हो गई है। ऐतिह्य कारिडर के लिए जिला प्रशासन ने पहले साड़ीपट्टी को तोड़कर मिट्टी में मिला दिया। इसके बाद चुड़ा पट्टी एवं सुना पट्टी एवं फिर कांसा  पट्टी को तोड़ दिया गया है। 

श्रीमंदिर के चारों तरफ 75 मीटर परिधि में आने वाले सिंहद्वार के सामने मौजूद राधा बल्लभ मठ के कुछ हिस्से को तोड़ दिया गया है। मठ की तरफ से किराये पर दी गई 10 से अधिक दुकान घर को तोड़ा गया है, जिसे कंसारीपट्टी कहा जाता था। कांसे के बर्तन से लेकर देवी-देवताओं की मूर्ति, घंट-घंटा आदि पूजा की सामग्री यहां पर मिलती थी, जिसे अब तोड़ दिया गया है। जिला प्रशासन की तरफ से पहले से इन दुकानदारों को नोटिस दिया गया था।

 नोटिस मिलने के बाद दुकानदारों ने अपनी दुकानें खाली कर दी थी। इस मठ के कारण सिंहद्वार के सामने जगह कम होने से भक्तों की भारी भीड़ लग जाती थी। राजनअर से लेकर दोलमंडप साही तक भक्तों की भीड़ होती थी। मठ घर एवं इन सब दुकानों को तोड़ दिए जाने से सिंहद्वार के सामने इस समस्या का समाधान होने की उम्मीद जतायी जा रही है।

गौरतलब है कि सन् 1737 लाला सेवक राम ने खुद जगह खरीदकर राधा बल्लभ मठ को बनवाया था। राधा बल्लभ मठ के महंत रामकृष्ण दास महाराज महाप्रभु की चामरसेवा मुहैया कराते हैं। श्रीमंदिर के अन्दर भी मठ का मंदिर है, जहां पर प्रभु राधा बल्लभ की पूजा होती है।


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