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भारत-चीन की प्रतिद्वंद्विता एशिया के हित में नहीं: दलाईलामा

न्यूयॉर्क। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा का मानना है कि भारत-चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता न तो एशिया के हित में है और न ही तिब्बतियों के। उन्होंने कहा कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच विश्वास बढ़ाने की जरूरत है। दो हफ्ते की यात्रा पर अमेरिका आए 7

By Edited By: Published: Thu, 20 Feb 2014 07:08 PM (IST)Updated: Thu, 20 Feb 2014 07:09 PM (IST)
भारत-चीन की प्रतिद्वंद्विता एशिया के हित में नहीं: दलाईलामा

न्यूयॉर्क। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा का मानना है कि भारत-चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता न तो एशिया के हित में है और न ही तिब्बतियों के। उन्होंने कहा कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच विश्वास बढ़ाने की जरूरत है।

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दो हफ्ते की यात्रा पर अमेरिका आए 78 वर्षीय दलाईलामा ने कहा कि भारत और चीन के बीच आपसी विश्वास पर आधारित अच्छे संबंध आर्थिक विकास के साथ ही शिक्षा और आध्यात्मिकता के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने यह प्रतिक्रिया प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन के उस सवाल के जवाब में दी जिसमें उनसे पूछा गया था कि क्या भारत-चीन की प्रतिद्वंद्विता एशिया और तिब्बतियों के हित में है? चीन के नए राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बारे में दलाईलामा ने कहा कि वह भ्रष्टाचार से साहसपूर्वक, प्रभावशाली ढंग से और निडर होकर मुकाबला कर रहे हैं। हालांकि चीनी समाज में व्याप्त सेंसरशिप के लिए उनकी निंदा की। उन्होंने कहा कि वास्तविक विकास ग्रामीण इलाकों में होना चाहिए। नए और बड़े शहरों का निर्माण समस्या का समाधान नहीं है। चीन के 1.3 अरब लोगों को वास्तविकता जानने का पूरा अधिकार है। सेंसरशिप अनुचित तरीका है जिससे वास्तव में अविश्वास और संदेह पनपता है। तिब्बती गुरु ने कहा कि चीन की न्यायिक व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय न्यायिक व्यवस्था के स्तर पर ले जाने की आवश्यकता है। तब जाकर एक अरब गरीब लोगों को कुछ सुरक्षा मिल सकेगी।

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