सीपीईसी के जरिये तिब्बत के बदलावों को जानेगा चीन
46 अरब डॉलर के खर्च से तैयार हुआ यह कॉरीडोर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है। इसी वजह से भारत की इसे लेकर कड़ी आपत्ति है।
बीजिंग, प्रेट्र। चीन अपने विवादित चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कॉरीडोर (सीपीईसी) परियोजना से तिब्बत के लिए वैज्ञानिक अभियान को भी जोड़ रहा है। इस अभियान में चार हजार मीटर की ऊंचाई वाले क्विंझाई-तिब्बत पठार में हुए मौसम के बदलाव का अध्ययन किया जाएगा। सीपीईसी के जरिये वैज्ञानिक दल को पठार के नजदीक भेजा जाएगा, वहां वे हालात का अध्ययन करेंगे।
46 अरब डॉलर (करीब तीन लाख करोड़ रुपये) के खर्च से तैयार हुआ यह कॉरीडोर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है। इसी वजह से भारत की इसे लेकर कड़ी आपत्ति है। दुनिया की छत कहे जाने वाले इस स्थान पर चीन ने इससे पहले सन 1970 में वैज्ञानिक अभियान दल भेजा था। इस बार जाने वाले वैज्ञानिक सबसे पहले 2,391 वर्ग किलोमीटर में फैली सर्लिग त्सो झील के नजदीक रुकेंगे।
यह भगवान बुद्ध के समय की पवित्र झील है जिसे कभी नमत्सो के नाम से जाना जाता था। सन 1976 से 2009 के बीच इस झील का आकार 40 प्रतिशत तक बढ़ा है। इसके बाद 100 वैज्ञानिकों का दल चीन की सबसे लंबी नदी यांगेज की उत्पत्ति वाले स्थान पर जाएगा। इस दल के वैज्ञानिक चार हिस्सों में बंटकर अलग-अलग विषयों पर अध्ययन करेंगे।
ये लोग पठार के हिमखंडों, वातावरण के बदलाव, सहजीविता के सुबूतों और परिस्थिकी का अध्ययन करेंगे। ये चीन की साइंस एकेडमी के वैज्ञानिक होंगे। चीन करीब 50 साल से तिब्बत के वातावरण और वहां भू परिस्थितियों का अध्ययन कर रहा है। वह वहां पर पाए जाने वाले वनस्पति, जीव-जंतुओं और मौसम के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाह रहा है।
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