...तो समलैंगिकों के घर में भी गूंजेंगी किलकारियां
एक अमेरिकी शोधकर्ता गर्भाधान की आइवीजी तकनीक पर काम कर रही हैं। यह तकनीक सफल रहने पर मानव प्रजनन के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। खासकर, समलैंगिक जोड़े भी इस तकनीक की मदद से अपना जैविक बच्चा पैदा कर पाएंगे।
वाशिंगटन। एक अमेरिकी शोधकर्ता गर्भाधान की आइवीजी तकनीक पर काम कर रही हैं। यह तकनीक सफल रहने पर मानव प्रजनन के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। खासकर, समलैंगिक जोड़े भी इस तकनीक की मदद से अपना जैविक बच्चा पैदा कर पाएंगे। जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सोनिया सूटर इस तकनीक के संभावित फायदे और नुकसान का विश्लेषण करने में जुटी हैं।
यह अध्ययन सामाजिक, वैज्ञानिक और कानूनी संदर्भो को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। प्रजनन की यह प्रक्रिया चूहों में सबसे उन्नत मानी जाती है। सूटर को उम्मीद है कि भविष्य में यह मानवों के लिए भी कारगर साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि मानवों पर यह प्रयोग कब और कैसे शुरू किया जाए इस दिशा में नैतिक दुविधा सबसे चुनौतीपूर्ण है।
इस समय महिलाओं में कृत्रिम गर्भाधान के लिए आइवीएफ तकनीक की मदद ली जाती है। इस प्रक्रिया में किसी महिला के अंडाशय से अंडे को अलग कर उसका संपर्क द्रव माध्यम में शुक्राणुओं से कराया जाता है। इसके बाद निषेचित अंडे को महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है। पर आइवीजी तकनीक में वयस्कों में सभी तरह की कोशिकाओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार प्लूटिपोटेन्ट से नर या मादा के उन कोशिकाओं को अलग कर लिया जाता है जो गर्भाधान में मददगार होते हैं। इस प्रक्रिया में जननकोश एक ही व्यक्ति से लिया जा सकता है। विज्ञान पत्रिका लॉ एंड बॉयोसाइंस में यह शोध प्रकाशित किया गया है।
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