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नेपाल में पड़ रही विभाजन की नींव

नेपाल कभी किसी उपनिवेश के अधीन नहीं रहा। अंग्रेजों से लड़ाई में इस देश को भले कुछ हिस्से गंवाने पड़े लेकिन यहां के लोगों ने अपनी आजादी पर आंच नहीं आने दी। यह मधेशियों के संघर्ष की बदौलत हो सका मगर नये संविधान में अपने लिये उपेक्षा और षड्यंत्र का

By Sudhir JhaEdited By: Published: Fri, 02 Oct 2015 05:12 PM (IST)Updated: Fri, 02 Oct 2015 07:40 PM (IST)
नेपाल में पड़ रही विभाजन की नींव

कृष्णानगर (नेपाल) । नेपाल कभी किसी उपनिवेश के अधीन नहीं रहा। अंग्रेजों से लड़ाई में इस देश को भले कुछ हिस्से गंवाने पड़े लेकिन यहां के लोगों ने अपनी आजादी पर आंच नहीं आने दी। यह मधेशियों के संघर्ष की बदौलत हो सका मगर नये संविधान में अपने लिये उपेक्षा और षड्यंत्र का भाव देखकर वही मधेशी अपनी ही सरकार से लड़ने पर आमादा हैं। इन लोगों ने कई अंचलों में सरकारी कार्यालयों के बोर्ड से नेपाल सरकार मिटाकर मधेश सरकार लिख दिया है। इस लड़ाई से नेपाल में विभाजन की नींव पड़ने लगी है।

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नये संविधान के विरोध में आंदोलन की शुरुआत होते ही मधेशियों ने नेपाल के कपिलवस्तु जिले में टेलीकाम, विद्युत प्राधिकरण और कृष्णानगर नगर पालिका समेत कई सरकारी कार्यालयों पर मधेश सरकार का बोर्ड टांग दिया है। यह बोर्ड पर बदले गये अक्षर भर नहीं हैं बल्कि नेपाल का भूगोल बदलने की आम भावना है। युवाओं का एक दल हर सरकारी दफ्तर पर मधेश सरकार का बोर्ड टांगने की तैयारी कर रहा है। संभव है कि मधेशी अपने हित के अनुसार संविधान बनाने की भी पहल कर दें।

उप्र के सिद्धार्थनगर जिले के बढ़नी सीमा के पार कृष्णानगर में प्रवेश करते ही यह छटपटहाट साफ देखी जा सकती है। मधेशी आंदोलन की अगुवाई कर रहे संघीय समाजवादी फोरम नेपाल पार्टी के इलाकाई सांसद अभिषेक प्रताप शाह और तराई मधेश लोकतांत्रिक पार्टी के पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री ईश्र्वर दयाल मिश्र समेत कई दिग्गज जन-जन को जोड़ने में लगे हैं। अगर नागरिकता, राज्यों के स्वरूप और विदेश में शादी के मसले पर नेपाल सरकार अपने नये संविधान पर ही कायम रही तो मधेश के आक्रोश से बड़ी क्रांति जन्म लेगी। अभिषेक प्रताप शाह ने आंदोलन को गति देने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहल की है। वह नैतिक समर्थन के लिए भारतीय सांसदों व मंत्रियों के साथ ही कई संगठनों से संवाद बना रहे हैं।

तराई एका से पहाड़ में उबाल माओवादी आंदोलन के दौरान कृष्णानगर इलाके में बहुत ही खराब माहौल था। कुछ वर्ष पहले माओवादियों के खौफ से पूर्व मंत्री ईश्र्वर दयाल मिश्र समेत कई नेताओं को सुरक्षा तलाशनी पड़ी थी लेकिन मधेश के मुद्दे पर इन सबकी एका पहाडि़यों की चिंता का सबब है। कृष्णानगर से 20 किलोमीटर अंदर हाइवे पर जाने के बाद चनरौटा है। यह पहाड़ और तराई का सीमांकन करता है। चनरौटा में मधेशी एका से इतनी बेचैनी बढ़ी है कि हर दिन भारत विरोधी गतिविधि जारी है।

मेची से महाकाली तक मधेश

नेपाल 14 अंचलों और 75 जिलों में विभक्त है। इनमें तराई के 22 जिलों में नेपाल की 51.7 फीसद आबादी है। पश्चिम बंगाल की सीमा पर तराई के झापा जिले से लेकर उत्तराखंड की सीमा पर कंचनपुर जिले तक करीब 1155 किलोमीटर की दूरी में मधेशी अपने नये राष्ट्र की परिकल्पना में जुटे हैं। मेची नदी से लेकर महाकाली तक इसकी सरहद है। झापा, मोरंग, सुनसरी, सिरहा, रौतहट, मोहतरी, धनुषा, बारा, सरलाही, चितवन, दांग, नवलपरासी, कपिलवस्तु, रुपनदेही, बांके, बरदिया, कैलाली और कंचनपुर जैसे जिले मधेशी बहुल हैं।

पढ़ेंः आंदोलन से तबाह नेपाल का पर्यटन


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