9/11: उस दर्द को नहीं भूल पाया अमेरिका, आतंक के खिलाफ जारी है जंग
अमेरिका में 16 साल पहले हुए 9/11 आतंकी हमलों की आज 16वीं बरसी है। आज तक न तो अमेरिका उस दर्द को भूल पाया है और न ही आतंक के खिलाफ जंग खत्म हुई है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। 11 सितंबर 2001 यह वह दिन था, जिस दिन दुनिया ने संभवत: अब तक का सबसे बड़ा और विनाशक आतंकी हमला देखा था। इस बार आतंकवादियों ने दुनिया के सबसे ताकतवर देश समझे जाने वाले अमेरिका को निशाना बनाया था। इन हमलों की सबसे खास बात यह थी कि आतंकियों ने हवाई जहाजों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर अपने खूंखार मंसूबों को अंजाम दिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संदेश में दो 9/11 की बात कही। उन्होंने 1893 में स्वामी विवेकानंद के भाषण की बात भी कही।
Two 9/11s and why paying attention to the message of 9/11 of 1893 would have prevented the 9/11 of 2001. pic.twitter.com/2qspB4HM9l— Narendra Modi (@narendramodi) September 11, 2017
अमेरिका की आर्थिक कमर तोड़ने की कोशिश
आतंकवादियों ने अमेरिकी हवाईअड्डों से सामान्य नागरिकों की तरह चार अलग-अलग विमानों में उड़ान भरी। जब विमान जमीन से सैंकड़ों फुट ऊपर आसमान में उड़ रहे थे, उस समय आतंकियों ने इन चारों विमानों को हाईजैक कर लिया। चार में से दो विमान न्यूयॉर्क स्थित 1973 में बने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की ट्विन टावरों से टकराए। 110 मंजिला इन इमारतों की ऊंचाई 415.1 मीटर थी। जिस समय आतंकियों ने इन्हें निशाना बनाया, तब तक यह दुनिया की सबसे ऊंची बिल्डिंगें थीं। दरअसल यह सात बिल्डिंगों का एक पूरा कॉम्पलेक्स है। यह कॉम्पलेक्स न्यूयॉर्क शहर के फाइनेंशियल डिस्ट्रिक्ट में था और इसमें 13,400,000 स्क्वायर फीट में ऑफिस स्पेस था। एक आम दिन में यहां 50 हजार लोग काम करते थे और अन्य 2 लाख लोग यहां से गुजरते थे।
अमेरिका के सम्मान पर हमला
आतंकवादियों के इरादे कितने खूंखार थे, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अमेरिका में ऐसी जगह हमला किया जो सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती है। आतंकियों ने वर्जीनिया स्थित अमेरिका के रक्षा मंत्रालय पेंटागन पर भी हमला बोल दिया। आतंकियों ने तीसरे विमान को पेंटागन की दीवार से टकराकर क्रैश करा दिया। 6,500,000 स्कवायर फीट में फैली यह बिल्डिंग दुनिया की सबसे बड़ी ऑफिस बिल्डिंगों में से एक है। यहां करीब 23000 मिलिट्री और आम नागरिक कार्यरत हैं। 3000 नॉन डिफेंस सपोर्ट स्टाफ भी इस बिल्डिंग में काम करता है। दिलचस्प बात यह भी है कि 11 सितंबर 2001 को इस बिल्डिंग की नींव रखे पूरे 60 साल हुए थे। 11 सितंबर 1941 को इस बिल्डिंग की नींव रखी गई थी।
खूंखार इरादे तो और भी थे
आतंकवादियों के इरादे तो इससे भी खूंखार थे। चौथे विमान को लेकर आतंकवादी सीधे अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी की तरफ बढ़ रहे थे। संभवत: उनका निशाना व्हाइट हाउस था, लेकिन विमान में सवार यात्रियों ने आतंकवादियों के मंसूबों के नाकाम कर दिया। इस तरह चौथा विमान पेंसिलवेनिया के स्टोनीक्रीक टाउनशिप के पास खाली जगह में क्रैश हो गया।
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अमेरिका को दिया ऐसा दर्द
मानव इतिहास के इस सबसे खूंखार आतंकवादी हमले में कुल 2997 यात्रियों की मौत हुई, जिसमें 19 आत्मघाती हमलावर भी शामिल थे। इसके अलावा 6000 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इन हमलों में अमेरिका को 10 बिलियन डॉलर (करीब 10 अरब रुपये) रुपये का नुकसान पहुंचा।
अलकायदा ने ली जिम्मेदारी
हमलों की जिम्मेदारी खूंखार अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अलकायदा ने ली। हालांकि शुरुआत में ओसामा बिन लादेन ने इन हमलों में अपना हाथ होने से इनकार कर दिया था, लेकिन बाद में उसने इस कृत्य को स्वीकार किया। अलकायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन अमेरिका से बहुत नफरत करता था। बता दें कि यह संगठन 1979 में सामने आया जब सोवियन यूनियन ने अफगानिस्तान पर हमला किया। इसके बाद लादेन ने अफगानिस्तान का दौरा किया और सोवियत संघ से लड़ने के लिए अरब मुजाहिद्दीनों की फौज खड़ी की। आयमान अल जवाहिरी के साथ मिलकर ओसामा बिन लादेन और भी खूंखार हो गया।
अफगानिस्तान में अलकायदा-तालिबान ठिकानों पर हमले
आखिरकार 7 अक्टूबर को अमेरिकी और ब्रिटिश विमानों ने अफगानिस्तान में तालिबान व अलकायदा के ठिकानों पर बमबारी करके युद्ध की शुरुआत कर दी। इसके बाद नाटो सेनाओं को भी अफगानिस्तान की धरती पर आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए उतार दिया गया। युद्ध काफी लंबा चला और अब भी अमेरिकी सेनाए अफगानिस्तान में मौजूद हैं और यह युद्धग्रस्त देश एक बार फिर खड़ा होने लगा है, लेकिन तालिबान और अलकायदा के आतंकी अब भी हमलों से बाज नहीं आ रहे।
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मारा गया आतंक का पर्याय ओसामा
ओसामा बिन लादेन की खोज में अमेरिकी और नाटो सेनाओं ने पूरे अफगानिस्तान में सालों खोजबीन की। कई बार उसके मारे जाने की भी अफवाहें उड़ीं, लेकिन वह किसी के हाथ नहीं लगा। अफगानिस्तान में तालिबान व अलकायदा आतंकियों के खिलाफ अमेरिका ने जिस पाकिस्तान को अपना साझीदार बनाया हुआ था, ओसामा उसी देश में छिपा बैठा था। आखिरकार 2 मई 2011 को ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के मिलिट्री बेस एबटाबाद में अमेरिकी सील कमांडो ने मार गिराया।
आतंकवाद से लड़ाई अब भी जारी है
आतंकियों के सफाए के लिए दुनियाभर में अमेरिका और अन्य देशों ने मुहिम चलाई। अफगानिस्तान से लेकर इराक, लिबिया, सोमालिया, सीरिया जैसे कई देशों में कई सालों से आतंकियों के खिलाफ लड़ाई जारी है। लेकिन एक आतंकी संगठन कमजोर पड़ता है तो दूसरा खड़ा हो जाता है। यह तब भी देखने को मिला जब अलकायदा के कमजोर पड़ने पर आईएसआईएस उससे भी ज्यादा खूंखार संगठन बनकर उभरा। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी भारत में लगातार हमले करते रहते हैं। खुद पाकिस्तान में भी आतंकी वारदातें अक्सर सामने आती रहती हैं। अमेरिका में हुए उस हमले को 16 साल बीत चुके हैं, लेकिन आतंक के खिलाफ जंग अब भी अधूरी ही है।