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पाकिस्‍तान के फौजी तानाशाहों की तारीफ कर आखिर क्‍या कहना चाहते हैं मुशर्रफ

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने यह कहकर नई सियासत को हवा दे दी है कि उन्‍होंने 1999 में नवाज शरीफ का तख्‍ता पलटकर सही काम किया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 04 Aug 2017 02:57 PM (IST)Updated: Sat, 05 Aug 2017 09:48 AM (IST)
पाकिस्‍तान के फौजी तानाशाहों की तारीफ कर आखिर क्‍या कहना चाहते हैं मुशर्रफ
पाकिस्‍तान के फौजी तानाशाहों की तारीफ कर आखिर क्‍या कहना चाहते हैं मुशर्रफ

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने यह कहकर नई सियासत को हवा दे दी है कि उन्‍होंने 1999 में नवाज शरीफ का तख्‍ता पलटकर सही काम किया था। इस दौरान उन्‍होंने यह भी कहा कि देश में जब-जब सेना का शासन हुआ तभी देश ने तरक्‍की भी की है। उन्‍होंने बीबीसी से हुई बातचीत के दौरान यह बयान दिया है। लेकिन अब इस बयान को देने के पीछे उनकी मंशा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। इसके पीछे एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्‍या मुशर्रफ मौजूदा आर्मी चीफ को यह बयान देकर उकसाने की कोशिश कर रहे हैं या फिर सेना द्वारा मौजूदा समय में सत्ता को हासिल न करने पर मौजूदा आर्मी चीफ की ताकत पर सवाल उठा रहे हैं। या फिर वह चाहते हैं कि जब देश में फौजी शासन कायम होगा, तभी वह दुबई से वापस आएंगे और अपने ऊपर चल रहे सभी मामलों का निपटारा एक झटके में करा लेंगे। यह सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्‍योंकि उन्‍होंने यह भी कहा है कि वह जब भी पाकिस्तान लौटेंगे, सेना उनके साथ खड़ी रहेगी, उनके हितों की रक्षा करेगी।

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मौजूदगी दर्ज कराने के‍ लिए बयानबाजी

इस पूरे मसले पर Jagran.Com से बात करते हुए पूर्व मेजर जनरल जीडी बख्‍शी ने कहा कि परवेज मुशर्रफ अब सत्ता की पहुंच से पूरी तरह से बाहर हो चुके हैं, लिहाजा वह अपनी मौजूदगी को दर्ज कराने के लिए इस तरह के बयान अक्‍सर दे दिया करते हैं। उनका कहना था कि नवाज शरीफ ने मुशर्रफ पर काफी हद तक नकेल कस दी थी। इतना ही नहीं इन दोनों का चूहे बिल्‍ली वाला नाता रहा है। नवाज ने श्रीलंका से लौटते समय मुशर्रफ को देश में उतरने तक की आजादी नहीं दी थी। जनरल बख्‍शी के मुताबिक मुर्शरफ को वहां के कोर कमांडरों ने भी अब बाहर कर रखा है। मौजूदा आर्मी चीफ के साथ उनका कोई संबंध नहीं है।

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मुशर्रफ को जेल नहीं जाने देंगे

लेकिन उन्‍होंने यह जरूर माना कि आर्मी चीफ मुशर्रफ को जेल नहीं जाने देंगे, क्‍योंकि इससे सेना की छवि खराब होती है। उन्‍होंने यह भी माना कि मौजूदा समय में पाकिस्‍तान की सेना के चीफ इस बात को अच्‍छे से समझ गए हैं कि सत्ता हाथ में लेने से अंतरराष्‍ट्रीय बिरादरी बुरी तरह से नाराज हो जाती है और वह उसको समर्थन नहीं देती है। लिहाजा अब पाकिस्‍तान में सेना न्‍यायपालिका के जरिए या फिर दूसरी राजनीतिक पार्टियों के जरिए तख्‍ता पलट का काम करती है। यूं भी जितनी बार पहले पाकिस्‍तान में तख्‍ता पलट हुआ है उसमें अमेरिका की भागीदारी रही है।

कारगिल के पटकथा लेखक हैं मुशर्रफ

यहां पर यह भी समझना बेहद दिलचस्‍प होगा कि यह वही मुशर्रफ हैं जिन्‍होंने कारगिल युद्ध की पटकथा लिखी थी। यह पटकथा ऐसे समय में लिखी गई थी जब भारत के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जम्‍मू कश्‍मीर के मुद्दे को हल करने के लिए बस से लाहौर गए थे। भारत की तरफ से इस मसले को सुलझाने को लेकर जोरदार पहल की जा रही थी। लेकिन पाकिस्‍तान की सेना इस दोस्‍ताना रवैये से नाखुश थी। इसी दौरान सरकार और सेना के बीच भी तल्‍खी काफी बढ़ी हुई थी। 1997 में यह मतभेद काफी चरम पर थे। 1998 में उस वक्‍त के आर्मी चीफ जहांगीर करामात के इस्‍तीफा देने के बाद नवाज ने मुशर्रफ को नया आर्मी चीफ नियुक्‍त किया था। 8 अक्‍टूबर को मुशर्रफ ने पदभार ग्रहण किया और मई 1999 में आंतकियों के साथ मिलकर जम्‍मू कश्‍मीर की ऊंची पहाड़ियों पर कब्‍जा कर लिया था। इसका ही नतीजा था कारगिल युद्ध।

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बढ़ी राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता

पाकिस्तान में इस युद्ध के कारण राजनैतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ गई और नवाज शरीफ की सरकार को हटाकर मुशर्रफ राष्ट्रपति बन गए। दूसरी ओर भारत में इस युद्ध के दौरान देशप्रेम का उबाल देखने को मिला और भारत की अर्थव्यवस्था को काफी मजबूती मिली। भारतीय सरकार ने रक्षा बजट और बढ़ाया। मई 2000 में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि पाकिस्तान में चुनाव कराए जाएं। मुशर्रफ ने जून 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति रफीक तरार को हटा दिया व खुद राष्ट्रपति बन गए। अप्रैल 2002 में उन्होंने राष्ट्रपति बने रहने के लिए जनमत-संग्रह कराया, जिसका अधिकतर राजनैतिक दलों ने बहिष्कार किया।

वैधानिक मान्‍यता

अक्टूबर 2002 में पाकिस्तान में चुनाव हुए जिसमें मुशर्रफ का समर्थन करने वाली मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमाल पार्टी को बहुमत मिला। इनकी सहायता से मुशर्रफ़ ने पाकिस्तान के संविधान में कई परिवर्तन कराए, जिनसे 1999 के तख्ता-पलट और मुशर्रफ के अन्य कई आदेशों को वैधानिक सहमति मिल गई। उनके शासन के दौरान भारत पर उग्रवादी हमले बढ़े। 2005 में एक पत्रिका ने मुशर्रफ को दुनिया के 10 सबसे बुरे तानाशाहों की सूची में शामिल किया। 24 नवंबर 2007 को उन्होंने सेना प्रमुख का पद त्याग दिया तथा असैन्य राष्ट्रपति के रूप मे शपथ ली।

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बुगती की हत्‍या का आरोप

नवाब अकबर खान बुगती पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के एक राष्ट्रवादी नेता थे जो बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग एक देश बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। 2006 में बलूचिस्तान के कोहलू जिले में एक सैन्य कार्रवाई में अकबर बुगती और उनके कई सहयोगियों की हत्या कर दी गई थी। इस अभियान का आदेश जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने दिया था जो तब देश के सैन्य प्रमुख और राष्ट्रपति दोनों थे। बेनजीर भुट्टो दिसम्बर 2007 में रावलपिंडी में एक चुनावी रैली के बाद एक आत्मघाती हमले में मारी गईं। मुशर्रफ पर उन्हें जरूरी सुरक्षा मुहैया नहीं कराने के आरोप लगे। मुशर्रफ के आदेश पर 2007 में लाल मस्जिद पर सैन्य कार्रवाई की गई, जिसमें लगभग 90 धार्मिक विद्यार्थियों की मृत्यु हो गई थी।

मुशर्रफ के खिलाफ आंदोलन

9 मार्च 2007 को उन्होंने शीर्ष न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी को जबरन पदमुक्त कर दिया। उनके इस कदम के बाद समूचे पाकिस्तान में वकीलों ने मुशर्रफ के खिलाफ आंदोलन कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो तथा बलूचिस्तान के राष्ट्रवादी नेता अकबर खान बुगती की हत्या तथा लाल मस्जिद की करवाई के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार किया गया। 2007 में आपातकाल के दौरान जजों को हिरासत में लिए जाने के मामले में भी केस चलाया गया। 2013 में नवाज शरीफ सरकार ने उन पर राजद्रोह का मुकद्दमा शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया। पाकिस्तान में इस आरोप के सही साबित होने पर मृत्युदंड तक का प्रावधान है

दुबई में हैं मुशर्रफ

गौरतलब है कि मुशर्रफ मार्च 2016 के बाद से ही दुबई में रह रहे हैं। पाकिस्‍तान के पूर्व सैन्‍य शासक बेनजीर भुट्टो हत्याकांड के आरोपी हैं और उनपर राजद्रोह का भी मुकदमा चल रहा है। इस बातचीत के दौरान मुशर्रफ ने भारत पर बलूचिस्तान में सक्रिय होने और वहां पर अशांति फैलाने का भी आरोप लगाया। उनका कहना था कि जो भी पाकिस्तान के हितों के खिलाफ काम करता है, उसे मार दिया जाना चाहिए।

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सैन्‍य शासकों की जमकर की तारीफ

बीबीसी से हुई बातचीत के दौरान उन्‍होंने पाकिस्‍तान के तमाम सैन्य शासकों की तारीफ की है। उन्‍होंने आरोप लगाया कि देश की निर्वाचित सरकारों ने देश की अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी से उतार दिया,  जबकि सैन्‍य शासकों ने देश को पटरी पर लाने का काम किया। इसी काल में पाकिस्तान का विकास हुआ। उन्‍होंने इस बातचीत में 1999 में नवाज शरीफ सरकार का तख्‍ता पलट करने को भी जायज करार दिया। साथ ही उन्‍होंने जिया उल हक द्वारा तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जुल्‍फीकार अली भुट्टो को हटाए जाने को भी सही करार दिया। उनका कहना था कि 1971 में पाकिस्‍तान के दो टुकड़े होने की वजह प्रधानमंत्री भुट्टो ही थे। उस वक्‍त जनरल जिया उल हक द्वारा सरकार का तख्‍ता पलट करना बेहद जरूरी था। उन्‍होंने यह भी कहा कि देश में ज‍ब-जब लोकतांत्रिक सरकारों का तख्‍ता पलट कर मार्शल लॉ लागू किया गया, वह समय की मांग रही थी।

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सही था नवाज का तख्‍ता पलट

नवाज के तख्‍तापलट का जिक्र करते हुए मुशर्रफ ने कहा कि उन्हें इसका कभी अफसोस नहीं रहा। प्रधानमंत्री के तौर पर उनके तीसरे कार्यकाल में नवाज शरीफ की भारत नीति पूरी तरह बिकी हुई थी। नवाज को सत्ता से हटाया जाना जनता की मांग थी। उनका कहना था कि शरीफ का तख्तापलट कर उन्‍होंने पाकिस्तान को बचाने का काम किया था। गौरतलब है कि पिछले दिनों जब पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा, तो मुशर्रफ ने सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट कर इसे ऐतिहासिक करार दिया था। मुशर्रफ को भरोसा है कि वह जब भी पाकिस्तान लौटेंगे, सेना उनके साथ खड़ी रहेगी, उनके हितों की रक्षा करेगी।

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