भारी पड़ी जिहादियों को पालने की नीति
आसिफ जरदारी के समय अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी का मानना है कि पेशावर पर आतंकी हमले के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि पाकिस्तान पड़ोसी देशों अफगानिस्तान और भारत को चुनौती देने के लिए जिहादियों को गले लगाने की अपनी नीति को छोड़ेगा।
नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। आसिफ जरदारी के समय अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी का मानना है कि पेशावर पर आतंकी हमले के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि पाकिस्तान पड़ोसी देशों अफगानिस्तान और भारत को चुनौती देने के लिए जिहादियों को गले लगाने की अपनी नीति को छोड़ेगा। उनके मुताबिक पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी अभी इस धारणा से ग्रस्त हैं कि उनके देश को सबसे बड़ा खतरा भारत से है।
आम पाकिस्तानी भी साजिश की उन कहानियों पर भरोसा करते हैं कि अमेरिका और इजराइल भारत की मदद से उनके परमाणु हथियार छीनना चाहते हैं। हक्कानी ने सवाल किया है कि क्या पेशावर की घटना के बाद पाकिस्तान अपने घर में पल रहे संापों को मारने की जरूरत समझेगा? जिहादियों को पालने-पोसने की नीति पाकिस्तान को बहुत भारी पड़ रही है।
पेशावर की घटना पर हक्कानी ने हफिंगटन पोस्ट में लिखे एक लेख में कहा है कि अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले के दौरान पाकिस्तान ने अमेरिका से मिले हथियारों और पैसे का इस्तेमाल कश्मीर में आतंकवाद पनपाने के लिए भी किया। पाकिस्तान के लिए अपनी धरती पर आतंकियों को पनाह देने की नीति विनाशकारी साबित हुई।
जिहादी खुद को सही बताते हुए अपने हिसाब से काम करते हैं। आज पाकिस्तानी जिहादी अफगानिस्तान और भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी कहर ढा रहे हैं। अब वे ईरान और चीन के लिए भी मुसीबत बन रहे हैं। हडसन इंस्टीट्यूट की दक्षिण और मध्य एशिया शाखा के निदेशक हक्कानी के अनुसार पाकिस्तान की पहचान में इस्लाम की प्रधानता के कारण सेक्युलर लोगों को खुद को इस्लाम का सिपाही बताने वालों के खिलाफ आम सहमति बनाने में मुश्किल होती है।