परेशान प्रत्याशी चुनाव आयोग से बोला, जनाब! मुर्गी की जगह मुर्गा ही दे दो
पठान साहब... बकरी, खां साहब... पाजामा, चौधरी साहब... चूहा। चौंकिए नहीं... यह किसी को जलील करने के लिए दी गई विशेष उपाधि नहीं है। यह पाकिस्तान के सूबा खैबर पख्तूनख्वा में होने जा रहे स्थानीय निकाय चुनाव में उतरे निर्दलीय प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह हैं। सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देशों के
नई दिल्ली। पठान साहब... बकरी, खां साहब... पाजामा, चौधरी साहब... चूहा। चौंकिए नहीं... यह किसी को जलील करने के लिए दी गई विशेष उपाधि नहीं है। यह पाकिस्तान के सूबा खैबर पख्तूनख्वा में होने जा रहे स्थानीय निकाय चुनाव में उतरे निर्दलीय प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह हैं।
सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देशों के बाद यहां 30 मई को होने जा रहे स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टियों से जुड़े उम्मीदवारों ने अपना चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। परंतु चूहा, बकरी, पाजामा, गाजर, मूली जैसे चुनाव चिन्ह जिन निर्दलीय प्रत्याशियों को मिले हैं वे असमंजस की स्थिति में है। उनके आगे एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई। चूहा, बिल्ली, भिंडी, पाजामा जैसे चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में उतरते हैं तो परेशानी का सबब और नहीं उतरे तो...।
इस पठान बहुल क्षेत्र में नाक की आन को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है। प्रत्याशी तो प्रत्याशी आम आदमी भी अपनी नाक को नीची नहीं होने देना चाहता है। ऐसे में यह चुनाव चिन्ह प्रत्याशियों की शख्यिसत या मर्दानगी से मेल नहीं खा पा रहे हैं।
पाकिस्तान मीडिया प्रत्याशियों के लिए परेशानी का सबब बने चुनाव चिन्हों की खबरों से अटा पड़ा है।
मतदान का दिन नजदीक आता जा रहा है। पार्टी चुनाव चिन्ह पर चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों ने प्रचार में बढ़त ले ली है। वहीं, कई निर्दलीय प्रत्याशी अभी तक नहीं समझ पा रहे है कि वे किस मुंह से अपना चुनाव चिन्ह लेकर जनता के बीच जाएं।
मुर्गी की जगह मुर्गा ही दे दो...
गाजर, मूली, भिंडी आदि चुनाव चिन्ह मिलने वाले कई प्रत्याशी तो चुनाव प्रचार में उतर चुके हैं। कम से कम वे मतदाताओं से वादा तो कर सकते हैं कि सरपंच बनने के बाद वे क्षेत्र में सब्जी के बढ़त दामों पर अंकुश लगाने के लिए प्रयास करेंगे और इसका कोई स्थायी समाधान खोजेंगे। परंतु वे निर्दलीय प्रत्याशी बेहद परेशान हैं, जिन्हें चूहा, बकरी, मुर्गी, मेमना आदि चुनाव चिन्ह के रूप में मिले हैं। ऐसे ही एक प्रत्याशी ने चुनाव आयोग से गुजारिश की कि कुछ और नहीं तो उसे मुर्गी की जगह कम से कम मुर्गा ही चुनाव चिन्ह के रूप में दे दिया जाए... कुछ तो मान रह जाएगा पठान मतदाताओं के बीच।
तब चुनाव आयोग का एक सदस्य प्रत्याशी के कान में फुस-फुस्साया... शुक्र करो तुम्हें मुर्गी ही चुनाव चिन्ह के रूप में मिली है। जिन्हें चूहा, सांप, नेवला, मगरमच्छ, ऐश ट्रे और बच्चों का फीडर टीका मिला है... जरा उनसे जाकर पूछो। इतना सुनते ही वह प्रत्याशी चुपचाप वहां से खिसक लिया।
खां साहब और पाजामा
सारा जीवन सलवार-कमीज पहनकर बिता दिया और चुनाव चिन्ह क्या मिला पाजामा...। अब खां साहब परेशान है कि इसको लेकर कैसे मतदाता के बीच जाएं। कैसे इस चुनाव चिन्ह का झंडा बनाकर लहरा पाएंगे, लेकिन उनकी इस बेचारगी का फायदा विरोधी उम्मीदवार बखूबी उठा रहे हैं। एक उम्मीदवार जिनका चुनाव चिन्ह मगरमच्छ हैं, उनके कार्यकर्ता प्लास्टिक का एक मगरमच्छ उठाकर गली-गली घूम रहे हैं। मगरमच्छ की थूथनी में आधा पाजामा लटका हुआ है... जो चिढ़ाते हुए कुछ इस तरह कह रहा है... और भाग लो स्थानीय चुनाव में।
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