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चीन, रूस से भारत के रिश्ते खत्म कराना चाहते हैं ओबामा

भारत को अमेरिका का स्वाभाविक सहयोगी और सबसे बड़ा साझीदार करार देने वाले बराक ओबामा के बोल चीन को कत्तई सुहा नहीं रहे हैं। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमेरिकी राष्ट्रपति की बढ़ती दोस्ती से भी बौखलाया हुआ है। बीजिंग ने सरकारी अखबार "ग्लोबल टाइम्स" के जरिये अपनी भड़ास निकाली

By manoj yadavEdited By: Published: Tue, 27 Jan 2015 06:44 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jan 2015 07:32 PM (IST)
चीन, रूस से भारत के रिश्ते खत्म कराना चाहते हैं ओबामा

बीजिंग। भारत को अमेरिका का स्वाभाविक सहयोगी और सबसे बड़ा साझीदार करार देने वाले बराक ओबामा के बोल चीन को कत्तई सुहा नहीं रहे हैं। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमेरिकी राष्ट्रपति की बढ़ती दोस्ती से भी बौखलाया हुआ है। बीजिंग ने सरकारी अखबार "ग्लोबल टाइम्स" के जरिये अपनी भड़ास निकाली है। सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े समाचार पत्र ने आगाह किया है कि ओबामा चीन, रूस से भारत के रिश्ते खत्म कराना चाहते हैं और वह इसी रणनीति पर गंभीरतापूर्वक अमल कर रहे हैं। विशेषज्ञों के हवाले से उसने चेताया है कि अमेरिका के साथ नई दिल्ली की बढ़ती निकटता से भारत-चीन संबंधों में खटास आ सकती है।

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ग्लोबल टाइम्स ने मंगलवार के अपने अंक में गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के साथ ओबामा की गुफ्तगू वाली तस्वीर और खबर को पहले पेज पर विस्तार से छापा है। जिसमें कहा गया है, "ओबामा की रणनीति स्पष्ट है। वह भारत के चीन और रूस के साथ पंरपरागत संबंधों को खत्म करना चाहते हैं। अमेरिका, भारत के जरिये चीन की बढ़ती ताकत पर लगाम कसने की सोची-समझी रणनीति पर काम कर रहा है।"

रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्ट्रैटजी के प्रोफेसर झाऊ फानजियान हवाले से अखबार का कहना है, "दक्षिण एशिया में भारत को सामरिक सहयोगी बनाकर अमेरिका दरअसल चीन को काबू में करना चाहता है। नई दिल्ली दौरे में ओबामा ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया। यही कारण है कि उन्होंने भारत को अहम साझीदार बनने का खुला न्योता दिया। वैसे चीनी विशेषज्ञों को भरोसा है कि भारत अमेरिका के जाल में फंसने वाला नहीं है। नई दिल्ली अपनी परंपरागत गुट निरपेक्ष विदेश नीति पर चलता रहेगा।

बकौल झाऊ, "अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करना मोदी के एजेंडे में शीर्ष पर है। भारतीय पीएम यह ठीक से जानते हैं कि इस काम के लिए उन्हें चीन की जरूरत है। शी चिनफिंग के भारत दौरे के दौरान भारत, चीन में कई अहम करार हुए हैं। उस स्थिति में भारत, अमेरिका का पिछलग्गू साझीदार नहीं बन सकता।" उन्होंनें निष्कर्ष निकाला है कि अपने पूर्ववर्तियों से ठीक विपरीत मोदी जाने-अनजाने में अमेरिका के पाले में चले जाते हैं क्योंकि वैश्विक मामलों में भारत की बढ़ती महत्ता दर्शाने को वह अपनी सरकार की उपलब्धियों के रूप में दिखाने के इच्छुक हैं।

चीन को काबू में करना मकसद नहीं

भारत, अमेरिका के मजबूत होते रिश्तों को लेकर चीन की बढ़ती चिंता को ह्वाइट हाउस ने खारिज कर दिया है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा उप सलाहकार बेन रोड्स का कहना है, "नई दिल्ली से प्रगाढ़ हो रहे संबंधों का मकसद चीन को काबू में करना या उस पर लगाम कसना कत्तई नहीं है। वह चीन की सरकारी मीडिया द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत दौरे को लेकर की गई टिप्पणी के बारे में सवालों का जवाब दे रहे थे।

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