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अरुणिमा ने एवरेस्ट फतह कर इतिहास रचा

काठमांडू। बुलंद हौसले वाले ही मंजिल तक पहुंचते हैं। इसे साबित कर दिखाया है भारत की पूर्व राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबाल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा ने। उन्होंने अपने कृत्रिम पैर के सहारे एवरेस्ट को फतह कर इतिहास रच दिया है। वह एवरेस्ट फतह करने वाली पहली विकलांग भारतीय हैं।

By Edited By: Published: Tue, 21 May 2013 07:46 PM (IST)Updated: Tue, 21 May 2013 09:41 PM (IST)
अरुणिमा ने एवरेस्ट फतह कर इतिहास रचा

काठमांडू। बुलंद हौसले वाले ही मंजिल तक पहुंचते हैं। इसे साबित कर दिखाया है भारत की पूर्व राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबाल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा ने। उन्होंने अपने कृत्रिम पैर के सहारे एवरेस्ट को फतह कर इतिहास रच दिया है। वह एवरेस्ट फतह करने वाली पहली विकलांग भारतीय हैं।

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नेपाल के पर्यटन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि टाटा समूह की ओर से इको एवरेस्ट एक्सपीडिशन के सदस्य के तौर पर 25 वर्षीय अरुणिमा मंगलवार की सुबह करीब 10.55 बजे 8,848 मीटर की ऊंचाई लांघकर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंची। उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर की रहने वाली अरुणिमा 12 अप्रैल, 2011 को पदमावत एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली जा रही थीं। सफर के दौरान लूटपाट का विरोध करने पर बदमाशों ने चलती ट्रेन से उन्हें धक्का दे दिया था। अरुणिमा विपरीत ट्रैक से आ रही ट्रेन से टकराकर गंभीर रूप से घायल हो गई। बाद में उन्हें अपना बायां पैर गंवाना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। दिल्ली के एम्स अस्पताल में तीन महीने तक चले इलाज में उन्हें कृत्रिम पैर लगाया गया।

एवरेस्ट पर जाने से पहले अरुणिमा ने एक चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा था,'जब पैर कटा तो लगा दुनिया खत्म हो गई। उस समय हर कोई मुझे लेकर परेशान था। उस समय मुझे महसूस हुआ कि मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे लोग मुझसे हमदर्दी न जताएं। एक दिन अस्पताल में अखबार में एवरेस्ट पर्वतारोहियों के बारे में पढ़कर तय कर लिया कि माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना है। इस बारे में मैंने अपने भाई और कोच से बात की। उन्होंने मेरा उत्साहव‌र्द्धन किया।' अरुणिमा ने पिछले साल उत्तरकाशी में टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन [टीएसएएफ] के कैंप में एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल की देखरेख में प्रशिक्षण लेना शुरू किया था। पिछले साल अरुणिमा ने लद्दाख की 6,622 मीटर ऊंची लंगसर कांगड़ी की चोटी पर फतह हासिल की थी। रविवार को देहरादून की रहने वाली जुड़वां बहनों ताशी व नुंग्शी मलिक ने एवरेस्ट पर कदम रखकर इतिहास रचा था। यह पहला मौका था जब जुड़वा बहनों ने एक साथ यह उपलब्धि हासिल की। इस दौरान उनके साथ पाकिस्तान की सबीना व उनके भाई मिर्जा बेग भी थे।

हौसलों की उड़ान से शिखर पर पहुंची अरुणिमा

अंबेडकरनगर [अजय सिंह]। पर्वत के जिस शिखर का नाम सुनकर पर्वतारोहियों के पसीने छूट जाते हैं, उस माउंट एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचने वाली शारीरिक रूप से अशक्त अरुणिमा ने वाकई आसमां में सूराख करने जैसा करिश्मा अंजाम दिया। अंबेडकरनगर [उप्र] की इस बेटी ने अपने बुलंद हौसलों का जो परिचय दिया वह एक मिसाल है। परिवारवालों को अपनी इस बेटी पर नाज तो है ही, इस उपलब्धि पर वे खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं।

मंगलवार को पूर्वाह्न 10.55 बजे अरुणिमा के एवरेस्ट फतह की खबर मिलने पर परिवार वालों की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। पड़ोसियों को मिठाई खिलाकर जहां खुशियां बांटीं, वहीं पूजन-अर्चना कर ईश्वर को धन्यवाद दिया। नगर के शहजादपुर कस्बे के खत्रियाना मुहल्ला निवासी अरुणिमा सिन्हा एमए, एलएलबी हैं। उनके पिता की मृत्यु हो चुकी है। मां ज्ञानबाला के अलावा भाई राहुल व बहन लक्ष्मी हैं। करीब तीन साल पहले ट्रेन दुर्घटना में अपना पैर गंवाने वाली फुटबॉल खिलाड़ी अरुणिमा एवरेस्ट फतह करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला हैं। गत 31 मार्च को उन्होंने चार सदस्यीय दल के साथ एवरेस्ट पर चढ़ाई की दुर्गम यात्रा शुरू की।

अरुणिमा की बहन लक्ष्मी ने बताया कि पूरा परिवार इस उपलब्धि को लेकर उत्साहित है। अगस्त 2011 में दिल्ली स्थित एम्स से कृत्रिम पैर लगने के बाद अरुणिमा ने गजब का उत्साह दिखाते हुए पहले की तरह खेलना शुरू कर दिया था। इस बीच उन्होंने विश्व की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट की चढ़ाई की सोची और इस जुनून को लक्ष्य बनाकर बछेंद्री पाल से मिलीं। उनके निर्देशन में करीब डेढ़ साल तक पर्वतारोहण की बारीकियां सीखीं। बकौल ज्ञानबाला उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है। उसने आज जो कर दिखाया, उससे समूची दुनिया में भारत का नाम रोशन हुआ।

दो पर्वतारोहियों की मौत

काठमांडू। एवरेस्ट पर मंगलवार को दो पर्वतारोहियों की मौत हो गई। नेपाली पर्यटन विभाग के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। दक्षिण कोरिया के 34 वर्षीय संग हो सो बिना ऑक्सीजन के चढ़ाई करने जा रहे थे,लेकिन बीच रास्ते में दम फूलने के कारण वापस लौटने लगे इस दौरान उनकी मृत्यु हो गई। जबकि बांग्लादेश के 35 वर्षीय मुहम्मद हुसैन की एवरेस्ट पर चढ़ने के कुछ घंटे बाद मृत्यु हो गई।

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